पाकिस्तान में इस हाल में रहते हैं अफगान
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद के पास आई-12 नाम की जगह पर अफगान शरणार्थियों की बस्ती है. वहां रहने वाले कुछ लोगों से डीडब्ल्यू ने पूछा कि क्या वे पाकिस्तान में खुश हैं?
रहना मुश्किल है
इस बस्ती में लगभग 700 अफगान परिवार रहते हैं. ये हैं समी गुल, जो पिछले 37 साल से पाकिस्तान में रह रहे हैं. पिछले छह साल उनके इसी बस्ती में गुजरे हैं. वह कहते हैं कि यह बस्ती बहुत बुरे हाल में है और बारिश के मौसम में यहां पानी भर जाता है. इस बस्ती से पक्की सड़क भी बहुत दूर है.
बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं
गुला गाई बस्ती में रहने वाले लोग पीने के पानी की समस्या से दोचार हैं. इसके अलावा अगर कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए तो उसे अस्पताल ले जाने पर ही 1000-1200 खर्च हो जाते हैं, जो कई लोगों के बस में नहीं होता. ऐसे में, कई लोग बीमार होने पर घरों में ही पड़े रहते हैं.
अफगानिस्तान वापसी मुश्किल
अब्दुल जब्बार पाकिस्तान में 35 साल से रह रहे हैं. वह कहते हैं कि अफगानिस्तान में हालात अच्छे नहीं हैं इसीलिए वह चाहते हैं कि 12 सदस्यों वाले उनके परिवार का पाकिस्तान में ही कोई स्थायी बंदोबस्त हो जाए. आज भी वह अपनी पहचान एक अफगान नागरिक के तौर पर ही मानते हैं.
बहुत मुहब्ब्त मिली
शेर खान सात बरस की उम्र में अफगानिस्तान से पाकिस्तान आ गए थे. अब उनकी उम्र 47 बरस है. खान कहते हैं कि पाकिस्तान ने उनको बहुत मुहब्बत दी है. यहीं उनके माता पिता ने आखिरी सांस ली. खान का कहना है कि वह पाकिस्तान में ही पले बढ़े हैं इसीलिए वह खुद को अफगान नहीं, बल्कि पाकिस्तानी महसूस करते हैं.
मेरी पहचान पाकिस्तानी है
हमीद खान 34 साल से पाकिस्तान में रह रहे हैं. वह कहते हैं कि हालांकि उनकी पैदाइश अफगानिस्तान में हुई, लेकिन उन्होंने अपनी लगभग पूरी उम्र पाकिस्तान में ही गुजारी है और इसीलिए एक पाकिस्तानी के तौर पर उन्हें अपनी पहचान से कोई दिक्कत नहीं है. वह कहते हैं कि पाकिस्तान ने शरण दी, अच्छा सुलूक किया और बहुत कुछ दिया.
युवाओं के लिए मौके नहीं
युवा नासिर खान इस बस्ती में बुनियादी सुविधाओं की कमी से खफा हैं. वह पाकिस्तान में ही रहना चाहते हैं लेकिन कहते हैं कि युवाओं के लिए यहां मौकों की कमी है. वह चाहते हैं कि बस्ती में कम से कम कुछ निर्माण कार्य हो, सड़कें बनाई जाएं ताकि रहन सहन में आसानी हो.
बच्चे क्या करें
पाकिस्तान में रहने वाले अफगान शरणार्थियों की संख्या इस समय 14 लाख के आसपास है. इस बस्ती में 700 परिवारों के बच्चों के लिए सिर्फ एक स्कूल है. बच्चों के लिए खेलने के लिए न तो कोई मैदान है और न ही कोई और सुविधा. ऐसे में, ये बच्चे कीचड़ में खेलकर दिल बहला लेते हैं.
स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
इस बस्ती में वैसे तो तीन क्लीनिक हैं, जिनमें से एक जर्मन संस्थाओं की मदद से चलता है. लेकिन इन क्लीनिकों में डॉक्टर हमेशा मौजूद नहीं रहते. खास कर बरसात और सर्दी के मौसम में इस बस्ती में रहने वाले लोगों को बहुत परेशियानियां होती हैं.