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चीन और भारत में हुई वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा मौतें

१० जून २०२४

1980 से 2020 के बीच इंसानी गतिवधियों से हुए उत्सर्जन और जंगल की आग से 13.5 करोड़ लोगों की अकाल मौत हुई. यह दावा सोमवार को जारी हुई सिंगापुर के एक विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में किया गया है.

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स्मॉग से घिरा नई दिल्ली का इंडिया गेट
एशिया में पीएम2.5 की वजह से सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. इसमें सबसे ज्यादा मौतें चीन और भारत में हुई हैंतस्वीर: Hindustan Times/Imago Images

सिंगापुर की नैंनयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (एनटीयू) ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि अल नीनो और इंडियन ओशन डाइपोल जैसे मौसमी प्रभावों ने हवा में प्रदूषकों की सघनता बढ़ाकर इनके बुरे प्रभाव को गहरा किया है. पीएम2.5 कहे जाने वाले अतिसूक्ष्म कण यानी पार्टिक्युलेट मैटर, सांस के साथ अंदर चले जाएं तो इंसानी सेहत के लिए बड़ा खतरा हैं क्योंकि वह इतने छोटे हैं कि आसानी से खून में घुल सकते हैं. यह वाहनों के प्रदूषण और औद्योगिक उत्सर्जन से तो निकलते ही हैं लेकिन पर्यावरणीय कारकों जैसे जंगल की आग और तूफानों से भी फैलते हैं.

पर्यावरण जर्नल एंवायर्नमेंटल इंटरनेशनल में छपी रिपोर्ट पर दिए बयान में यूनिवर्सिटी ने कहा है कि ये महीन पार्टिक्युलेट मैटर 1980 से 2020 के बीच हुई करीब 13.5 करोड़ मौतों से जुड़े हुए हैं. रिपोर्ट में पाया गया कि संभावित औसत उम्र से पहले ही बीमारियों और दूसरी परिस्थितियों की वजह से लोगों की मौत हो रही है, जिन्हें रोका जा सकता था. इसमें हार्ट स्ट्रोक, दिल और फेफड़ों की बीमारियां और कैंसर शामिल हैं.

नेपाल की राजधानी काठमांडू में वायु प्रदूषण
एशियाई देशों पर प्रदूषण की मार सबसे ज्यादा पड़ी है. अप्रैल में काठमांडू का यह हाल हुआ. तस्वीर: Narendra Shrestha/EPA

एशिया पर गंदी हवा की ज्यादा मार

रिपोर्ट बताती है कि मौसमी प्रभावों ने मौतों में 14 फीसदी इजाफा किया है. एशिया में पीएम2.5 की वजह से सबसे ज्यादा मौतें ​​​​​हुई हैं, करीब 9.8 करोड़ लोगों की जानें गई. इसमें सबसे ज्यादा मौतें चीन और भारत में हुई हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और जापान में भी बड़ी संख्या में लोगों की अकाल मौत हुई है. इनका आंकड़ा 20 से 50 लाख के बीच है. यह अध्ययन हवा की गुणवत्ता और जलवायु पर हुई अब तक की सबसे विस्तृत स्टडी है जिसमें पिछले 40 बरसों का डाटा इस्तेमाल करके पार्टिक्युलेट मैटर के इंसानी सेहत पर पड़ने वाले असर की बड़ी तस्वीर दिखाने की कोशिश की गई है.

इससे पहले आई रिपोर्टों में भी चीन में वायु प्रदूषण के हालात दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा गंभीर बताए जाते रहे हैं. 2023 से अब तक कई रिसर्च आईं जिनमें कहा गया कि चीन ने हालात को काबू में करने की दिशा में प्रगति की है लेकिन वह काफी नहीं है. अगर हालात यही रहे तो लाखों की संख्या में और मौतें होंगी. 

एनटीयू के एशियन स्कूल ऑफ द एंवायर्नमेंट में असोसिएट प्रोफेसर और इस रिपोर्ट के मुख्य रिसर्चर स्टीव यिम ने कहा, हमारे नतीजे दिखाते हैं कि मौसमी पैटर्न में बदलाव प्रदूषण को और भी बुरा बना सकते हैं. जब जलवायु से जुड़ी कोई घटना होती है जैसे अल नीनो, तो प्रदूषण का स्तर ऊपर जा सकता है जिसका मतलब है कि पीएम2.5 की वजह से ज्यादा लोगों की वक्त से पहले मौत सकती है. यह दिखाता है कि हमें दुनिया भर में प्रदूषण से जिंदगी बचाने के लिए इन जलवायु पैटर्न को समझने और ध्यान देने की जरूरत है.

चीन के सेंट्रल बिजनेस डिस्ट्रिक्ट में मास्क पहने एक व्यक्ति
विकास की राह पर दौढ़ता चीन भी वायु प्रदूषण की चपेट में है.तस्वीर: Simon Song/Newscom/SCMP/IMAGO

कैसे निकाले गए नतीजे

सिंगापुर में हुए इस शोध में रिसर्चरों ने अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा यानी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के उस सैटेलाइट डाटा का अध्ययन किया जो धरती के पर्यावरण में पार्टिक्युलेट मैटर के स्तर से जुड़ा है. अमेरिका के ही एक स्वतंत्र शोध संस्थान इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स और इवैल्यूएशन के प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के चलते हुई मौतों के आंकड़ों की भी स्टडी की. मौसमी पैटर्न से जुड़ी सूचनाएं नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेयरिक एडमिनिस्ट्रेशन से ली गईं.

इस शोध के केंद्र में केवल सामान्य मौसमी घटनाओं का प्रदूषण पर असर था. आगे के अध्ययनों में जलवायु परिवर्तन के असर को भी जोड़ा जाएगा. सिंगापुर की यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट बनाने में हांगकांग, ब्रिटेन और चीन के रिसर्चर भी शामिल रहे.

एसबी/ओएसजे (एएफपी)

वायु प्रदूषण और ग्रीन एनर्जी दोनों के मामले में अगुवा है चीन

 

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