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समाज

बांग्लादेशः रोहिंग्या शरणार्थी शिविर में कोरोना

१५ मई २०२०

बांग्लादेश में शरणार्थियों के तौर पर शिविर में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों में कोरोना वायरस का मामला सामने आया है. कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर में दस लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. मामला आने के बाद चिंता बढ़ गई है.

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Bangladesch | Coronavirus | Flüchtlingslager
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Rahman

मानवीय समूहों ने चेतावनी दी है कि खचाखच भरे रोहिंग्या कैंपों में कोविड-19 गंभीर तबाही मचा सकता है. बांग्लादेश के वरिष्ठ अधिकारी और संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता ने कहा है कि शरणार्थी और एक अन्य शख्स कोरोना संक्रमण के लिए पॉजिटिव पाए गए हैं. बांग्लादेश शरणार्थी सहायता आयोग के अध्यक्ष महबूब आलम तालुकदार ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें आइसोलेशन केंद्र में भेज दिया गया है." पॉजिटिव पाया गया दूसरा शख्स रोहिंग्या शरणार्थी नहीं है.

शुक्रवार 15 मई तक बांग्लादेश में कोरोना के 18,863 पॉजिटिव मामले सामने आ चुके थे और इस महामारी के कारण देश में 283 मौतें दर्ज की जा चुकी थीं. सहायता एजेंसियों ने संभावित मानवीय आपदा की चेतावनी देते हुए कहा है कि मामला गंभीर रूप ले सकता है. कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर में दस लाख से भी अधिक रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं और उनकी मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच सीमित है.

बांग्लादेश में सेव द चिल्ड्रेन के स्वास्थ्य निदेशक डॉ. शमीम जहां के मुताबिक वायरस ने देश को पहले ही हिला कर रख दिया है. डॉ. शमीम ने एक बयान में कहा,"पूरे बांग्लादेश में एक अनुमान के मुताबिक 16 करोड़ की आबादी के लिए केवल 2,000 वेंटीलेटर मौजूद हैं. रोहिंग्या शरणार्थी शिविर में फिलहाल गहन चिकित्सा देखभाल के लिए एक भी बेड मौजूद नहीं है. अब जब की यह वायरस दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर में दाखिल हो गया है, बहुत वास्तविक संभावना है कि हजारों लोगों की मौत कोविड-19 के कारण हो सकती है." उन्होंने आगे कहा,"यह महामारी बांग्लादेश को दशकों पीछे ले जा सकती है."

अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के एम्बैसेडर एट लार्ज सैम ब्राउनबैक ने वॉशिंगटन में पत्रकारों से कहा, "मैं उस शरणार्थी शिविर का दौरा कर चुका हूं. वहां बहुत भीड़ है, दुर्भाग्य से कोविड-19 वायरस वहां तेजी से फैलेगा. वहां लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच मिलनी चाहिए."

बांग्लादेश में अंतरराष्ट्रीय रेस्क्यू कमेटी के निदेशक मनीष अग्रवाल कहते हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं में कर्मचारियों और जगहों की कमी है, जबकि कैंप में रह रहे लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में साबुन और पानी नहीं है. वह कहते हैं, "यहां प्रति वर्ग स्क्वायर किलोमीटर में 40,000 से 70,000 लोग रह रहे हैं, जो कि डायमंड प्रिंसेस जहाज में मौजूद लोगों की तुलना में 1.6 अधिक घनी आबादी वाला इलाका है. डायमंड प्रिंसेस जहाज में वुहान से चार गुना तेजी से कोरोना वायरस फैला था."

मनीष कहते हैं, "स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच बढ़ाने की कोशिशों के बिना, स्वच्छता की कमी और संदिग्धों को अलग करने के उपाय नहीं अपनाने से बीमारी शरणार्थी और स्थानीय आबादी को तबाह कर देगी." म्यांमार से जान बचाकर बांग्लादेश आए रोहिंग्या मुसलमान घनी आबादी वाले शिविरों में रहने को मजबूर हैं. कई सदियों से वे म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रह रहे थे, जिसे अराकन के नाम से भी जाना जाता है.

रोहिंग्या लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं. म्यांमार की सरकार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानती है. दशकों से म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों पर रोहिंग्या लोगों से भेदभाव और हिंसा करने के आरोप लगते हैं. कुछ रोहिंग्या मुसलमान भारत में भी बतौर शरणार्थी रहते हैं.

एए/सीके (रॉयटर्स)

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