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ट्री बैंकिंग के जरिए हरे भरे अतीत को पुकारता एक गांव

४ फ़रवरी २०२२

84 साल के पीके माधवन हर सुबह अपने 100 पेड़ों को सहलाते हैं, उनका ख्याल रखते हैं. इन पेड़ों को हरा भरा रखने के बदले उन्हें नो रिर्टन पॉलिसी वाला कर्ज मिलता है. वह कार्बन न्यूट्रल गांव बनाने का सपना सींच रहे हैं.

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पर्यटन, आयुर्वेद और मसालों के लिए दुनिया में मशहूर है केरल
पर्यटन, आयुर्वेद और मसालों के लिए दुनिया में मशहूर है केरलतस्वीर: MANJUNATH KIRAN/AFP/Getty Images

पीके माधवन महोगनी के युवा पेड़ के पास खड़े हैं. 84 साल के माधवन के चेहरे पर गर्व का भाव दिखता है. दक्षिण भारतीय राज्य केरल के मीनानगडी गांव में उनका एक हरा भरा ट्री फार्म है. दो एकड़ में फैले फार्म में 100 पेड़ हैं. सभी पेड़ तीन साल पहले लगाए गए थे.

वायनाड जिले का मीनानगडी गांव कॉफी, काली मिर्च और सुपारी के लिए मशहूर है. लेकिन बीते दो दशकों से ये इलाका अकसर प्रचंड सूखे और भारी बेमौसमी बारिश का सामना कर रहा है. इन मौसमी बदलावों की मार माधवन की कॉफी, काली मिर्च और सुपारी की फसल पर भी पड़ी.

बार बार हो रहे नुकसान से तंग आकर माधवन ने महोगनी के पेड़ लगाने शुरू किए. अब इन्हीं पेड़ों से 84 साल के किसान को हर साल 5,000 रुपये मिलते हैं. रकम भले ही छोटी हो, लेकिन इस पैसे के बदले उन्हें सिर्फ अपने पेड़ों को हरा भरा रखना होता है.

केरल में अक्टूबर 2021 में आई बाढ़
केरल में अक्टूबर 2021 में आई बाढ़तस्वीर: REUTERS

केरल की 'ट्री बैंकिंग' स्कीम

इस योजना के सहारे मीनानगडी 2025 तक भारत का पहला कार्बन न्यूट्रल गांव बनना चाहता है. माधवन को पैसा 'ट्री बैंकिंग' स्कीम के तहत मिलता है. ग्राम पंचायत ने माधवन को मुफ्त में पौधे दिए और बताया कि इन पेड़ों को 2031 तक नहीं काटना है. इसके बदले उन्हें हर साल एक पेड़ के लिए 50 रुपये का कर्ज दिया जाएगा. पेड़ समय से पहले नहीं काटे गए तो ये सारा कर्ज माफ हो जाएगा. लक्ष्य पूरा होने के बाद माधवन पेड़ों का अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर सकते हैं.

उम्र के आखिरी पड़ाव से गुजर रहे माधवन कहते हैं, "हर सुबह मैं इन पेड़ों की देखभाल के लिए समय निकालता हूं. मैं खुशी के साथ कह सकता हूं कि तीन पौधों को छोड़कर बाकी सब बहुत ही मजबूती से बड़े हो रहे हैं. देर सबेर मेरी जमीन अनंत हरियाली वाले एक छोटे जंगल में बदल जाएगी."

प्रकृति के साथ फिर से मधुर तालमेल की कोशिश

हरियाली, पर्यटन और सुगंध से भरे मसालों के लिए मशहूर केरल बीते एक दशक से बड़े नाजुक बदलाव देख रहा है. तापमान लगातार बढ़ रहा है. अचानक भारी बेमौसमी बारिश से बाढ़ आने की घटनाएं तेज हो रही है. जंगल कटने से मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो चुकी है. मिट्टी खराब होने के कारण बरसात के दौरान भूस्खलन के मामले भी बढ़े हैं.

सूखे और बेमौसमी बरसात से जूझ रहा है केरल
सूखे और बेमौसमी बरसात से जूझ रहा है केरलतस्वीर: AFP/Getty Images

वायनाड जिला सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों से से एक है. जलवायु परिवर्तन को लेकर बनाए गए राज्य सरकार के एक्शन प्लान में चार इलाकों को हॉटस्पॉट के रूप में दर्ज किया गया है. वायनाड इनमें से एक है.

दुनिया भर में सरकारें, संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन वृक्षारोपण अभियान पर जोर दे रहे हैं. कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाकर कार्बन उत्सर्जन को सोखा जाए. पेड़ मिट्टी की सेहत भी सुधारते हैं. लेकिन ज्यादातर जगहों पर वृक्षारोपण के अभियान असफल होते हैं. नन्हें पौधों की जिस तरह की देखभाल की जरूरत पड़ती है, वह वृक्षारोपण अभियान के प्रचार के बाद गुम हो जाती है.

मीनानगडी का ट्री बैंकिंग प्रोजेक्ट इस नाकामी को दूर रखना चाहता है. स्थानीय पर्यावरण संगठन थानाल के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सी जयकुमार कहते हैं, "आम तौर पर एक किसान को पौधा रोपने के बाद उससे फायदा उठाने के लिए एक या दो दशक इंतजार करना पड़ता है. इस प्रोजेक्ट के तहत किसानों को शुरुआत से ही पैसा मिलने लगता है."

केरल का एक कस्बा बना मिसाल

नजीर पेश करने का मौका

मीनानगडी ने 2016 में अपना कार्बन उत्सर्जन कम करने की योजना शुरू की. ग्राम सभा ने एक पूरे गांव का ऑडिट कराया. उसमें पता चलता कि 33,450 लोगों की आबादी वाला मीनानगडी हर दिन 15,000 टन अतिरिक्त कार्बन पैदा कर रहा है. ग्राम प्रधान केई विनयन कहते हैं कि इस कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लिए अगले चार साल में कम से कम 3.50 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य है.

इस योजना में शामिल होने के इच्छुक किसानों को ग्राम सभा या वन विभाग की नर्सरी से पौधे दिए जाते हैं. पौधों में लकड़ी देने वाले पेड़, फलदार पेड़ और बांस शामिल हैं. किसानों को स्थानीय प्रजाति के ऐसे पौधे ही दिए जाते हैं जो बड़े पैमाने पर कार्बन सोखें और मौसमी मार भी सह सकें.

पेड़ लगाने के तीन साल बाद किसान हर पेड़ के बदले अगले 10 साल तक ब्याज मुक्त कर्ज ले सकते हैं. पेड़ काटने पर कर्ज की रकम लौटानी होगी. अगर पेड़ किसी बीमारी या मौसमी दुश्वारी के कारण मरा तो भी किसान को उसके लिए पैसा मिलता रहेगा.

जैव विविधता के मामले में अब भी बहुत समृद्ध है भारत
जैव विविधता के मामले में अब भी बहुत समृद्ध है भारततस्वीर: DW

एक गांव ने लगाए लाखों नए पौधे

अब तक 780 किसान इस अभियान से जुड़ चुके हैं. इन किसानों ने गांव में 1,72,000 पौधे रोपे हैं. कर्ज की पहली किश्त के तौर पर साढ़े तीन लाख रुपये बांटे जा चुके हैं. अगली किश्त के लिए जल्द ही केरल सरकार 10 करोड़ रुपये जारी करेगी. ग्राम प्रधान कहते हैं कि पेड़ों पर मालिकाना हक किसानों का ही रहेगा.

मीनानगडी से प्रेरित होकर अब केरल के कुछ दूसरे गांव भी इस राह पर जा रहे हैं. इन बदलावों को देख पीवी माधवन कहते हैं, "मुझे उम्मीद है कि कार्बन न्यूट्रल अभियान इस इलाके को उसका पुराना गौरव लौटाने में हमारी मदद करेगा."

ओएसजे/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

कैसे जिएं कार्बन न्यूट्रल जीवन