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समाज

अपनों के लिए कब तक बंद रहेंगे ऑस्ट्रेलिया के दरवाजे!

विवेक कुमार, सिडनी से
१९ मई २०२१

ऑस्ट्रेलिया ने अपने दरवाजे दुनिया के लिए बंद कर रखे हैं. ना कोई वहां से कोई आ सकता है, न जा सकता है. इसे नाकेबंदी ने एक विशाल मानवीय त्रासदी को जन्म दिया है जो अब लोगों का दम घोंटने लगी है.

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तस्वीर: Vivek Kumar/DW

मानसी गर्ग और उनके पति को मिले एक साल से ज्यादा हो गया है. मानसी अभी भारत में हैं और उनके पति ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में. फरवरी 2020 में मानसी गर्ग अपने माता-पिता से मिलने भारत गई थीं लेकिन लौट नहीं पाईं. कोविड-19 महामारी के कारण ऑस्ट्रेलिया ने सीमाएं बंद कर लीं और हजारों लोग स्वदेश नहीं लौट पाए. सिर्फ भारत में ऐसे लोगों की संख्या 50 हजार से ज्यादा थी. अब एक साल बाद भी मानसी जैसे लगभग नौ हजार लोग सिर्फ भारत में हैं. बाकी देशों में भी ऐसे ही लोग बड़ी संख्या में हैं जो ऑस्ट्रेलिया के रहवासी हैं लेकिन अपने यहां नहीं लौट पा रहे हैं.

कोविड-19 महामारी को रोकने में ऑस्ट्रेलिया काफी कामयाब रहा है. ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट ने एक शोध के बाद उन देशों की सूची जारी की है जिन्होंने कोविड-19 के खिलाफ सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. इस सूची में भूटान और न्यूजीलैंड पहले नंबर हैं तो ऑस्ट्रेलिया भी टॉप 10 देशों में शामिल है. देश में अब तक कोरोना वायरस के कुल मामलों की संख्या 30 हजार से कम रही है और 910 जानें गई हैं. लेकिन स्थानीय अकादमिक निशा थपलियाल कहती हैं कि इस प्रदर्शन के लिए ऑस्ट्रेलिया ने भारी कीमत चुकाई है. वह कहती हैं, "ऑस्ट्रेलिया नाम के इस किले ने अपने ही लोगों को उनके अपनों से सालभर से ज्यादा तक दूर रखा है. दुनियाभर में जगह-जगह फंसे लोगों ने इसकी भारी कीमत चुकाई है, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक हर तरह से. और अब भी चुका रहे हैं."

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लोगों की सरकार से मांग परिजनों को देश लौटने की इजाजत मिलेतस्वीर: Vivek Kumar/DW

दरअसल, महामारी के आते ही पिछले साल 23 मार्च को ऑस्ट्रेलिया ने सीमाएं बंद कर दी थीं. इसका ऐलान 21 मार्च को किया गया था और तब विदेशों में मौजूद लोगों को वापस आने के लिए सिर्फ दो दिन का वक्त दिया गया था. उस वक्त बहुत कम लोग वापस आ पाए. और जो नहीं आ पाए, उनके सामने नियमों की बेहद ऊंची दीवार खड़ी हो गई जिससे लांघ कर आना संभव नहीं था.

मसलन, ऑस्ट्रेलिया के स्थायी निवासी और नागरिक ही स्वदेश लौट सकते हैं. बिना विशेष इजाजत के अस्थायी वीजा धारकों को ऑस्ट्रेलिया आने की इजाजत नहीं है. देश में रहने वाले स्थायी निवासी और नागरिक अपने परिजनों को ऑस्ट्रेलिया बुला सकते हैं. लेकिन परिजनों में माता-पिता शामिल नहीं हैं, सिर्फ बच्चे और जीवनसाथी ही परजिन की परिभाषा में आते हैं. ऑस्ट्रेलिया आने वालों को कोविड-19 से पूरी तरह मुक्त होने का सबूत देना होता है. कोविड-पॉजिटिव कोई व्यक्ति ऑस्ट्रेलिया नहीं आ सकता, फिर चाहे वह यहां का नागरिक ही क्यों ना हो. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के स्थायी निवासी और नागरिक देश छोड़कर जा भी नहीं सकते.

इस सबके ऊपर से, हाल ही में जब भारत में कोरोना की दूसरी लहर का कहर शुरू हुआ तो ऑस्ट्रेलिया ने भारत से ऑस्ट्रेलिया आने को अपराध बना दिया और पांच साल तक की जेल व 35 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान कर दिया. हालांकि चौतरफा आलोचना और विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया.

मानवीय त्रासदी

मानसी गर्ग कहती हैं, "मेरे माता-पिता की उम्र 60 पार कर चुकी है. अब वह यहां भारत में हैं और कोई उन्हें देखने वाला नहीं है. क्या मैं उन्हें बेसहारा छोड़कर ऑस्ट्रेलिया चली जाऊं? उन्हें तो मैं अपने साथ ले जा नहीं सकती क्योंकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार उन्हें मेरे परिवार के सदस्य ही नहीं मानती. मान लीजिए मैं चली जाऊं और तब किसी को कुछ हो जाए, तो मैं वापस भी नहीं आ सकती क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने तो अपने यहां से लोगों के बाहर जाने पर भी बैन लगा रखा है." मानसी गर्ग इस कारण सिडनी में अपनी नौकरी छोड़कर भारत में ही रह रही हैं ताकि अपने माता-पिता की देखभाल करती रहें. वह पूछती हैं कि माता-पिता परिवार के सदस्य नहीं हैं, ऐसे फैसले कौन करता है.

ऑस्ट्रेलिया के सख्त नियमों ने कई मानवीय त्रासदीयों को जन्म दिया है. ऐसा भी हुआ कि लोगों के परिवारों में मौत हो गई और वे वहां नहीं जा पाए. कई लोगों को अपने बीमार माता या पिता को अकेला या किसी और के सहारे छोड़ देना पड़ा. बहुत से लोग अपनों की शादियों या अन्य उत्सवों में शामिल नहीं पाए. चूंकि नियमानुसार छोटे बच्चे अपने माता या पिता के अलावा किसी के साथ यात्रा नहीं कर सकते, इसलिए सैकड़ों बच्चे ऑस्ट्रेलिया नहीं लौट पाए हैं. सिर्फ भारत में ऐसे बच्चों की संख्या 170 बताई गई है. ऐमनेस्टी ऑस्ट्रेलिया के जोएल मैके कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार के ये नियम मानव जीवन पर एक नस्लीय हमला हैं.

‘टरबन्स फॉर ऑस्ट्रेलिया' नामक एक संस्था चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अमर सिंह कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया वाहिद ऐसा देश है जिसने अपने ही नागरिकों को बाहर बेसहारा छोड़ दिया है. वह कहते हैं, "सैकड़ों बच्चे अपनी मांओं से नहीं मिल पा रहे हैं. हजारों बुजुर्ग माता-पिता ऑस्ट्रेलिया में रह रहे अपने बच्चों से दूर अकेले रह रहे हैं. परिवार टूट गए हैं.”

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‘टरबन्स फॉर ऑस्ट्रेलिया' नामक एक संस्था चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अमर सिंहतस्वीर: Vivek Kumar/DW

सरकार की कोशिशें और राजनीतिक आलोचना 

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का कहना है कि विदेशों में फंसे लोगों को वह जल्द से जल्द वापस लाना चाहते हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया की सुरक्षा को खतरे में डालने की कीमत पर नहीं. हाल ही में एक फेसबुक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "हमारे बनाए नियम काम कर रहे हैं. उनका असर नजर आ रहा है. भारत से आने पर हमने जो रोक लगाई थी उसने हमारे क्वारंटीन सिस्टम पर बोझ कम किया है और उसे बहुत जरूरी राहत दी है, ताकि हम तीसरी लहर से बचे रहें. ये सारी कोशिशें ऑस्ट्रेलिया के लोगों को सुरक्षित रखने के लिए हो रही हैं. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हम वैसे ही जीते रहें जैसे हम अभी रह रहे हैं.”

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नियम के मुताबिक बिना विशेष इजाजत के अस्थायी वीजा धारकों को ऑस्ट्रेलिया आने की इजाजत नहीं हैतस्वीर: Vivek Kumar/DW

साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने भारत में फंसे लोगों को वापस लाने के लिए महीने में छह उड़ानों की व्यवस्था की है. हर फ्लाइट में 150 लोगों को वापस लाया जा रहा है. हालांकि पहली ही फ्लाइट उस वक्त विवादों के घेरे में घिर गई जब तय 150 लोगों में से सिर्फ 70 को विमान में जगह मिली. 40 लोग उड़ान से पहले हुए टेस्ट में कोविड-पॉजिटिव पाए गए, जिसके बाद उन्हें और उनके संपर्क में आए 30 अन्य लोगों को वहीं छोड़ दिया गया. छोड़े गए लोगों में ऑस्ट्रेलिया के सार्वजनिक ब्रॉडकास्टर एबीसी के भारत संवाददाता जेम्स ओटन भी थे जिन्होंने बाद में खुद अपना टेस्ट कराया और पाया कि वह पॉजिटिव थे ही नहीं. कई अन्य लोग भी बाद में हुए टेस्ट में नेगेटिव निकले जिसके बाद लोगों को वापस लाने की पूरी प्रक्रिया की निंदा होने लगी.

दुनिया के लिए देश के दरवाजे खोलने की मांग अब कई तबकों से आ रही है जिनमें सत्तारूढ़ लिबरल-नैशनल गठबंधन के नेता भी शामिल हैं. लिबरल पार्टी के सांसद टिम विल्सन ने मीडिया से कहा कि सीमा बंद करना एक अस्थायी विकल्प था और यह लंबे समय तक नहीं चल सकता. विक्टोरिया राज्य के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ब्रेट सटन ने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया को अपने दरवाजे खोलने पर विचार शुरू कर देना चाहिए. न्यू साउथ वेल्स राज्य में ग्रीन्स पार्टी के विधायक डेविड शूब्रिज तो फौरन प्रतिबंध हटाने की बात कहते हैं. वह कहते हैं, "हम सरकार से मांग करते हैं कि फौरन यह बैन हटाया जाए. हर ऑस्ट्रेलियाई बराबर है, हर ऑस्ट्रेलियाई की कद्र होनी चाहिए, और हर ऑस्ट्रेलियाई को अपने घर लौटने का हक है.”

न्यू कासल में रहने वालीं निशा थपलियाल, जो खुद पिछले साल 10 महीने तक भारत में फंसी रही थीं, कहती हैं कि पता नहीं इस किलेबंदी को खोलने के लिए कितनी कीमत चुकानी होगी. वह कहती हैं, "हमारी मौजूदा सीमा संबंधी नीति में बायोसिक्यॉरिटी, रोगों से रोकथाम, खतरों से बचाव जैसे शब्द भरे हुए हैं. फिर भी, देश के स्वास्थ्य विशेषज्ञ बता रहे हैं कि हमारी क्वारंटीन व्यवस्था इस नीति को संभालने लायक तक नहीं है. पता नहीं यह किलेबंदी कब खत्म होगी और मानवता और दोस्ती को जगह मिलेगी.” सरकार कहती है कि अगले साल के मध्य से पहले ऐसा होनी की गुंजाइश कम ही है.

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