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जलवायुबांग्लादेश

जलवायु परिवर्तन क्या होता है, चाय बागान के मजदूरों से पूछिए

१६ जून २०२३

जलवायु परिवर्तन से बांग्लादेश का चाय उद्योग भी प्रभावित हो रहा है. इस कारण चाय मजदूरों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

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Indien Assam Teeplantage
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

फूल कुमारी पिछले तीन दशकों से पूर्वोत्तर बांग्लादेश के चाय के बागानों में काम कर रही हैं, लेकिन 45 साल की कुमारी का कहना है कि उन्होंने इस उपज के मौसम में इतनी भीषण गर्मी और सूखा कभी नहीं देखा.

दक्षिणी शहर सिलहट के श्रीमंगल में एक खेत में काम करने के दौरान पानी पीते हुए वह कहती हैं, "यहां इतनी गर्मी है कि मैं अपना काम जारी नहीं रख सकती. मुझे ऐसा लगता है मैं अपनी रसोई में कुकर के बगल में खड़ी हूं. मैंने अपने पूरे जीवन में ऐसे हालात कभी नहीं देखे."

श्रीमंगल बांग्लादेश की चाय की राजधानी है. परंपरागत रूप से यहां सबसे भारी बारिश होती है और गर्मी के मौसम में तापमान 30 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है, लेकिन बूंदाबांदी मौसम को सुखद बना देती है. लेकिन हाल के सालों में जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है, तापमान भी बढ़ रहा है और मई में श्रीमंगल में तापमान 39 डिग्री तक पहुंच गया है. उस महीने में सामान्य से आधी से भी कम बारिश हुई है.

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नहीं आ रहे पर्यटक

इस स्थिति के चलते इलाके में पिछले साल के मुकाबले चाय की कटाई आधी ही हो पाई है. और इस बार इस खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्र के वर्षावनों, झीलों और आकर्षक चाय बागानों को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों का तांता नहीं लग पाया है.

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हवाएं व्यापार और उससे जुड़े मजदूरों के लिए बेहद हानिकारक साबित हो रही हैं. सवाल यह है कि उन पर निर्भर रहने वाली अर्थव्यवस्थाएं और आबादी कैसे सामना कर पाएंगी.

श्रीमंगल पर्यटन सेवा संगठन के महासचिव काजी शम्सुल हक का कहना है कि पर्यटकों को 60 फीसदी तक की छूट देने के बावजूद हम उन्हें आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं. वह कहते हैं, "उन्हें गर्मी और सूखे का डर सता रहा है."

हक के मुताबिक, "श्रीमंगल के लिए बारिश का मौसम पर्यटन के लिए सबसे अच्छा समय है.  क्षेत्र में 60 रिसॉर्ट हैं लेकिन इस बार पर्यटक नहीं आ रहे हैं."

हक कहते हैं, "हम अक्सर जलवायु परिवर्तन के बारे में सुनते हैं और अब हम अपने इलाके में इसके प्रभाव देख सकते हैं."

चाय मजदूरों पर मौसम की मार
चाय मजदूरों पर मौसम की मार तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

जलवायु परिवर्तन: अंजाम भुगत रहे मजदूर

ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान सबसे पहले श्रीमंगल में चाय के बागान लगाए गए थे. यह क्षेत्र आमतौर पर मध्यम तापमान के लिए जाना जाता है.

मिनी हाजरा इलाके के एक चाय बागान में चाय की पत्तियां तोड़ने का काम करती हैं. वह बताती हैं कि वह एक दिन में पचास से साठ किलो चायपत्ती तोड़ लेती थीं, लेकिन इस साल सिर्फ पंद्रह किलो ही तोड़ पाईं, जिससे उनकी आमदनी पर भी असर पड़ा है.

हाजरा कहती हैं, "गर्मी में काम करने के बाद, ऐसा लगता है कि मेरा पूरा शरीर जल गया है और पानी डालने के बाद भी कोई राहत नहीं मिलती है."

गर्मी के कारण थकान इतनी बढ़ जाती है कि वह काम से लौटने पर घर के जरूरी काम भी नहीं कर पाती हैं. वह कहती हैं कि उन्हें ऐसा कठोर मौसम कभी याद है. हाजरा कहती हैं, "ऐसा पहले कभी नहीं था. पर्याप्त बारिश होने के कारण हम गर्म मौसम में भी आराम से अपना काम कर लेते थे."

विशेषज्ञों के मुताबिक इतनी तेज गर्मी ने न केवल बांग्लादेश में चाय मजदूरों के लिए खतरा पैदा कर दिया है बल्कि चाय के पौधों को भी जोखिम है.

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बांग्लादेश टी रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रमुख वैज्ञानिक मोहम्मद अब्दुल अजीज का कहना है कि चाय उत्पादन के लिए सबसे बढ़िया तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस है, लेकिन 29 डिग्री सेल्सियस तक चाय उत्पादन में आमतौर पर कोई समस्या नहीं होती है. चूंकि पिछले दो सालों में तापमान 36 और 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था और इस साल यह 39 डिग्री तक पहुंच गया है, इसलिए उत्पादन कम हो रहा है.

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बांग्लादेश कृषि विश्वविद्यालय में कृषि अनुसंधान के प्रोफेसर रमीजुद्दीन कहते हैं कि तापमान बढ़ने से कीड़ों की समस्या भी पैदा हो रही है. एक विशेष प्रकार का कीट, रेड स्पाइडर माइट, पत्तियों को नुकसान पहुंचा रहा है और उनकी रक्षा के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी  हो गया है.

उन्होंने बताया कि उच्च तापमान और बारिश की कमी के कारण चाय के पौधों में नए पत्ते नहीं आ रहे हैं. बांग्लादेश टी बोर्ड का कहना है कि इस साल चाय के उत्पादन में भारी गिरावट आएगी.

ढाका में इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट के निदेशक सलीमुल हक का कहना है कि बांग्लादेश को तेजी से बढ़ते तापमान के परिणामों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करने के लिए कदम उठाने चाहिए.

उन्होंने कहा, "उच्च तापमान जलवायु परिवर्तन के उन प्रभावों में से एक है, जिसके लिए बांग्लादेश अभ्यस्त नहीं है और उसे तत्काल इससे निपटने के लिए कदम उठाने चाहिए."

एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)