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इराक: अब्दुल लतीफ रशीद चुने गए नए राष्ट्रपति

१४ अक्टूबर २०२२

इराक में नए राष्ट्रपति के चुनाव के साथ ही प्रधानमंत्री को भी मनोनीत किया गया है. हालांकि, राजधानी के सबसे सुरक्षित इलाके ग्रीन जोन में रॉकेट हमले से संसद की कार्यवाही में देरी हुई.

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कुर्द नेता अब्दुल लतीफ रशीद इराक के नए राष्ट्रपति चुने गए
कुर्द नेता अब्दुल लतीफ रशीद इराक के नए राष्ट्रपति चुने गए तस्वीर: IRAQI PARLIAMENT MEDIA OFFICE via REUTERS

इराकी सांसदों ने गुरुवार को कुर्द नेता अब्दुल लतीफ रशीद को देश का नया राष्ट्रपति चुना. आम चुनाव के एक साल बाद भी इराक में सरकार गठन पर गतिरोध के खत्म होने का अब रास्ता साफ हो गया है. राष्ट्रपति का चुना जाना इस गतिरोध के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.

चुने जाने के तुरंत बाद राष्ट्रपति रशीद ने मोहम्मद शिया अल-सुदानी को प्रधानमंत्री के रूप में नामित किया. सुदानी वर्तमान कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुस्तफा अल-कदीमी की जगह लेंगे, जो 2020 से इस पद पर काबिज हैं. 52 साल के सुदानी ने "जल्द से जल्द" सरकार बनाने का वादा किया है.

इराक को इशारों से चलाने वाले मुक्तदा अल-सद्र क्या चाहते हैं?

गुरूवार को संसद सत्र से पहले राजधानी बगदाद के सबसे सुरक्षित इलाके ग्रीन जोन पर कई रॉकेट दागे गए. अधिकारियों ने अधिक जानकारी दिए बिना कहा कि हमले में कम से कम 10 लोग घायल हो गए. इन हमलों के लिए किसी भी समूह ने जिम्मेदारी नहीं ली है.

रॉकेट हमले के कारण संसद की कार्यवाही काफी देरी से शुरू हुई, लेकिन संसद का सत्र स्थगित नहीं हुआ.

रशीद को चुनाव में 160 से ज्यादा वोट मिले जबकि देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति बरहाम सालेह को सिर्फ 99 सांसदों ने वोट दिया.

इराक में राजनीतिक स्थिति कैसी है?

इराक में तीन प्रमुख और महत्वपूर्ण राजनीतिक गुट लंबे समय से सक्रिय हैं. सबसे बड़ा मुस्लिम समूह शिया है जबकि दूसरा गुट सुन्नी मुस्लिम है और तीसरा प्रमुख राजनीतिक गुट कुर्द जातीय समूह का है.

तीनों गुट ने एक पारंपरिक राजनीतिक व्यवस्था का पालन किया है, जिसके तहत इराकी सरकार के प्रमुख प्रधानमंत्री शिया हैं, जबकि कुर्द राष्ट्रपति हैं और सुन्नी समूह के नेता संसद के अध्यक्ष हैं. इस तरह से देश में राजनीतिक शक्ति इन तीन समूहों में विभाजित है.

लेकिन इराक में एक अन्य प्रतिद्वंद्वी शिया राजनीतिक गुट मुक्तदा अल-सद्र के नेतृत्व में एक नए प्रधानमंत्री का चुनाव करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है.

पिछले साल हुए चुनाव में अल-सद्र की पार्टी 73 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन उसे बहुमत हासिल नहीं हुआ. सद्र ने अगस्त में विरोध में अपने सभी सदस्यों के साथ संसद से इस्तीफे की घोषणा की. वे चाहते हैं कि संसद भंग हो और फिर से चुनाव हो.

इस स्थिति में अल-सद्र के समर्थकों का समर्थन हासिल करने के लिए नामित प्रधानमंत्री सुदानी के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी, भले ही उन्हें शिया मुस्लिम कॉर्डिनेशन फ्रेमवर्क के ईरानी समर्थक गुटों का समर्थन प्राप्त हो.

इराकी संविधान के मुताबिक आम चुनाव होने के बाद सांसदों को पहले राष्ट्रपति का चुनाव करना होता है और फिर प्रधानमंत्री के लिए एक उम्मीदवार के लिए मतदान करना.

सांसदों ने पहले फरवरी और मार्च में तीन बार देश के नए प्रमुख का चुनाव करने की कोशिश की थी, लेकिन चूंकि अल-सद्र ने अपने सांसदों को सामूहिक रूप से इस्तीफा देने का आदेश दिया, इसलिए वे आवश्यक दो-तिहाई बहुमत पाने में विफल रह गए.

अल-सद्र एक लोकप्रिय मौलवी हैं जो 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले के विरोध के प्रतीक के रूप में उभरे. अल-सद्र ने माहदी आर्मी के नाम से एक मिलिशिया बनाई और बाद में उसका नाम बदल कर सराया सलाम कर दिया. अल-सद्र ने खुद को अमेरिका और ईरान दोनों के विरोधी के रूप में पेश करने के साथ ही गैर-सुधारवादी, राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्थापित किया है.

जब अल-सद्र ने राजनीति छोड़ने का ऐलान किया था तब इराक में अराजकता की स्थिति बन गई थी और उनके समर्थकों ने ग्रीन जोन पर धावा बोल दिया था. हिंसा में 40 के करीब लोग मारे गए थे.

एए/सीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)