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राजनीतिअर्जेंटीना

ब्रिक्स में शामिल होने से क्यों मुकर गया अर्जेन्टीना?

१ जनवरी २०२४

अर्जेन्टीना ने औपचारिक तौर पर विकासशील देशों के संगठन ब्रिक्स में शामिल होने से इनकार कर दिया है. देश के नए राष्ट्रपति कट्टर दक्षिणपंथी नेता हाविएर मिलेई के आने के बाद विदेश नीति में यह बड़ा बदलाव है.

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अर्जेन्टीना के राष्ट्रपति हाविएर मिलेई
अर्जेन्टीना के राष्ट्रपति हाविएर मिलेई खुद को अराजक पूंजीवादी कहते हैंतस्वीर: Agustin Marcarian/REUTERS

अर्जेन्टीना ब्रिक्स में शामिल नहीं होगा. पिछले हफ्ते उसने ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (BRICS) के इस तेजी से प्रभावशाली होते संगठन में शामिल होने से औपचारिक तौर पर इनकार कर दिया.

अर्जेन्टीना की विदेश नीति में यह बड़ा बदलाव है जो नए राष्ट्रपति हाविएर मिलेई के आने के बाद हुआ है. पांचों देशों के नेताओं को भेजे एक पत्र में मिलेई ने कहा कि अभी उनके देश के लिए इस संगठन की पूर्ण सदस्यता का सही समय नहीं है. यह पत्र 22 दिसंबर को लिखा गया था लेकिन इसे बीते शुक्रवार जारी किया गया.

अर्जेन्टीना उन छह देशों में से था जिन्हें अगस्त में ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आमंत्रित किया गया था. अर्जेन्टीना को 1 जनवरी 2024 से पूर्ण सदस्य बन जाना था. मिलेई के पूर्ववर्ती वामपंथी नेता अल्बेर्टो फर्नान्डेज ने ब्रिक्स की सदस्यता का समर्थन किया था क्योंकि वह इसे नए बाजारों तक पहुंचने के एक मौके के तौर पर देखते थे.

बदहाल है अर्जेन्टीना

अर्जेन्टीना की अर्थव्यवस्था खराब हालत में है और देश मुश्किल स्थिति से गुजर रहा है. ऐसे में ब्रिक्स के बाजारों को पूर्व राष्ट्रपति एक बड़े मौके के रूप में देख रहे थे. ब्रिक्स के मौजूदा पांच सदस्यों में दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी रहती है और विश्व की कुल जीडीपी का करीब एक चौथाई हिस्सा इन्हीं देशों से आता है.

जब अर्जेन्टीना में चुनाव हुए, तब देश 40 फीसदी से ज्यादा गरीबी और 140 फीसदी महंगाई दर से जूझ रहा था. दुनिया की सबसे अस्थिर अर्थव्यवस्थाओं में से एक अर्जेन्टीना के लोगों के लिए बीते कुछ साल खासे मुश्किल रहे हैं. इसी आर्थिक बदहाली से निकलने के लिए फर्नान्डेज ने ब्रिक्स की सदस्यता का फैसला किया था, वही नवंबर में हुए चुनाव में उनकी हार की वजह बनी और अति-दक्षिणपंथी नेता मिलेई चुनाव जीत गए. खुद को ‘अनार्को-कैपिटलिस्ट' कहने वाले मिलेई ने देश की अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं, ताकि व्यापारिक गतिविधियों में सरकारी दखलअंदाजी घटाई जा सके.

विदेश नीति के मामले में वह ‘पश्चिम से मुक्त देशों' के साथ खड़ा होने की बात करते हैं. इन पश्चिमी देशों में अमेरिका और इस्राएल का नाम उन्होंने खासतौर पर लिया है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रचार के दौरान मिलेई ने वामपंथी सरकारों वाले देशों की भी निंदा की थी और कहा था कि वह उनके साथ कूटनीतिक रिश्ते भी नहीं रखेंगे.

भारत से रिश्ते

लेकिन ब्रिक्स नेताओं को भेजे अपने पत्र में उन्होंने कहा कि वह "द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत” करना चाहते हैं और "व्यापार और निवेश” का बहाव तेज करना चाहते हैं. मिलेई ने सभी पांच नेताओं से मिलने की भी इच्छा जताई. जब मिलेई चुनाव जीते थे तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सोशल मीडिया पर उन्हें बधाई दी थी.

नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर अपने बधाई संदेश में कहा, "भारत और अर्जेन्टीना के रणनीतिक संबंधों को और विविध व विस्तृत बनाने की दिशा में आपके साथ मिलकर काम करने को लेकर उत्साहित हैं."

भारत और अर्जेन्टीना एक-दूसरे के अहम व्यापारिक साझीदार हैं. पिछले साल दोनों देशों के बीच 6.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जो अब तक का सबसे अधिक है. 2021 के मुकाबले यह 12 फीसदी ज्यादा था. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक भारत अर्जेन्टीना का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.

वीके/एए (एपी, रॉयटर्स)

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