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समाजयूरोप

यूक्रेन युद्ध में कैसे लड़ती हैं महिलाएं

२७ दिसम्बर २०२२

यूक्रेनी शहर माइकोलाइव पर हमले के बाद वहां की महिलाएं भी युद्ध से जुड़े कामों में शामिल हो गईं. कुछ सेना में शामिल हो कर युद्ध में लड़ने लगीं तो कुछ ने सैनिकों और नागरिकों को भोजन और अन्य सामान पहुंचाने का बीड़ा उठा लिया.

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सेनिया द्रागानियुक
एनजीओ जेमलियाकि की प्रमुख सेनिया द्रागानियुकतस्वीर: NGO Zemliachky

रूस ने जिस दिन उनके देश पर हमला शुरू किया था, स्विटलाना तारानोवा उसी दिन अपने जन्मस्थान दक्षिणी शहर माइकोलाइव में यूक्रेनी सेना में शामिल हो गई थीं. करीब 50 साल की उम्र की तारानोवा उससे पहले एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में मैनेजर थीं.

युद्ध के दौरान वहां से करीब 70 किलोमीटर दूर खेरसों पर रूसी सेना के कब्जे के बाद तेजी से माइकोलाइव पर भी खतरा मंडराने लगा था. रूसी सेना के लिए ब्लैक सी के यातायात केंद्र ओडेसा शहर पर कब्जा करने के लिए माइकोलाइव पर कब्जा करना जरूरी था.

इस लिए रूसियों ने माइकोलाइव पर बड़े पैमाने पर और क्रमबद्ध ढंग से तोप के गोले चलाना शुरू कर दिया.  तारानोवा ने बताया, "24 फरवरी की सुबह 11 बजे टेरीटोरियल डिफेंस के साथ मेरे कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर हुए. यह कोई त्याग नहीं था, बल्कि उस समय एकमात्र यही फैसला लेना मुमकिन था."

युद्ध में योगदान

इन्फेंट्री में शामिल होने के बाद तारानोवा अक्सर रूसी सैनिकों के साथ करीब से मुठभेड़ में भी शामिल हो जातीं. उन्होंने बताया, " शुरू में मुझे क्लस्टर बमों से बहुत डर लगता था, जब भी एक फटता था तब मेरे दिल की धड़कन रुक जाती थी."

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लेकिन फिर डर की जगह दृढ निश्चय ने ले ली. तारानोवा कहती हैं, "मुझे अब छुपने की जरूरत नहीं महसूस होती है. मुझे अब बस बदला चाहिए." एएफपी की एक टीम जब सितंबर और अक्टूबर में माइकोलाइव में थी तब हर रात शहर पर बम बरसाए जाते थे.     

एएफपी की एक टीम को पता चला कि तारानोवा जब रूसियों के खिलाफ जंग में लड़ रही थीं, तब दूसरी महिलाएं युद्ध में दूसरे तरीकों से योगदान दे रही थीं. एक बेकरी में काम करने वाली 41 साल की स्वितलाना निचुक ने बताया, "हम भी यहां लड़ रहे हैं. हम सैनिकों को खाना खिलाते हैं."

एएफपी की टीम जब उनसे मिली उस समय वो एक आपात यूनिट को शहर के केंद्र में स्थित एक पुराने अपार्टमेंट ब्लॉक का मलबा साफ करते हुए देख रही थीं. जिस बेकरी में वो काम करती हैं वो निचली मंजिल पर है. बेकरी को भी काफी नुकसान पहुंचा था.

दूसरे तरीकों से शामिल

पास ही में रहने वाली जूलिया ने बताया कि उनके अपार्टमेंट पर तीन बार हमला हो चुका है. करीब 30 साल की जूलिया आईटी में काम करती हैं और वो अपनी बेट को लेकर तुलनात्मक रूप से ज्यादा सुरक्षित पश्चिमी यूक्रेन चली गई थीं.

रूस के कब्जे से निकले यूक्रेनी इलाके में लौट रही है जिंदगी

लेकिन वो अक्सर यूक्रेन लौट आती हैं, अधिकतर उनके द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन अपीलों से हासिल किए गए वाहनों या सैन्य उपकरण को लड़ाकों के बीच बांटने के लिए. एक और मोहल्ले में जूलिया किरकिना नाम की म्यूजिकोलोजिस्ट हर शुक्रवार एक रेस्तरां में पियानो बजाती हैं और जाती हैं.

वो कहती हैं, "संगीत आत्मा के लिए सबसे अच्छे इलाजों में से है. मेरी वोकल थेरेपी लोगों को शांत और आशावादी बने रहने में मदद करती है." माइकोलाइव के स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि शहर 262 दिनों तक रूसी तोपों के निशाने पर रहा और मुश्किल से 50 दिन बमबारी से बच पाया.

फिर, 13 नवंबर को,खेरसोंको यूक्रेनी सैनिकों ने फिर से अपने कब्जे में ले लिया और माइकोलाइव युद्ध की फ्रंटलाइन का हिस्सा नहीं रहा. तब तक शहर के 150 से ज्यादा निवासी मारे गए थे और 700 से ज्यादा मारे गए थे.

घबराने का समय नहीं

3,00,000 से 5,00,000 के बीच लोग शहर छोड़ कर चले गए थे. स्थानीय प्रशासन के मुताबिक करीब 80 प्रतिशत महिलाएं भी शहर छोड़ कर चली गई थीं, जिसकी वहज से शहर में लगभग सिर्फ पुरुष ही रह गए थे.

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लेकिन साइकोएनालिस्ट आइरीना विक्टोरोवना कहती हैं कि काफी नाजुक स्थिति में होने के बावजूद माइकोलाइव में कई महिलाएं खुद को पीड़ित जैसा नहीं देखती हैं. विक्टोरोवना ने बताया, " उनके पास घबराने का या खुद पर अपना नियंत्रण खो देने का समय ही नहीं है."

हालांकि उन्होंने यह माना कि ब्रेकडाउन के कुछ मामले हुए जरूर हैं. स्थानीय लोगों ने एएफपी को फोन पर बताया कि सैन्य खतरे को तो फिलहाल दूर कर दिया गया है लेकिन जिंदगी अभी अभी काफी अनिश्चित है.

जिंदगी ही बदल गई

यूक्रेन में दूसरे स्थानों की ही तरह रूस द्वारासिविलियन ऊर्जा इंतजाम को निशानाबनाने की वजह से यहां भी बिजली, पानी और गर्मी की कटौती आम है. पहले एक हेयरड्रेसर का काम करने वालीं अलेक्सांद्रा सवित्स्का अपने पुराने काम पर नहीं लौट पाई हैं.

अब वो और उनके पति एक एनजीओ चलाते हैं जिसके तहत वो सैनिकों और नागरिकों के बीच खाना और अन्य सामान बांटते हैं. 25 साल की सवित्स्का के इंस्टाग्राम अकाउंट पर वो एक वीडियो में खेरसों में खाना और दूसरी चीजें बांटने के बाद हेलमेट और एक सुरक्षा जैकेट पहने हुए नजर आती हैं.

उन्होंने फोन पर एएफपी को बताया, "मेरी जिंदगी मौलिक रूप से बदल गई है. मैं महिलाओं की सुंदरता निखारती थी. अब मैं एक वालंटियर हूं. यही मेरा काम है." 

सीके/एए (एएफपी)