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यूरोप में विस्फोटक गति से बढ़ रहे हैं ब्लूटंग वायरस के मामले

स्वाति मिश्रा
१५ अगस्त २०२४

जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में मवेशियों के बीच ब्लूटंग नाम की एक बीमारी तेजी से फैल रही है. यह भेड़, गाय और बकरियों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है. किसान इसके संभावित जोखिमों को लेकर परेशान हैं.

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 जुलाई 2024: जर्मनी में ब्लूटंग बीमारी से प्रभावित एक भेड़ का मुंह खोलकर दिखाता एक पशुपालक
जुलाई 2024: जर्मनी में ब्लूटंग बीमारी से प्रभावित एक भेड़ का मुंह खोलकर दिखाता एक पशुपालकतस्वीर: Lars Froehlich/Funke/IMAGO

जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में ब्लूटंग नाम के एक वायरस का नया स्ट्रेन तेजी से बढ़ रहा है. यह एक वायरल बीमारी है, जो भेड़ और गाय जैसे जुगाली करने वाले जानवरों को चपेट में लेती है. एक बार यह पैठ बना ले, तो इसपर काबू पाना मुश्किल होता है. प्रभावित देशों में किसान और पशुपालक इसके खामियाजों को लेकर काफी सशंकित हैं.

क्या है ब्लूटंग बीमारी?

यह बीमारी ब्लूटंग नाम के एक वायरस से होती है. मिज नाम का एक छोटा कीड़ा इस वायरस का वाहक बनता है. आमतौर पर यह कीड़ा पानी या दलदली इलाकों के पास पैदा होता है. ब्लूटंग वायरस भेड़, बकरी, हिरण और गाय-बैल जैसे जीवों को प्रभावित करता है.

कुछ दुर्लभ मामलों में यह कुत्ते और अन्य मांसभक्षी जीवों को भी प्रभावित कर सकता है, अगर वे संक्रमित चीजें खाएं. हालांकि, यह इंसानों पर असर नहीं डालता. ना ही खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करता है. इससे प्रभावित जीवों के मुंह या नाक में अल्सर हो सकता है. आंख, नाक या मुंह से डिस्चार्ज होना या लार निकलना भी एक लक्षण है.

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ब्रिटेन के पर्यावरण, खाद्य और ग्रामीण मामलों के विभाग द्वारा जारी गाइडलाइंस के मुताबिक, प्रभावित जीवों में बुखार, सुस्ती, दुधारू जीवों में दूध की कमी, भूख ना लगना, सांस लेने में परेशानी, त्वचा का लाल रंग, गर्भपात, मरा हुआ बच्चा पैदा होना और यहां तक कि प्रभावित जीव की मौत जैसे असर भी दिख सकते हैं. रॉयटर्स के मुताबिक यह वायरस भेड़, गाय और बकरियों के लिए खासतौर पर जानलेवा हो सकता है. साथ ही, गायों के दूध उत्पादन में भी खासी गिरावट आ सकती है.

यूरोप के किन देशों में मिले मामले?

समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, सितंबर 2023 में नीदरलैंड्स में ब्लूटंग सेरोटाइप 3 (बीटीवी-3) के संक्रमण से जुड़े शुरुआती मामले दर्ज किए गए थे. इसके बाद से यह जर्मनी, बेल्जियम और ब्रिटेन में भी फैल गया है.

जर्मनी के फेडरल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर एनिमल हेल्थ के मुताबिक, जर्मनी में बीटीवी-3 के मामले शुरुआती मामले अक्टूबर 2023 में सामने आए थे. इसके बाद से यह जर्मनी के कई राज्यों में फैल गया है. एएफपी के मुताबिक, हालिया हफ्तों में इस बीमारी के मामले विस्फोटक रूप से बढ़े हैं. जर्मनी के पड़ोसी देश नीदरलैंड्स में खाद्य और उपभोक्ता उत्पादों की सुरक्षा से जुड़े विभाग ने बताया कि 12 अगस्त को बीटीवी-3 के 2,909 मामले दर्ज किए गए. एक हफ्ते पहले की तुलना में यह संख्या 600 से ज्यादा है.

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इसी तरह बेल्जियम में भी 1 जून से 11 अगस्त के बीच 515 मामले देखे गए, जिनमें एक ही हफ्ते में 436 नए केस जुड़े. वर्ल्ड एनिमल हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अगस्त महीने में फ्रांस, लक्जमबर्ग और डेनमार्क में भी बीटीवी-3 के मामले मिले हैं.

इस बीमारी के अन्य स्ट्रेन यूरोप में कई साल से मौजूद रहे हैं. उनके लिए टीके भी विकसित हो चुके हैं, लेकिन बड़े स्तर पर फैली बीमारी को काबू करने के लिए टीकों की पर्याप्त खुराक उपलब्ध नहीं है.

फ्रांस ने पशुपालकों को होने वाले संभावित जोखिम को देखते हुए प्रभावित इलाकों में टीकाकरण अभियान तेज कर दिया है. कृषि मंत्रालय ने बताया कि किसानों को वैक्सीन के करीब 64 लाख डोज मुफ्त उपलब्ध करवाए जाएंगे. पहले केवल 46 लाख डोज देने का फैसला किया गया था, लेकिन बढ़ते प्रसार को देखते हुए इनकी संख्या बढ़ाई गई है.

अर्थव्यवस्था के लिए पशुपालन का क्या महत्व है?

ना केवल लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों के लिए मांस, दूध, चीज और अन्य डेयरी उत्पादों की पर्याप्त आपूर्ति अहमियत रखती है, बल्कि पशुपालन और कृषि संबंधी पक्षों से यूरोपीय संघ (ईयू) के कारोबारी हित भी जुड़े हैं. यूरोस्टैट के मुताबिक, 2022 में डेयरी इंडस्ट्री (दूध, सुअर, गाय, पॉल्ट्री, अंडा जैसे उत्पाद) से ईयू को लगभग 20,600 करोड़ यूरो की कमाई हुई.

यह एक छोटा, लेकिन बहुत अहम सेक्टर है. फेडरल स्टैस्टिकल ऑफिस ऑफ जर्मनी ने पिछले साल वैश्विक खेती, मांस उत्पादन और खपत से जुड़े आंकड़ों की जानकारी देते हुए बताया कि किस तरह हालिया दशकों में दुनियाभर में मांस की खपत बढ़ी है. 2010 में जहां औसत वैश्विक खपत 41.6 किलो प्रति व्यक्ति थी, वहीं 2020 में यह बढ़कर 42.8 किलो हो गई. बढ़ती खपत के कारण पशुपालन भी तेजी से बढ़ा है. दुनिया में मांस के लिए पाले जाने वाले जीवों में चिकेन के बाद कैटल (गाय, भैंस जैसे जीव) दूसरे नंबर पर और भेड़ तीसरे नंबर पर है.

इसी तरह डेयरी इंडस्ट्री भी ईयू के लिए अहम है. यह खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आर्थिक गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र है. यूरोपीय संसद के आंकड़ों के मुताबिक, ईयू की डेयरी इंडस्ट्री में गायों की संख्या दो करोड़ से ज्यादा है. डेयरी उद्योग में सबसे ज्यादा 38 लाख गायें जर्मनी में हैं.

ईयू दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है. इसमें 21 प्रतिशत से ज्यादा उत्पादन अकेले जर्मनी में होता है. इसके अलावा फ्रांस 16.6 प्रतिशत और नीदरलैंड्स की भागीदारी 9.6 प्रतिशत है. ये तीनों ऐसे देश हैं, जहां बीटीवी-3 संक्रमण के मामले पाए गए हैं.

यह सेक्टर रोजगार की दृष्टि से भी बड़ा है. यूरोपियन डेयरी एसोसिएशन के मुताबिक, केवल दूध की प्रॉसेसिंग इंडस्ट्री ही तीन लाख से ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देती है. इनमें से करीब 45,000 ऐसे हैं, जो सीधे तौर पर अन्य देशों में डेयरी उत्पादों के निर्यात से जुड़े काम का हिस्सा हैं.

इस साल जर्मनी समेत ईयू के कई देशों में किसानों ने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया. इन प्रदर्शनों की एक मुख्य थीम इन शिकायतों पर केंद्रित थी कि कैसे किसानों और पशुपालकों के लिए स्थितियां ज्यादा मुश्किल होती जा रही हैं.

ईयू नेतृत्व का एक बड़ा धड़ा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी नीतियों के क्रम में खेती और पशुपालन में ज्यादा ईको फ्रेंडली उपाय अपनाए जाने पर जोर दे रहा है. वहीं, किसानों की शिकायतें हैं कि नीतियां बनाने में उनकी आवाज को तवज्जो नहीं दी जा रही है.