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मानवाधिकारबांग्लादेश

पुलिस पर लगा रोहिंग्या शरणार्थियों के उत्पीड़न का आरोप

अराफातुल इस्लाम
२५ अगस्त २०२३

मानवाधिकार समूहों ने आरोप लगाया है कि बांग्लादेश की पुलिस कॉक्स बाजार में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों को मनमाने तरीके से गिरफ्तार कर रही है और उनका उत्पीड़न कर रही है. साथ ही, उनसे जबरन वसूली भी की जा रही है.

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 कॉक्स बाजार, बांग्लादेश
कॉक्स बाजार में शिविरों में लाखों रोहिंग्या रहते हैंतस्वीर: Abdur Rahman

बांग्लादेश पुलिस बल की एक विशेष इकाई सशस्त्र पुलिस बटालियन (एपीबीएन) के जवान कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविरों में रहने वाले रोहिंग्या लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेते हैं, उनकी पिटाई करते हैं और उन्हें प्रताड़ित करते हैं. इस बात का खुलासा मानवाधिकार समूह एनजीओ फोर्टिफाई राइट्स की जांच में हुआ है.

इस समूह ने पिछले सप्ताह कहा, "बांग्लादेश पुलिस ने म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों को डंडों से पीटा और उनका गला दबाया. साथ ही, उनसे पैसे वसूलने के लिए अलग-अलग तरीके से यातना दी."

दरअसल, जुलाई 2020 से शरणार्थी शिविरों में सुरक्षा बनाए रखने की जिम्मेदारी एपीबीएन को दी गई है. तब से इस पुलिस बल के जवानों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं.

फोर्टिफाई राइट्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मैथ्यू स्मिथ ने कहा, "पुलिस रोहिंग्या शरणार्थियों को मानव एटीएम की तरह इस्तेमाल कर रही है और उनसे गलत तरीके से पैसे की उगाही कर रही है. इसके लिए वे शरणार्थियों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं."

इस साल की शुरुआत में एक अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने भी एपीबीएन पर रोहिंग्या शरणार्थियों से जबरन वसूली, मनमाने तरीके से गिरफ्तार करने और उनका उत्पीड़न करने का आरोप लगाया था. फोर्टिफाई राइट्स और एचआरडब्ल्यू दोनों ने कहा कि उनकी रिपोर्ट शिविरों में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों के साक्षात्कार पर आधारित थी.

कॉक्स बाजार
रिपोर्ट में कहा गया बांग्लादेश पुलिस बल की एक विशेष इकाई सशस्त्र पुलिस बटालियन (एपीबीएन) के जवान कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविरों में रहने वाले रोहिंग्या लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लेते हैंतस्वीर: Abdur Rahman

भीड़भाड़ वाले शिविरों में रहते हैं रोहिंग्या शरणार्थी

वर्तमान में करीब 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में रह रहे हैं. इनमें ज्यादातर पड़ोसी देश म्यांमार के रखाइन राज्य से आए मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं. 2017 में सेना द्वारा समुदाय पर कार्रवाई शुरू करने के बाद हजारों की संख्या में रोहिंग्या म्यांमार से भाग गए. इसने दुनिया में सबसे खराब मानवीय संकटों में से एक को जन्म दिया. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में इस हिंसा की नरसंहार के तौर पर जांच की जा रही है.

इनमें से अधिकांश शरणार्थी तब से बांग्लादेश के दक्षिणपूर्वी तट पर स्थित कॉक्स बाजार में गंदे और भीड़भाड़ वाले शरणार्थी शिविरों में बांस और तिरपाल की झोपड़ियों में रह रहे हैं.

भ्रष्टाचार और दुर्व्यवहार

कॉक्स बाजार में रहने वाले रोहिंग्या शोधकर्ता रेजाउर रहमान लेनिन ने डीडब्ल्यू को बताया, "एपीबीएन की देखरेख में शिविरों में सुरक्षा की स्थिति खराब हो गई है. रोहिंग्या शरणार्थियों और सहायता कर्मचारियों के हालिया बयान एपीबीएन के भीतर भ्रष्टाचार और दुर्व्यवहार की संस्कृति की ओर इशारा करते हैं."

उन्होंने आगे कहा, "फिलहाल स्पष्ट नीति बनाने की जरूरत है जिसमें रोहिंग्याओं की बातों को शामिल किया जाए, ताकि यह पक्का किया जा सके कि उनके मानवाधिकारों का हनन न हो. इसके बिना, इस कमजोर समुदाय को सुरक्षा प्रदान करना मुश्किल है. धीरे-धीरे यह समस्या और विकराल होती जाएगी."

जर्मनी में रहने वाली रोहिंग्या कार्यकर्ता अंबिया परवीन भी इस बात से सहमत हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "यह देखकर दुख होता है कि हमें हमारे बांग्लादेशी दोस्त भी निशाना बनाते हैं. शिविरों में पुलिस द्वारा जबरन वसूली की यह समस्या लगातार बदतर होती जा रही है."

रोहिंग्या शरणार्थियों को अलग टापू पर बसाने का विरोध

सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति

परवीन ने कहा कि अधिकारी विशेष रूप से उन रोहिंग्या युवाओं को निशाना बना रहे हैं जो शरणार्थी अधिकारों की वकालत कर रहे हैं या गैर-सरकारी संगठनों के लिए काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "शिविरों में तैनात कई पुलिस या सुरक्षा गार्ड भ्रष्ट हो गए हैं. वे रोहिंग्या शरणार्थियों को अपनी संभावित आमदनी के स्रोत के तौर पर देखते हैं. दुखद बात यह है कि हिरासत में लिए जाने के बाद कोई रंगदारी नहीं दे पाता, तो वे उसे जेल भेज देते हैं."

हाल के वर्षों में रोहिंग्या शरणार्थी बस्तियों में सुरक्षा स्थिति खराब हो गई है. हिंसा बढ़ रही है. सशस्त्र गिरोह अपना दबदबा बनाने के लिए आपस में लड़ रहे हैं और विरोधियों का अपहरण कर रहे हैं.

कुछ शरणार्थियों पर शिविरों में मेथामफेटामाइन ड्रग ‘याबा' की तस्करी का आरोप लगाया गया है. इसके अलावा, मानव तस्करी भी एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि कई रोहिंग्या नया जीवन शुरू करने के लिए किसी तीसरे देश में जाने की कोशिश करते हैं.

जवाबदेही तय करने की मांग

बांग्लादेश में अधिकांश रोहिंग्या शरणार्थियों को नागरिक के तौर पर कानूनी अधिकार नहीं मिले हैं. इस वजह से उनके लिए घरेलू कानून के तहत सुरक्षा पाना मुश्किल हो जाता है. लेनिन ने बताया कि मौजूदा कानूनी व्यवस्था ‘धीमी और भेदभावपूर्ण' है जिसकी वजह से पुलिस के जवानों को ‘माफी' मिल जाती है. उन्होंने कहा, "मुझे ऐसे किसी मामले की जानकारी नहीं है जहां रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों के अंदर अपराध करने के लिए किसी पुलिस जवान पर कानूनी कार्रवाई हुई हो."

मानवाधिकार समूहों ने बांग्लादेश की सरकार से भ्रष्ट एपीबीएन अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने का आग्रह किया है. हालांकि, एपीबीएन के अतिरिक्त उप-महानिरीक्षक अमीर जाफर इन आरोपों से इनकार करते हैं कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि शिविरों में अवैध गतिविधियों में शामिल होने के कारण हाल ही में पुलिस के कुछ जवानों को बर्खास्त कर दिया गया है. उन्होंने कहा, "हम ऐसे आरोपों को बहुत गंभीरता से लेते हैं. अगर कोई पुलिस अधिकारी अवैध गतिविधियों में शामिल होता है, तो हम जांच कर कार्रवाई करते हैं."