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विज्ञानजापान

चांद कैसे बना, क्या यह पता चलने वाला है?

१५ फ़रवरी २०२४

जापान के एक मानव-रहित अंतरिक्ष यान ने चांद के 10 पत्थरों का अध्ययन कर जानकारी भेजी है. जापान की अंतरिक्ष एजेंसी के अधिकारी इस बात से बेहद रोमांचित हैं क्योंकि इस जानकारी से चांद के बनने के बारे में सुराग मिल सकते हैं.

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जापान
जापान का यान चांद के रहस्य पर से पर्दा उठा सकता हैतस्वीर: Uncredited/JAXA/Takara Tomy/Sony Group Corporation/Doshisha University/AP/dpa/picture alliance

स्मार्ट लैंडर फॉर इंवेस्टिगेटिंग मून (एसएलआईएम) पिछले महीने चांद की सतह पर उतरा था. तबसे उसने अपने मल्टी-बैंड स्पेक्ट्रल कैमरे का इस्तेमाल करके चांद के पत्थरों की संरचना का अध्ययन किया.

यह जापान का पहला चंद्र मिशन है. यह अंतरिक्ष यान 20 जनवरी को एकदम सही जगह पर लेकिन उल्टा उतरा था. शुरू में इसके सोलर पैनल सूरज को देख नहीं पा रहे थे. पृथ्वी से थोड़े से संचार के बाद इसे बंद भी कर दिया गया था.

क्या अवधारणा है चांद के बनने की

लेकिन इसने आठवें दिन फिर से काम करना शुरू कर दिया और धरती पर जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) के कमांड सेंटर से संपर्क स्थापित किया. फिर से एक्टिवेट होने के बाद उसने एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर भेजी जिसमें छह पत्थरों समेत चांद की पथरीला सतह नजर आई. यान ने कुल मिलाकर 10 पत्थरों से डाटा हासिल किया.

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एसएलआईएम को चांद पर भेज कर जापान वहां पहुंचने वाला पांचवां देश बनातस्वीर: JAXA/ZUMA Wire/IMAGO

हर पत्थर को कुत्तों की नस्लों का नाम भी दिया गया, जैसे "अकिताइनु", "बीगल", "शिबाइनु" आदि. जाक्सा के प्रोजेक्ट मैनेजर शिनिचिरो साकाई का कहना है, "हम उम्मीद कर रहे हैं कि इन पत्थरों की जांच से हमें चांद के बनने की प्रक्रिया का पता चल जाएगा."

उन्होंने बताया कि चांद के पत्थरों और धरती के पत्थरों की खनिज संरचना की तुलना कर वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि इनमें एक जैसे तत्व हैं या नहीं. "जायंट इंपैक्ट" अवधारणा के तहत, यह माना जाता है कि चांद धरती के एक और ग्रह से टकराने और उस टक्कर के बाद एक छोटे टुकड़े के निकलने की वजह से बना था.

जाक्सा की टीम को उम्मीद थी एसएलआईएम सिर्फ एक पत्थर का अध्ययन कर पाएगा. ऐसे में 10 पत्थरों का डाटा मिलने से टीम में जश्न का माहौल है और सदस्य खुद को चांद के बनने की प्रक्रिया के अध्ययन को जारी रखने के लिए प्रेरित महसूस कर रहे हैं.

आगे भी हैं चुनौतियां

एसएलआईएम इस समय "हाइबरनेट" कर रहा है. यह चांद पर रात का समय है जो फरवरी के आखिरी दिनों तक चलेगा. इस बात का अभी पता नहीं चला है कि यान और उसका स्पेक्ट्रोस्कोप इस दौरान आने वाले भीषण ठंडे तापमान को बर्दाश्त कर पाएगा और सूरज की रोशनी के लौटने पर "उठ" पाएगा.

चांद
एसएलआईएम को चांद पर भेजने वाली जाक्सा की टीम के सदस्य रोमांचित हैंतस्वीर: Eugene Hoshiko/AP Photo/picture alliance

यान शीओली क्रेटर के पास स्थित ज्वालामुखीय पत्थरों से भरे एक इलाके में अपने लक्ष्य से करीब 55 मीटर दूर उतरा था. यह पिछले चंद्र मिशनों के मुकाबले सबसे सटीक लैंडिंग थी. पिछले मिशनों में कम से कम 10 किलोमीटर चौड़े समतल इलाकों में यानों को उतारा गया था.

इस यान के दो मुख्य इंजनों में से एक में आखिरी मिनट में एक खराबी आ गई थी जिसकी वजह से योजना से ज्यादा सख्त लैंडिंग हुई. जाक्सा के मुताबिक अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो लैंडिंग लक्ष्य के कुछ की मीटर पास होती.

यान में दो खोजी उपकरण हैं जिन्हें लैंडिंग से ठीक पहले छोड़ दिया गया था. उन उपकरणों ने लैंडिंग, आस पास के इलाके और दूसरे डाटा की रिकॉर्डिंग की. उन्होंने एसएलआईएएम के शुरुआती काम को रिकॉर्ड करने का अपना मिशन पूरा कर लिया था और उसके बाद से उन्होंने काम करना बंद कर दिया.

इस लैंडिंग की वजह से जापान चांद पर पहुंचने वाला पांचवां देश बन गया. उससे पहले अमेरिका, पूर्ववर्ती सोवियत संघ, चीन और भारत चांद पर पहुंच चुके हैं.

सीके/एए (एपी)