1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत में मानवाधिकारों का मुद्दा उठाऊंगाः एरिक गारसेटी

१५ दिसम्बर २०२१

अमेरिका में भारत के संभावी राजदूत एरिक गारसेटी छात्र जीवन से ही भारत के प्रति आकर्षित रहे हैं. उन्होंने हिंदी और उर्दू की पढ़ाई भी की है. लेकिन वह मानवाधिकारों को लेकर सख्त हैं.

https://p.dw.com/p/44H0y
तस्वीर: Michael Brochstein/ZUMA/picture alliance

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से भारत में अमेरिकी राजदूत के लिए नामित एरिक गारसेटी ने वादा किया है कि वह भारत में मानवाधिकार और रूस से हथियारों की खरीद का मुद्दा उठाएंगे. अमेरिकी सांसदों ने चिंता जताई है कि ये बातें भारत के साथ बढ़ते संबंधों पर असर डाल रही हैं.

लॉस एंजेल्स के मेयर गारसेटी मंगलवार को सीनेट के सामने हाजिर हुए. उनकी नियुक्ति पर मुहर लगाने से पहले सीनेट के सदस्यों ने उनसे कई सवाल-जवाब किए. इस दौरान उन्होंने वादा किया कि अगर वह भारत में राजदूत नियुक्त किए जाते हैं तो जोर-शोर से मानवाधिकारों का मुद्दा उठाएंगे.

गारसेटी ने कहा, "मैं उन्हें विनम्रता से उठाऊंगा. यह दोहरा रास्ता है. लेकिन मैं वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ सीधे संवाद करना चाहता हूं. वहां ऐसे संगठन हैं जो सक्रियता से लोगों के मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके साथ मेरा सीधा संवाद होगा.”

कौन हैं एरिक गारसेटी?

गारसेटी दो बार से लॉस एंजेल्स के मेयर हैं लेकिन वह तीसरी बार पद नहीं पा सकते. उन्हें डेमोक्रैटिक पार्टी में उभरते नेता के तौर पर देखा जा रहा है और उनके राष्ट्रपति चुनाव लड़ने जैसी अटकलें भी लगाई जा चुकी हैं. 50 वर्षीय गारसेटी ने सीनेट कमेटी को बताया कि भारत में उनकी दिलचस्पी हमेशा से रही है, जो छात्र जीवन में यूनिवर्सिटी की तरफ से एक दौरे के बाद शुरू हुई थी. उसके बाद उन्होंने हिंदी और उर्दू सीखना भी शुरू कर दिया था.

अमेरिका में दोनों ही पार्टियों के लोग आमतौर पर भारत के साथ गर्मजोशी भरे रिश्तों के पक्षधर हैं. इसकी एक बड़ी वजह भारत के पड़ोसी चीन से अमेरिकी की प्रतिद्वन्द्विता भी है. लेकिन भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दौरान मानवाधिकारों के हनन को लेकर कई अमेरिकी नेताओं ने चिंता जताई है.

हिंदू राष्ट्रवादी कहे जाने वाले नरेंद्र मोदी के कई कदमों का अमेरिका में विरोध हुआ है. इनमें विवादित नया नागरिकता कानून भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह देश के अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों को प्रताड़ित करने का जरिया बन सकता है.

अमेरिकी सीनेटर बॉब मेनेंडेज सीनेट फॉरन रिलेशंस कमेटी के अध्यक्ष हैं. उन्होंने ऐसी रिपोर्टों का जिक्र किया जिनमें भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर जुल्म बढ़ने की बातें कही गई हैं. मेनेंडेज ने कहा, "अगर नई दिल्ली हमारे साथ संबंधों को और मजबूत करना चाहती है तो उसे हमारी चिंताओं पर ध्यान देगा होगा.”

भारत-रूस संबंधों पर चिंता

मेनेंडेज के अलावा रिपब्लिकन नेता जिम रिश ने भी हाल ही में भारत और रूस के बीच हथियारों को लेकर हुए समझौतों पर चिंता जाहिर की. हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन भारत के दौरे पर गए थे. इस दौरान दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग को लेकर कई समझौते हुए.

भारत ने पुष्टि की है कि इस महीने रूस भारत को जमीन से हवा में मार करने वालीं एस-400 मिसाइलों की सप्लाई शुरू कर देगा. इस समझौते को लेकर अमेरिका ने आपत्ति भी जताई है और भारत पर प्रतिबंधों की तलवार लटक रही है.

2018 में हुआ यह समझौता पांच अरब डॉलर से भी ज्यादा का है लेकिन इस पर अमेरिका की नाराजगी की तलवार लटक रही है. अमेरिका ने ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट' (CAATSA) नामक कानून के तहत इस समझौते को आपत्तिजनक माना है. हालांकि पिछले हफ्ते अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत पर प्रतिबंध लगाने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है.

इधर रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेश्कोव ने सोमवार को मीडिया को बताया, "हमारे भारतीय दोस्तों ने स्पष्ट कहा है कि वे एक संप्रभु देश हैं और किससे हथियार खरीदने हैं व कौन भारत का साझीदार होगा, इसका फैसला वे खुद करेंगे.”

गारसेटी ने कहा कि भारत पर प्रतिबंध लगाने हैं या नहीं, इस बारे में फैसला विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन करेंगे लेकिन बतौर राजदूत वह इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि अगर वे रूसी हथियार इस्तेमाल करते हैं तो हमारे लिए क्या खतरा हो सकता है.

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि ब्लिंकेन ने अभी भारत पर प्रतिबंध लगाने के बारे में कोई फैसला नहीं किया है लेकिन हम सभी देशों से अपील करते हैं कि रूस के साथ हथियारों का नया लेन-देन ना करें.

वीके/एए (एएफपी)