एम्सटर्डम के म्यूजियम में कहां से आई इतनी बड़ी चींटियां
एम्सटर्डम का राइक्स म्यूजियम वैसे तो रेम्ब्रांट की "नाइटवॉच" जैसी डच उत्कृष्ट कलाकृतियों का घर है लेकिन इन दिनों एक खास प्रदर्शनी लोगों का ध्यान खींच रही है.
दीवार पर रेंगती बड़ी-बड़ी चींटियां
राइक्स म्यूजियम की दीवारों पर इन दिनों सिर्फ चींटियां ही चींटियां नजर आ रही हैं. वह भी छोटी नहीं, बहुत विशाल. लेकिन चीटियों की इस प्रदर्शनी में एक संदेश छिपा है.
चींटियां दे रही हैं संदेश
रफाएल गोमेज बैरोस एक कोलंबियाई समकालीन कलाकार हैं और उन्होंने ही विशाल चींटियों की प्रदर्शनी लगाई है. वे इसके जरिए प्रवासन और जबरन विस्थापन की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं.
इधर-उधर 700 चींटियां
राइक्स म्यूजियम की दीवार हो या फिर छत, आपको यह विशाल चींटियां हर जगह नजर आ जाएंगी. बैरोस का कहना है कि उन्होंने 1964 के कोलंबियाई संघर्ष से प्रेरित हो कर इस प्रदर्शनी को लगाया है. सरकार और गुरिल्ला समूहों के बीच संघर्ष के कारण लाखों कोलंबियाई नागरिकों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
पीड़ित भी, अपराधी भी
बैरोस की चींटियों का शरीर वास्तव में दो मानव खोपड़ियों से बना है. उनका कहना है यह पीड़ितों और अपराधियों दोनों का प्रतिनिधित्व करता है.
चमेली की डाली और चींटी के पैर
कोलंबियाई संघर्ष के दौरान कई जगहों पर लाशें पड़ी थीं और शरीर सड़ रहा था, ऐसे में बदबू को दूर करने के लिए चमेली के पेड़ की डालियों को शव पर फैलाया गया था, इसलिए बैरोस ने चमेली की शाखाओं से चींटियों के पैर बनाए हैं.
"हाउस टेकन"
बैरोस इससे पहले इस प्रदर्शनी को कोलंबिया, बोलीविया, अमेरिका और स्वीडन में दिखा चुके हैं और उनका कहना है कि "हाउस टेकन" प्रदर्शनी का मतलब दर्शकों के मुताबिक बदलता रहता है. बैरोस कहते हैं, "लोग अलग-अलग कारणों से पलायन करते हैं. जैसे देश का दिवालिया हो जाना, युद्ध या फिर अवसरों की कमी होना."