आसियान में चीन का विकल्प खोज रहा है ऑस्ट्रेलिया
५ मार्च २०२४मेलबर्न में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने 10 सदस्य देशों वाले आसियान सम्मेलन में ऐलान किया कि वह इस क्षेत्र में 1.3 अरब डॉलर का निवेश करेंगे. उन्होंने कहा, "मेरी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऑस्ट्रेलिया का भविष्य किसी अन्य क्षेत्र से ज्यादा दक्षिण पूर्व एशिया में है.”
यह धन आसियान देशों को इंफ्रास्ट्रक्चर और रिन्यूएबल एनर्जी से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश के लिए कर्ज और वित्तीय मदद के रूप में दिया जाएगा. अल्बानीजी ने कहा, "आसियान के साथ पूरी एक पीढ़ी में अब तक की यह सबसे बड़ी आर्थिक साझेदारी होगी.”
मेलबर्न में आसियान सम्मेलन
एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) का विशेष सम्मेलन ऑस्ट्रेलिया के शहर मेलबर्न में हो रहा है. 8 अगस्त 1967 को थाईलैंड के बैंकॉक में स्थापित किए गए इस संगठन में तब इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड ही शामिल थे. अब इन देशों के अलावा ब्रुनेई, वियतनाम, लाओ, म्यांमार और कंबोडिया भी शामिल हो चुके हैं.
पिछले कुछ समय से दक्षिण पूर्व एशिया की आर्थिक क्षमताएं लगातार बढ़ी हैं और इसे भविष्य की बड़ी आर्थिक ताकत के रूप में देखा जा रहा है. इसके अलावा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इन देशों की राजनीतिक अहमियत भी लगातार बढ़ रही है.
यही वजह है कि क्षेत्र के ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे बड़े देश इस क्षेत्र को विशेष अहमियत दे रहे हैं. न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री तो व्यवसायिक विमान से मेलबर्न आए, क्योंकि उनका सरकारी विमान खराब हो गया था.
यह संगठन इसलिए भी अहम हो गया है क्योंकि पश्चिमी देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे की काट खोज रहे हैं. सम्मेलन के साझा बयान के मसौदे में भी यह बात स्पष्ट नजर आ रही है.
इस मसौदे में कहा गया है, "हम एक ऐसा क्षेत्र बनाने के लिए कोशिश कर रहे हैं जिसमें क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता का सम्मान हो. हम एक ऐसा क्षेत्र बनाना चाहते हैं जहां मतभेदों को सम्मानजनक तरीके से बातचीत के जरिए सुलझाया जाता है, ना कि जोर-जबरदस्ती या धमकी से.”
ऑस्ट्रेलिया के लिए अहम
बदलतीं भोगौलिक परिस्थितियों में ऑस्ट्रेलिया के लिए आसियान देशों की अहमियत और बढ़ गई है. बीते कुछ सालों में चीन ने कई बार ऑस्ट्रेलिया को आंखें दिखाई हैं. जब भी राजनीतिक विवाद हुआ, तो चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिसका उसे भारी खामियाजा भुगतना पड़ा.
इसके बाद ऑस्ट्रेलिया लगातार चीन के विकल्प तैयार करने की कोशिश में है. इसी दिशा में भारत के साथ संबंध भी मजबूत किए जा रहे हैं. लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के उत्पादों के लिए आसियान में बड़ा बाजार उपलब्ध है, जिसका फायदा उठाया जा सकता है.
ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टिट्यूट में क्षेत्रीय विश्लेषक रहमान याकूब कहते हैं, "आसियान देशों को अगर अपना आर्थिक विकास जारी रखना है तो उसे और ज्यादा ऊर्जा चाहिए. ऑस्ट्रेलिया उस ऊर्जा का स्रोत हो सकता है.”
इस क्षेत्र के देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया ने पिछले कुछ सालों में कई बड़े समझौते किए हैं. इनमें समग्र व्यापार समझौता और आसियान-ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड मुक्त व्यापार समझौता भी शामिल है.
2022 में दोनों पक्षों के बीच 178 अरब डॉलर का समझौता हुआ था, जो जापान, अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ हुए द्वीपक्षीय समझौतों से भी बड़ा है. आसियान और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2022 में द्वीपक्षीय निवेश लगभग 290 अरब डॉलर रहा था.
चीन पर मतभेद
ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पश्चिमी देश आसियान को चीन के प्रभाव को कम करने के एक माध्यम के रूप में देखते हैं लेकिन आसियान देशों में भी इस मुद्दे पर आपसी मतभेद हैं. कई देश चीन के दबदबे से परेशान हैं लेकिन मलयेशिया जैसे देश भी हैं जो चीन के साथ भी संबंध मधुर बनाए रखना चाहते हैं.
मेलबर्न में ये मतभेद दिखाई भी दिए. फिलीपींस के विदेश मंत्री एनरिके मनालो ने कहा कि "ज्यादा आर्थिक सुरक्षा और मजबूती से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा भी मजबूत होगी.” मनालो ने आसियान देशों से अनुरोध किया कि वे दक्षिणी चीन सागर में अंतरराष्ट्रीय कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए साथ आएं.
फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनांड मार्कोस जूनियर ने तो सीधा आरोप लगाया कि चीन उसके क्षेत्रों पर कब्जे की मंशा रखता है और आसियान देशों को इस खतरे को समझना चाहिए. मार्कोस ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत स्पष्ट किए जाने के बावजूद ऐसी भड़काऊ और एकतरफा गतिविधियां जारी हैं जो हमारी संप्रभुता पर हमला करती हैं.”
लेकिन दूसरी तरफ आसियान में ऐसे देश भी हैं जो चाहते हैं कि इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में चीन की भी भूमिका हो. मलयेशिया के प्रधानमंत्री ने कहा, "अगर उन्हें चीन से समस्या है तो वे इसे हम पर ना थोपें. हमें चीन से कोई दिक्कत नहीं है. चीन को लेकर फोबिया पश्चिम में है.”
ऑस्ट्रेलिया के लिए यह एक नाजुक स्थिति है क्योंकि चीन उसका भी सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने सम्मेलन में कहा, "सबका विकास शांति की दिशा में एक रास्ता तो है लेकिन शांति की गारंटी नहीं है. दांव पर क्या लगा है, यह एकदम स्पष्ट है. हम जानते हैं कि इलाके में अगर बड़ा युद्ध होता है तो यह इलाके के लोगों और अर्थव्यवस्थाओं विनाशकारी होगी. गाजा और यूक्रेन में हम ऐसा देख चुके हैं.”
विवेक कुमार (एएफपी)