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डर और अनिश्चितता के साये में जी रहे एनआरसी से बाहर हुए लोग

मुरली कृष्णन
२५ सितम्बर २०१९

एनआरसी में जिन लोगों के नाम नहीं हैं वो फिलहाल डर और अनिश्चितता के साए में जीने को मजबूर हैं. डॉयचे वेले के मुरली कृष्णन ने असम के ऐसे कुछ लोगों से बात की.

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Indien Assam Bewohner Liste Einwohner
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath

असम की राजधानी दिसपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर मलोईबारी गांव के लोग अपने भविष्य को लेकर बेहद चिंतित हैं. इस हिंदू बाहुल्य ग्रामीण इलाके के कई लोगों के नाम एनआरसी में शामिल नहीं हैं. इस गांव के कई सारे लोग 1960 के दशक में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए थे. उस समय असम की राज्य सरकार ने इन लोगों को कानूनी दस्तावेज और जमीनें दी थीं. इन लोगों को भारत के नागरिक का कानूनी दर्जा दिया था. लेकिन एनआरसी की दूसरी सूची आने के बाद इन लोगों के लिए परिस्थितियां बदल गई हैं.

एनआरसी से बेदखल हुए एक सरकारी कर्मचारी प्रमोद कार कहते हैं, "इस सबका मतलब क्या है. अब हमसे कहा जा रहा है कि आपका नाम एनआरसी में नहीं है. हमारे पास अपनी नागरिकता दिखाने के लिए कोई और सबूत नहीं हैं. हमें सारी सरकारी योजनाओं का लाभ इन्हीं कागजातों के आधार पर मिला था. अब आप कैसे कह सकते हैं कि हम यहां के नागरिक नहीं हैं."

उनके पड़ोसी 30 वर्षीय दीगानाथ नंदी एक दुकान चलाते हैं. वे कहते हैं, "हम दो पीढ़ियों से यहीं पर रह रहे हैं. असम हमारा घर है. हमारे परिवार ने यहां का नागरिक साबित करने वाले सारे कागजात दिए थे. ये हमारे परिवार की नागरिकता साबित करने के लिए काफी थे. हमारे लिए यह एकदम अस्वीकार्य है कि सारे कागजात होने के बावजूद हमारा नाम एनआरसी में नहीं है. कई अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के नाम इसमें हैं. "

Während Indiens erstes Lager für illegale Einwanderer gebaut wird,  befürchten einige Arbeiter, dort festgehalten zu werden.
असम में बन रहे एक हिरासत केंद्र की तस्वीर.तस्वीर: REUTERS/A. Hazarika

बढ़ता सांप्रदायिक तनाव

अपनी पहचान और नागरिकता पर उठाए गए सवालों से असम के कई गांवों के लोग थोड़े नाखुश हैं. वो सत्ताधारी बीजेपी से नाराज हैं क्योंकि उन्होंने अप्रवासन को मुख्य मुद्दा बनाया और जगह-जगह एनआरसी का प्रचार कर उस पर तेजी से काम किया.

ऐसी ही कहानी असम के नगांव जिले के नेल्ली गांव की है. यहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं. सन 1983 की शुरुआत में अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर यहां एक बड़ा नरसंहार हुआ था. इस नरसंहार में करीब 2,000 लोग मारे गए थे. इस गांव के अधिकतर निवासियों के नाम एनआरसी में नहीं हैं.

ठेकेदारी का काम करने वाले लालबर अली कहते हैं, "मेरे कागजात तो एकदम सही थे. मैंने तो इसके लिए 20,000 रुपये में एक वकील किया था जिससे पता चल सके कि सब कुछ ठीक है. लेकिन फिर भी मेरे परिवार का नाम एनआरसी में नहीं है. मैंने लोकसभा चुनावों में वोट भी दिया था. नाम ना आने के बाद से मेरी नींद उड़ी हुई है."

नगांव समेत तीन जिलों के लोग पहले जैसी सांप्रदायिक हिंसा के भय में जी रहे हैं. इनमें से कई का कहना है कि बाहर काम पर जाने के दौरान उन पर नस्लीय टिप्पणियां की जा रही हैं. नेल्ली गांव के प्रमुख लोगों में से एक सुलेमान कासमी कहते हैं, "ग्रामीणों को विदेशी का तमगा दे दिया गया है. उन्हें बुरे चरित्र का बताया जा रहा है. लोगों को डिस्क्रेडिट करने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है. बहुत सारे लोगों ने कानूनी तरीकों से लड़कर अपनी नागरिकता साबित भी की है. इस सब के बावजूद कई सारे लोगों के नाम एनआरसी में नहीं हैं."

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एनआरसी में अपना नाम जुड़वाने के लिए लोग हरसंभव कोशिश कर रहे हैं.तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath

भारतीय आदिवासी भी एनआरसी में नहीं

एनआरसी में शामिल होने के लिए आवेदक को ऐसे दस्तावेज देने होते हैं जिससे साबित हो सके कि वो या उसके पूर्वज 24 मार्च, 1971 से पहले भारत आए थे. यह तारीख ऑल असम स्टूडेंट यूनियन, असम सरकार और केंद्र सरकार के बीच 1985 में हुए असम समझौते के तहत तय की गई थी.

31 अगस्त को जारी हुई एनआरसी की सूची में बंगाली और असमिया बोलने वाले कई हिंदुओं के भी नाम शामिल हैं. इनमें से कई सारे लोग आदिवासी समुदाय से हैं. अधिकारियों ने बताया कि ऐसे लोग अधिकांश ऊपरी असम के डिब्रूगढ़, तिनसुकिया और सिबसागर जिलों के रहने वाले हैं. ये तीनों जिले आदिवासी बाहुल्य इलाके हैं.

एनआरसी के आंकड़ों से पता चलता है कि हिंदू बाहुल्य जिलों जैसे होजई में नागरिकता खोने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है. होजई के लगभग 33 प्रतिशत लोगों का नाम एनआरसी में नहीं है. जबकि बांग्लादेश की सीमा से लगे मुस्लिम बाहुल्य जिलों जैसे करीमगंज, धुबरी और दक्षिण सलमारा में ऐसे लोगों की संख्या कम है.

भारतीयता साबित करने की कोशिश

करीब 19 लाख लोगों के नाम फिलहाल एनआरसी लिस्ट में नहीं हैं. जिन लोगों के नाम एनआरसी में नहीं हैं उन्हें विदेशी प्राधिकरणों में अपनी नागरिकता साबित करने का समय दिया गया है. सरकार ने राज्य में 300 विदेशी प्राधिकरण बनाए हैं. वकील बिपुल सारन कहते हैं, "एनआरसी से बेदखल हुए लोगों को सबसे पहले विदेशी प्राधिकरण में अपील कर अपनी नागरिकता साबित करनी होगी. इसके लिए कागजातों की जरूरत होगी. गरीब और कम पढ़े लिखे लोगों को ज्यादा परेशानी हो सकती है. उन्हें भारी लाल फीताशाही का सामना भी करना पड़ेगा."

एनआरसी में सामने आई इन गड़बड़ियों के चलते असम पब्लिक वर्क्स नाम के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है. इसी एनजीओ ने पहले अपील की थी कि 1951 में पहली बार बने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप को फिर से अपडेट किया जाए और असम में रह रहे अवैध प्रवासियों को बाहर निकाला जाए. सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील पर फैसला देते हुए 2015 में असम में एनआरसी लागू करने का आदेश दिया था.

Indien | Shabbir Rehmans Frau ist nicht in der Liste der NRC
शब्बीर रहमान, जिनका खुद का नाम तो एनआरसी में है लेकिन पत्नी का नहीं है.तस्वीर: DW/P. Mani Tiwari

इस एनजीओ के प्रमुख अभिजीत सरमा कहते हैं, "मैंने एनआरसी की फाइनल लिस्ट में पाए गए विदेशियों के नाम की एक विस्तृत सूची तैयार की है. साथ ही फर्जी दस्तावेजों और फर्जी तरीके से नागरिकता साबित करने का भी रिकॉर्ड हमारे पास है. 'डी वोटर्स' की एक लिस्ट भी हमारे पास है. ये  सब हम कोर्ट के सामने रखेंगे और इनके लिए एक अलग वेरिफिकेशन की माग करेंगे." डी वोटर्स का मतलब डाउटफुल वोटर्स है जो पहले अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए थे. इसलिए उनका नाम अलग सूची में रखा गया.

अदालत के सामने अपनी नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल है. कई सारे प्राधिकरणों पर पक्षपाती होने के भी आरोप लगे हैं. इनके काम करने के तरीकों पर भी विवाद हुआ है. एनआरसी से बाहर होने वाले स्थानीय लोग अपने भविष्य को लेकर ऊहापोह की स्थिति में हैं. वो अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

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