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कहां से आया था डायनासोर का खात्मा करने वाला विशाल एस्टेरॉइड

१६ अगस्त २०२४

करीब 6.6 करोड़ साल पहले अंतरिक्ष से आया एक बड़ा एस्टेरॉइड पृथ्वी से टकराया. इसने डायनासोर समेत पृथ्वी पर मौजूद तीन चौथाई जीवों का सफाया कर दिया. अब पता चला है कि यह एस्टेरॉइड अंतरिक्ष में कहां से आया था.

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अक्टूबर 2022 में पेरिस में हुई एक नीलामी के दौरान डायनासोर का कंकाल.
अब तक हमें डायनासोरों की 700 प्रजातियों की जानकारी है. डायनासोरों के जीवाश्म सभी सात महादेशों में मिले हैं. माना जाता है कि आधुनिक पक्षी भी एक किस्म के डायनासोर हैं. इनका संबंध दो पैर वाले थरोपॉड डायनासोरों से है. तस्वीर: Laurent Zabulon/ABACA/IMAGO

करीब 660 लाख साल पहले का वो दिन डायनासोरों के लिए काल बनकर आया. लाखों सालों तक पृथ्वी पर राज करने वाली यह प्रजाति एक बड़ी दुघर्टना के कारण अचानक खत्म हो गई. वैज्ञानिक मानते हैं कि उस रोज करीब 10 किलोमीटर चौड़ा एक एस्टेरॉइड बहुत रफ्तार से आकर पृथ्वी पर गिरा.

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इससे लगभग 10 करोड़ परमाणु बमों के बराबर ऊर्जा निकली. पृथ्वी पर भूकंप और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं की झड़ी लग गई. इस भीषण घटनाक्रम ने कई जीवों की प्रजातियों का सफाया कर दिया. इन्हीं में डायनासोर भी शामिल थे.

ये एस्टेरॉइड अंतरिक्ष के किस हिस्से से आया था, इसपर कई दशकों से बहस चल रही है. अब एक नए शोध ने बताया है कि कहर बरपाने वाला यह एस्टेरॉइड हमारे सौर मंडल के सबसे बड़े और सबसे पुराने ग्रह बृहस्पति से भी पार से पृथ्वी पर पहुंचा था. इस शोध से जुड़ी जानकारी साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है. जर्मनी की कोलोन यूनिवर्सिटी के इंस्टिट्यूट ऑफ जियोलॉजी एंड मिनरलॉजी में वैज्ञानिक मारियो फिशर इस शोध के प्रमुख लेखक हैं.

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विलुप्त हो चुके डायनासोरों से जुड़ी हमारी तमाम जानकारियां जीवाश्मों पर आधारित हैं. तस्वीर: Willem Kolvoort/Nature Picture Library/IMAGO

मेन एस्टेरॉइड बेल्ट में है जवाब

बड़ी संख्या में वैज्ञानिक मानते हैं कि मेक्सिको में आज जहां यूकेटाइन प्रायद्वीप है, वहीं यह एस्टेरॉइड आकर गिरा था. यहां 145 किलोमीटर चौड़ा क्रेटर, जिसे एक स्थानीय समुदाय के नाम पर 'चिकचुलूब इम्पैक्टर' कहा जाता है, इसी घटना का सबूत माना जाता है.

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अब वैज्ञानिकों ने रुथेनियम नाम के एक दुर्लभ एलिमेंट की रासायनिक बनावट की समीक्षा करके पाया है कि मंगल ग्रह और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच मंडराने वाले एस्टेरॉइडों के भीतर पाए जाने वाले एलिमेंट के बीच समानता पाई है. ज्ञात एस्टेरॉइडों में ज्यादातर मंगल और बृहस्पति के बीच मौजूद मुख्य एस्टेरॉइड बेल्ट के भीतर चक्कर लगाते हैं. 660 लाख साल पहले जो एस्टेरॉइड पृथ्वी से आकर टकराया, वह भी यहीं से आया था.

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पृथ्वी पर बहुत दुर्लभ है रुथेनियम

इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने चिकचुलूब के पास कई भूगर्भीय परतों के डिपॉजिटों की पड़ताल की. उन्होंने यहां मिले रुथेनियम के आइसोटोप्स को मापा. यह एलिमेंट पृथ्वी पर बेहद दुर्लभ है, लेकिन एस्टेरॉइडों में आम है.

वैज्ञानिकों ने रुथेनियम आइसोटोप्स की तुलना मीटरॉइट्स के कई वर्गों से की. उन्होंने पाया कि चिकचुलूब इम्पैक्टर का कारक एक कार्बोनेशस एस्टेरॉइड था, जो कि बाहरी सौर मंडल में बना था. शोधकर्ताओं के मुताबिक, वे पुख्ता तौर पर कह सकते हैं कि उन्होंने जिस रुथेनियम का अध्ययन किया, वह 100 फीसदी पृथ्वी पर टकराने वाले एस्टेरॉइड का ही अंश है.

एस्टेरॉइड के दो मुख्य समूहों में अंतर के लिए रुथेनियम आइसोटोप्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन दो प्रकारों में पहला है एस-टाइप सिलिकेट एस्टेरॉइड, जो भीतरी सौर मंडल में सूर्य के ज्यादा नजदीकी हिस्सों में बनते हैं. पृथ्वी पर गिरने वाले ज्यादा मीटेरॉइट्स, एस-टाइप होते हैं. दूसरा प्रकार है सी-टाइप, यानी कार्बोनेशस एस्टेरॉइड जो बाहरी सौर मंगल में बनते हैं. डायनासोरों के खत्म होने की वजह बना एस्टेरॉइड बाहरी सौर मंडल से आया होगा, यह अनुमान वैज्ञानिक करीब दो दशक से लगा रहे थे. हालांकि, यह अब तक पुख्ता नहीं था.

मेन एस्टेरॉइड बेल्ट की चट्टानों का 'जेनेटिक फिंगरप्रिंट'

शोधकर्ताओं ने बताया है कि एस्टेरॉइड के टकराने से दुनिया में एक स्ट्रैटिग्रैफी (भूगर्भीय चट्टान और परतें) लेयर बनी. यह दो अहम कालखंडों के बीच की एक सीमा दर्शाती है. इसी परत में रुथेनियम समेत प्लैटिनम समूह के तत्व पाए गए.

बदलते प्रकृति और पर्यावरण के बीच करोड़ों साल बाद भी ये तत्व काफी स्थिर अवस्था में मिले. लाइवसाइंस से बात करते हुए शोध के प्रमुख लेखक मारियो फिशर ने इसे मेन एस्टेरॉइड बेल्ट की चट्टानों का 'जेनेटिक फिंगरप्रिंट' बताया. अनुमान है कि यह एस्टेरॉइड या तो अंतरिक्ष की अन्य चट्टानों के साथ टकराने के कारण या बाहरी सौर मंडल के असर से पृथ्वी को ओर बढ़ा होगा.  

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अतीत से मिल सकते हैं भविष्य के सबक

मारियो फिशर ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "कोलोन में हमारी प्रयोगशाला उन दुर्लभ लैब्स में है, जो इस तरह की गणनाएं कर सकती है. अब हम इस सारी जानकारियों के साथ यह कह सकते हैं कि वह एस्टेरॉइड बृहस्पति से भी परे बना था." वह कहते हैं यह शोध पृथ्वी से टकरा चुके खगोलीय पिंडों को लेकर हमारी समझ बेहतर कर सकती है.

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यह निष्कर्ष इसलिए भी अहम माना जा रहा है कि इस तरह के एस्टेरॉइड दुर्लभ ही पृथ्वी से टकराते हैं. फिशर मानते हैं कि पृथ्वी से टकराने वाले एस्टेरॉइडों के स्वभाव की बेहतर समझ अब तक रहस्य बनी हुई विज्ञान और तकनीक की इस पहेली का भी जवाब दे सकती है कि हमारे ग्रह पर पानी कैसे और कहां से आया.

भविष्य की ओर ध्यान दिलाते हुए वह कहते हैं, "अतीत के एस्टेरॉइडों को पढ़कर हम भविष्य की तैयारी कर सकते हैं. अगर हमें यह पता चले कि पहले बड़े स्तर पर प्रजातियों के विलुप्त होने की घटनाओं का सी-टाइप एस्टेरॉइडों के टकराने से हुए असर से संबंध हो सकता है, अगर भविष्य में कोई सी-टाइप एस्टेरॉइड पृथ्ली की कक्षा को पार करने वाला हो, तो हमें बेहद सावधान रहना होगा. क्योंकि, वह शायद आखिरी एस्टेरॉइड हो जिसके हम चश्मदीद बनेंगे."

एसएम/आरपी (एएफपी, रॉयटर्स)