पांच सालों में 89,000 हेक्टेयर जंगल हुए गायब
केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों में करीब 89,000 हेक्टेयर वन भूमि के सड़क बनाने और अन्य उपयोगों के लिए इस्तेमाल की अनुमति दे दी. यह इतना बड़ा इलाका है कि इसमें कई छोटे शहर समा जाएंगे.
गायब हुए जंगल
पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने 88,903.80 हेक्टेयर वन भूमि के अलग अलग गैर-वन उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की इजाजत दी. ये आंकड़े केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय में संसद में दिए हैं. भारत की कुल भूमि के करीब 24 प्रतिशत हिस्से में जंगल फैले हुए हैं.
जंगलों की जगह सड़कें
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इसमें से वन भूमि का सबसे ज्यादा डाइवर्जन सड़कें बनाने के लिए किया गया. 19,424 हेक्टेयर वन भूमि पर सड़कें बनाने की अनुमति दी गई.
खनन बनाम पर्यावरण
खनन गतिविधियां जंगलों के कम होने का दूसरा सबसे बड़ा कारण रहा. 18,847 हेक्टेयर वन भूमि पर खनन गतिविधियों की इजाजत दे दी गई.
सिंचाई के नाम
13,344 हेक्टेयर वन भूमि को अलग अलग सिंचाई परियोजनाओं के लिए अलग कर दिया गया. कम से कम 25 अलग अलग उद्देश्यों के लिए वन भूमि का डाइवर्जन किया गया.
बिजली व्यवस्था
9,469 हेक्टेयर वन भूमि को बिजली की तारों को बिछाने के लिए चिन्हित कर दिया गया.
सेना को भी चाहिए वन भूमि
7,630 हेक्टेयर वन भूमि के अलग अलग रक्षा परियोजनाओं के लिए इस्तेमाल की इजाजत दे दी गई.
वनों की अजीब परिभाषा
भारत में एक हेक्टेयर से ज्यादा कोई भी भूमि जहां पेड़ों की छतरी का घनत्व 10 प्रतिशत से ज्यादा हो, उसे जंगल कहा जाता है. यह नहीं देखा जाता कि ऐसी जमीन वाकई जंगल है या खेत या बगीचा या किसी की निजी संपत्ति.