2010 का लेखा जोखा
२९ दिसम्बर २०१०विज्ञापन
जाने कौन कह गया कि वक्त बहता दरिया है. लगता है वक्त बह रहा है और साल पीछे छूट जा रहे हैं...साल दर साल...उन पत्थरों की तरह जो दरिया के रास्ते में खड़े रहते हैं. पानी उनसे टकराता है, भिगोता और आगे बढ़ जाता है. हां, पत्थर अपने हिस्से के कुछ तिनकों को रोक लेते हैं जो उस पत्थर की अपनी जमा पूंजी हो जाते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे हर साल की जमा पूंजी होती हैं उस दौरान घटी घटनाएं जो उसके नाम पर दर्ज हो जाती हैं. 2010 नाम के इस पत्थर को वक्त का दरिया छोड़कर आगे बढ़ रहा है. डालते हैं नजर अलग अलग क्षेत्रों में साल भर की घटनाओं का.