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मणिपुर में नए सिरे से क्यों भड़की हिंसा?

प्रभाकर मणि तिवारी
२९ सितम्बर २०२३

भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में इस सप्ताह नए सिरे से हिंसा भड़क गई है. पिछले दिनों एक युवती समेत दो छात्रों की हत्या के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया उसके बाद से ही हालात दोबारा बिगड़ गए.

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मणिपुर में फिर भड़की हिंसा
इस साल मई से ही मणिपुर में हिंसा हो रही है (यह तस्वीर इस साल मई में हुई हिंसा की है)तस्वीर: Paojel Chaoba/AP/picture alliance

इंटरनेट से पाबंदी हटते ही बीती जुलाई से लापता इन छात्रों की हत्या के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए. उसके बाद फिर बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी. हालात बेकाबू होते देख कर सरकार को कर्फ्यू के साथ ही इंटरनेट सेवाओं पर दोबारा पाबंदी लगानी पड़ी. हिंसक भीड़ मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह के पैतृक घर पर हमले की भी नाकाम कोशिश कर चुकी है.

इस बीच, राज्य का दौरा करने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में इस हिंसा के लिए केंद्र और राज्य सरकार के रवैए को जिम्मेदार ठहराया है. अशांति के बीच ही सरकार ने राज्य के कुकी बहुल पर्वतीय इलाकों में विवादास्पद आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानी एएफएसपीए कानून की मियाद छह महीने के लिए बढ़ा दी है.

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हिंसा का ताजा मामला

लंबी चुप्पी के बाद राज्य में हिंसा नए सिरे से क्यों भड़क उठी? हालात सामान्य होते देख कर सरकार ने महीनों बाद इस सप्ताह इंटरनेट पर लगी पाबंदी हटा ली थी. लेकिन उसके दो दिन बाद ही 25 सितंबर को 20 साल के एक युवक और 17 साल की एक युवती के शवों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. इंफाल के रहने वाले इन दोनों छात्रों को आखिरी बार छह जुलाई को एक साथ देखा गया था. इस वीडियो के सामने आते ही छात्र और युवा उबल पड़े और सड़कों पर उतर कर हिंसक प्रदर्शन करने लगे.

बीच में कुछ दिनों के लिए मामला ठंंडा बड़ा था लेकिन एक बार फिर अशांति फैल गई है
अस्थाई शेल्टर होम का उद्घाटन करते मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंहतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

मणिपुर पुलिस ने अपनी प्राथमिक जांच रिपोर्ट में कहा है कि यह दोनों छात्र कुकी बहुल इलाके में फंस गए होंगे. उसके बाद अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई होगी. जांच से यह भी पता चला है कि दोनों के लापता होने के एक दिन बाद सात जुलाई को युवक के मोबाइल में नया सिम लगाया गया. वह फोन कुकी बहुल लामदान इलाके में सक्रिय हुआ था.

उसके बाद छात्रों और युवकों का आंदोलन लगातार तेज होता रहा है. हिंसा पर उतारू लोगों ने बीजेपी के एक दफ्तर में आग लगा दी और पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष ए. शारदा देवी समेत कई नेताओं के घरों पर हमले किए. इसके बाद मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह के पैतृक आवास में भी आग लगाने की कोशिश की गई. लेकिन पुलिस ने उसे नाकाम कर दिया. सुरक्षाबलों के साथ भिड़ंत में 50 से ज्यादा लोग घायल हो गए हैं. भीड़ ने पुलिस की कई गाड़ियों में आग लगा दी और पुलिस वालों से हथियार छीन लिए.

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सीबीआई से जांच

गुरुवार शाम को मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह ने छात्रों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और आम लोगों से सरकार के प्रति भरोसा रखने की अपील की. सिंह का कहना है, "सोशल मीडिया पर वायरल दोनों छात्रों के शवों की तस्वीरों ने लोगों में भारी नाराजगी पैदा कर दी और वह सड़कों पर उतर आए."

इंफाल के तमाम स्कूलों और कॉलेजों के छात्र सड़कों पर उतर कर हत्यारों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग में प्रदर्शन करने लगे. इसी दौरान राजधानी के कई इलाकों में सुरक्षाबलों के साथ उनकी झड़पें हुईं.

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मुख्यमंत्री ने छात्रों की भीड़ से निपटने में सुरक्षाबलों को बेहद संयम बरतने का निर्देश दिया है. सरकार ने आम लोगों में बढ़ती नाराजगी को ध्यान में रखते हुए इस मामले की सीबीआई जांच के लिए केंद्र सरकार से अनुरोध किया. इसके बाद तुरंत ही स्पेशल डायरेक्टर अजय भटनागर के नेतृत्व में सीबीआई की एक टीम इंफाल पहुंच गई है. हालात बिगड़ते देख कर केंद्र सरकार ने श्रीनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक राकेश बलवाल को तुरंत मणिपुर भेज दिया है. बलवाल का तबादला मणिपुर कैडर में कर दिया गया है. पुलवामा हमले की जांच उनके ही नेतृत्व में हुई थी.

एएफएसपीए की मियाद बढ़ी

इसी बीच, केंद्र सरकार ने मणिपुर के कुकी बहुल पर्वतीय इलाकों में विवादास्पद एफएसपीए कानून की मियाद छह महीने के लिए बढ़ा दी है. सरकार की दलील है कि इसके नहीं होने से उग्रवाद विरोधी अभियान प्रभावित होगा. हालांकि सरकार के इस फैसले से कुकी समेत तमाम आदिवासियों की नाराजगी और बढ़ गई है. आदिवासियों के संगठन जोमी काउंसिल ने सरकार के इस फैसले के प्रति कड़ा विरोध जताया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजे एक ज्ञापन में संगठन ने इसे एक पक्षपाती और भेदभावपूर्ण कदम बताया है.

इस बीच, बीते महीने राज्य का दौरा करने वाली भाकपा (माले) की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने दिल्ली में जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दोनों तबकों यानी मैतेई और कुकी जनजाति के लोग मानते हैं कि राज्य की जातीय हिंसा को बढ़ावा देने और इसे लंबे समय तक जारी रखने में केंद्र व राज्य सरकार की भूमिका अहम रही है.

इसमें कहा गया है कि मैतेई तबके के लोग इस हिंसा के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार मानते हैं तो कुकी तबके के लोग राज्य सरकार को. इस आठ सदस्यीय टीम ने बीते 10 से 14 अगस्त के बीच राज्य का दौरा किया था और दोनों तबके के लोगों से मुलाकात की थी.