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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी युद्ध का अखाड़ा बना मध्य-पूर्व

कैथरीन शेअर
७ अक्टूबर २०२३

अमेरिका ने मध्य-पूर्व को कुछ कंप्यूटर चिप्स के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है, ताकि AI पर आधारित चिप्स चीन को न मिल सकें. AI विकसित करने की प्रतिस्पर्धा अब तकनीकी युद्ध का आकार ले रही है. इसकी जद में कई देश आ सकते हैं.

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Saudi-Arabien Riad | Kronprinz Mohammed Bin Salman empfängt Xi Jinping
पिछले साल दिसंबर में जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग सऊदी अरब गए थे, तब दोनों देशों के बीच सूचना प्रौद्योगिकी समेत 34 निवेश समझौते हुए थे.तस्वीर: Bandar Algaloud/Saudi Royal Court/REUTERS

करीब एक महीने पहले अमेरिका की बड़ी तकनीकी कंपनी ने रहस्यमय घोषणा की थी. एनवीडिया दुनिया की सबसे बेहतर कंप्यूटर चिप्स का उत्पादन करने वाली कंपनी है. यह सुपर कंप्यूटर से लेकर आधुनिक कारों और सेलफोन तक सब कुछ चलाने के लिए जरूरी छोटे सिलिकॉन कार्ड का उत्पादन करती है. कंपनी ने कहा कि अमेरिका ने अपने सबसे बेहतर चिप्स का निर्यात ‘मध्य पूर्व के कुछ देशों' तक ही सीमित करने का फैसला लिया है.

एनवीडिया ने यह नहीं बताया कि इस फैसले से कौन से देश प्रभावित होंगे और यह फैसला क्यों किया गया. हालांकि, पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस फैसले से यह संकेत मिल रहा है कि चीन और अमेरिका के बीच ‘तकनीकी युद्ध' मध्य-पूर्व में शुरू हो चुका है.

पिछले कुछ समय से, दुनिया को बदल देने वाली आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक के मामले में अमेरिका चीन से आगे निकलने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका यह प्रयास कर रहा है कि बेहतर AI मॉडल के लिए आवश्यक चिप्स या सेमीकंडक्टर को चीन तक न पहुंचने दिया जाए.

एनवीडिया के चिप्स डेटा को बहुत तेजी से प्रॉसेस करते हैं. ये इतनी कीमती हैं कि जानकार इन्हें 'नया तेल' कह रहे हैं.
एनवीडिया के चिप्स डेटा को बहुत तेजी से प्रॉसेस करते हैं. ये इतनी कीमती हैं कि जानकार इन्हें 'नया तेल' कह रहे हैं.तस्वीर: Andre M. Chang/Zuma Wire/picture alliance

इन चिप्स और सेमीकंडक्टर के बिना AI को विकसित कर पाना मुश्किल है. इनका उत्पादन ज्यादातर अमेरिका स्थित कंपनियां करती हैं, जिनमें एनवीडिया भी शामिल है. इसलिए पिछले साल अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने घोषणा की थी कि वह चीन और रूस को बेहतर चिप्स के निर्यात पर पाबंदी लगा रहा है. इस साल अगस्त महीने में मध्य-पूर्व के कुछ देशों के लिए लगाई गई पाबंदी इन प्रतिबंधों की दिशा में अगला कदम है.

मध्य पूर्व के कौन से देश हुए प्रभावित

इस मामले में न तो अमेरिकी सरकार और न ही एनवीडिया कुछ कह रही है. हालांकि, कुछ देशों को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं.

वाशिंगटन में अमेरिकी विश्वविद्यालय में अमेरिकी विदेश नीति पढ़ाने वाले और मध्य-पूर्व में चीन की उपस्थिति के बारे में नियमित रूप से लिखने वाले प्रोफेसर जॉन कैलाब्रेसे ने अनुमान लगाया, "मेरे हिसाब से ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जांच के दायरे में हो सकते हैं. ईरान ने उच्च स्तर की ‘हैकिंग' क्षमता का प्रदर्शन किया है. सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के पास आर्थिक साधन हैं. इसमें कतर और इस्राएल का नाम भी शामिल हो सकता है. इन सभी मामलों में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा' का हवाला दिया जा सकता है.”

चैटजीपीटी के AI के एक हालिया संस्करण को 1,024 एनवीडिया चिप्स पर ट्रेन किया गया था.
चैटजीपीटी के AI के एक हालिया संस्करण को 1,024 एनवीडिया चिप्स पर ट्रेन किया गया था.तस्वीर: Choong Deng Xiang/Unsplash

तेल समृद्ध खाड़ी देश दुनिया में AI पर सबसे अधिक खर्च करने वालों में शामिल हैं. सऊदी अरब, UAE और कतर सभी अपनी अर्थव्यवस्थाओं में हो रहे डिजिटल बदलाव को देख रहे हैं.

इस्राएल AI में बड़ा निवेश करने वाला एक और मध्य-पूर्वी देश है. दुनिया के लगभग सभी बेहतर चिप निर्माता पहले से ही वहां काम कर रहे हैं. दरअसल 2020 में एनवीडिया ने एक इस्राएली कंपनी मेलानॉक्स को खरीदा था और यह सहायक कंपनी अब अमेरिका के बाहर इसका सबसे बड़ा संचालन केंद्र है.

मध्य पूर्व में चिप निर्यात को क्यों नियंत्रित करना चाहता है अमेरिका?

निर्यात प्रतिबंधों की घोषणा करते हुए अमेरिकी सरकार ने कहा कि AI पर आधारित चिप्स ऐसी तकनीकें हैं, जो सैन्य आधुनिकीकरण और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को बढ़ा सकती हैं. 2022 में लिखी गई किताब ‘चिप वॉर: द फाइट फॉर द वर्ल्ड मोस्ट क्रिटिकल टेक्नोलॉजी' के लेखक क्रिस्टोफर मिलर ने कहा, "मुख्य चिंता यह है कि चीनी कंपनियां मध्य पूर्वी देशों को प्रतिबंधों से बचने और ऐसे बेहतर चिप्स हासिल करने के साधन के रूप में देख सकती हैं, जिन्हें वे खुद नहीं खरीद सकतीं.”

अमेरिका की टफ्ट्स यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय इतिहास के असोसिएट प्रोफेसर मिलर ने DW को बताया, "मध्य-पूर्व के बाजारों में हुआवे जैसी चीनी तकनीकी कंपनियों की बढ़ती उपस्थिति इन चिंताओं के बढ़ने की वजह है.”

China Shenzhen Tencent Holdings Ltd
शोधकर्ता मानते हैं कि चीन के तकनीक के क्षेत्र में निवेश करने के पीछे सोचा-समझा और लक्ष्य ध्यान में रखकर लिया गया फैसला है. इसका मकसद चीन के अपने राजनीतिक एजेंडो को आगे बढ़ाना है.तस्वीर: Zhu Min/dpa/HPIC/picture alliance

अमेरिका स्थित सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी ने 2022 में एक अध्ययन किया था. इसमें पता किया गया कि चीनी सेना को AI पर आधारित चिप्स कहां से मिल रहे थे. इसमें पाया गया कि अधिकांश खरीदारी सीधे नहीं की गई थी, बल्कि बिचौलियों के जरिए हुई थी. इसमें आधिकारिक तौर पर लाइसेंस रखने वाले वितरक और शेल कंपनियां, दोनों शामिल थीं.

इस साल जून में रॉयटर्स के पत्रकारों ने चीन में बेहतर चिप्स के चोरी-छिपे व्यापार पर रिपोर्ट दी थी. चीनी विक्रेताओं ने कहा कि उन्हें अक्सर भारत, ताइवान और सिंगापुर सहित अन्य देशों में पंजीकृत कंपनियों से चिप्स मिलते हैं.

चीन और मध्य-पूर्व के बीच बेहतर संबंध

इस तरह के लीकेज की संभावना मध्य-पूर्व में भी हो सकती है, क्योंकि जो देश AI में भारी निवेश कर रहे हैं, उन्होंने भी पिछले 5 से 10 वर्षों में चीन के साथ अपने संबंध बेहतर बनाए हैं.

वाशिंगटन स्थित कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के शोधकर्ताओं ने अगस्त 2023 के एक अध्ययन में लिखा है कि चीन के साथ सऊदी अरब का तकनीकी और वैज्ञानिक सहयोग लगभग सात वर्षों से मजबूत हो रहा है.

किंग अब्दुल्ला यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (KAUST) में काफी संख्या में चीनी छात्र और शिक्षक हैं. कार्नेगी के अध्ययन में कहा गया है कि KAUST और चीन के अनुसंधान संगठनों के बीच सहयोग वहां बने व्यक्तिगत संबंधों के कारण बढ़ा है. इस वर्ष के अंत तक KAUST को एनवीडिया से 3,000 बेहतर H100 चिप्स मिलने की उम्मीद है.

Saudi-Arabien 2019 | Männer auf dem Campus der King Abdullah Universität in Thuwal
सऊदी अरब की KAUST विश्वविद्यालय की वेबसाइट के मुताबिक करीब 20 फीसदी छात्र और 34 फीसदी पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता चीनी हैं.तस्वीर: Giuseppe Cacace/AFP/Getty Images

AI के मामले में UAE भी ऐसी ही स्थिति में है. इसने 2017 में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस मंत्रालय की स्थापना की और इसका पहले से ही अपना बेहतर AI मॉडल है, जिसे फाल्कॉन कहा जाता है. साथ ही, UAE ने इसमें अविश्वसनीय प्रतिष्ठा हासिल कर ली है. सितंबर की शुरुआत में यूरोपीय संघ, अमेरिका और ब्रिटेन के अधिकारियों ने UAE का दौरा किया, ताकि उसे रूस को प्रतिबंधित माल भेजने से रोक सकें. इसमें AI पर आधारित चिप्स भी शामिल हैं.

वाशिंगटन स्थित मिडिल ईस्ट इंस्टिट्यूट में रणनीतिक तकनीकों और साइबर सुरक्षा कार्यक्रम के निदेशक मोहम्मद सोलिमन ने DW को बताया, "इसका मतलब यह नहीं है कि अमेरिका सोचता है कि UAE और सऊदी अरब जानबूझकर चीन और रूस को ऐसी तकनीक देंगे.” उन्होंने तर्क दिया कि अमेरिका दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है और वे तनाव नहीं बढ़ाना चाहेंगे.

उन्होंने कहा, "अमेरिकी अधिकारी शायद इस बात से अधिक चिंतित हैं कि एनवीडिया चिप्स का इस्तेमाल जासूसी और रिवर्स इंजीनियरिंग (किसी उत्पाद को तोड़कर उसकी जानकारी हासिल करना) के लिए किया जा सकता है या अनजाने में रूस या चीन को भेजा जा सकता है. इसकी वजह यह है कि इन दोनों देशों की खाड़ी देशों में उपस्थिति बढ़ी है.”

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चीन और इस्राएल के प्रगाढ़ हो रहे संबंध

इस्राएल ने भी चीन के साथ अपने रिश्ते प्रगाढ़ किए हैं. हुआवे और श्याओमी, दोनों के वहां अनुसंधान केंद्र हैं. चीनी निवेशकों ने घरेलू स्तर पर चिप बनाने वाली कंपनियों में निवेश करने वाले फर्मों को आर्थिक मदद की है.

तकनीक पर शोध करने वाले शोधकर्ता डैनिट गैल ने अमेरिका स्थित काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के लिए 2019 में एक पेपर लिखा था. इसमें उन्होंने कहा था कि ऐसा लगता है कि हाल के दिनों में इन्टेल जैसी अमेरिकी तकनीकी कंपनियों ने चीन को चिप्स का निर्यात जारी रखने के लिए अपने इस्राएली केंद्रों का इस्तेमाल किया है.

उन्होंने तर्क दिया, "अमेरिकी व्यापार प्रतिबंध सख्ती से लागू होने के बाद चीन को अन्य तकनीकी कंपनियों के साथ व्यापार करने की जरूरत महसूस हुई और यह इस्राएल के लिए अप्रत्याशित आर्थिक वरदान साबित हुआ. हालांकि, यह हमेशा नहीं चल सकता. तकनीक को बेहतर बनाने और सैन्य इस्तेमाल के लिए चिप्स के महत्व का मतलब है कि इस्राएल की स्थिति पर अमेरिका अपनी नजर बनाए रखेगा.”

इस्राएल को अपने अमेरिकी सहयोगियों और चीनी निवेशकों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ सकती है. हालांकि, मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के सोलिमन को यह विश्वास नहीं है कि नए निर्यात प्रतिबंध इस्राएल पर लागू होंगे.

Israel 2019 | Vorführung eines israelischen F-35-Kampfjets während der "Blue Flag"-Übung
अमेरिका ने अपना F-35 विमान इस्राएल के साथ साझा किया है, लेकिन यही विमान संयुक्त अरब अमीरात को देने में वह अनिच्छुक रहा है.तस्वीर: Emmanuel Dunand/AFP/Getty Images

उन्होंने कहा, "इस्राएल के संबंध अमेरिका की तुलना में चीन और रूस के साथ ज्यादा बेहतर हैं. हालांकि, इस्राएल और अमेरिका अब भी एक-दूसरे को बेहद करीबी सहयोगी मानते हैं. अमेरिका अपनी कुछ सबसे बेहतर और संवेदनशील रक्षा तकनीकों को इस्राएल के साथ साझा करता है.”

हालांकि, चिप्स पर निर्यात प्रतिबंधों ने संभवतः इस्राएल में एनवीडिया को पहले से ही प्रभावित कर दिया है. नए नियम पूरी तरह या आंशिक रूप से अमेरिकी तकनीकों के इस्तेमाल से बनने वाले उत्पादों पर भी लागू होते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि एनवीडिया के चिप्स इस्राएल में बने हैं या अमेरिका में. रिपोर्टों से पता चलता है कि चीन पहले से ही एनवीडिया इस्राएल का एक प्रमुख ग्राहक था.

निर्यात पर प्रतिबंध कितना राजनीतिक है?

सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के फेलो ओवेन डेनियल्स ने कहा, "मानवाधिकारों की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है. ‘डेमोक्रेटिक AI' अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए महत्वपूर्ण है और इस बात की आशंका है कि सत्तावादी देश AI का इस्तेमाल मानवाधिकारों के दमन के लिए कर रहे हैं.

हालांकि, इस रिपोर्ट के लिए बातचीत के दौरान न तो डेनियल्स और न ही अन्य विशेषज्ञों ने इस बात पर गौर किया कि निर्यात पर पाबंदी, मौजूदा समय में बड़े सौदों के लिए मध्य पूर्वी देशों पर राजनीतिक दबाव डालने का तरीका था. जैसे, सऊदी-अमेरिका रक्षा समझौता या सऊदी-इस्राएल संबध बेहतर बनाने की कोशिश.

चिप बनाने की होड़ में आगे निकलने को तैयार जर्मनी

डेनियल्स ने DW को बताया, "हम इन प्रतिबंधों के सहारे खाड़ी देशों के भागीदारों को यह संदेश दे सकते हैं कि अमेरिका चीन के साथ अपनी प्रतिस्पर्धा को कितनी गंभीरता से लेता है. साथ ही, लोकतांत्रिक और निरंकुश सरकारों के संबंधों पर, AI से जुड़ी इन पाबंदियों के लंबे समय तक पड़ने वाले असर का आकलन करना महत्वपूर्ण होगा.”

उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि AI लोकतांत्रिक और निरंकुश सरकार वाले देशों के बीच संघर्ष की एक नई वजह बन सकती है.