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समाज

म्यांमार: तख्तापलट के 100 दिन बाद नियंत्रण का ढोंग करती सेना

१२ मई २०२१

म्यांमार में सैन्य तख्तापलट ने देश को अराजकता में डाल दिया है. देश में स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सैन्य प्रशासन जुंटा कितनी भी कोशिश कर ले, सच यह है कि सार्वजनिक जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है.

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तस्वीर: Mar Naw

म्यांमार की चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदखल करने के 100 दिनों बाद भी सेना देश को संभाल पाने में नाकाम साबित हो रही है. आलम यह है कि सैन्य प्रशासन जुंटा देश में समय पर ट्रेन तक नहीं चलवा पा रही है. रेल कर्मचारी तख्तापलट के विरोध में एकजुट होने वाले शुरुआती लोगों में शामिल थे और वे हड़ताल पर चले गए. म्यांमार के रेलवे कर्मचारियों के अलावा, स्वास्थ्य कर्मचारियों ने भी सैन्य सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया और सरकारी चिकित्सा केंद्रों में अपनी सेवाएं बंद कर दीं. सरकारी और निजी बैंकों के कर्मचारियों के अलावा लोक सेवकों ने दफ्तर जाना बंद कर दिया. देश में शैक्षिक संस्थान और विश्वविद्यालय सैन्य जुंटा के खिलाफ प्रतिरोध का गढ़ बन गए.

म्यांमार में सैन्य जुंटा के सत्ता में आने के एक सौ दिन बाद सत्ताधारी जनरलों ने सब कुछ नियंत्रित करने का सिर्फ नाटक किया है. सैन्य जनरल यह समझते हैं कि उन्होंने सभी मोर्चों पर स्थिति को काबू में कर लिया है. हालांकि, सच्चाई यह है कि उनकी आंशिक सफलता इस हद तक सीमित है कि उन्होंने मीडिया और सड़क पर हो बड़े विरोध प्रदर्शनों को ही भारी सुरक्षाबल तैनात कर खत्म करने की कोशिश की. आंकड़ों के मुताबिक देश में सुरक्षाबलों ने प्रदर्शन कर रहे 750 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों और राहगीरों को मौत के घाट उतारा. सेना ने देश में कई गिरफ्तारियां कीं और मानवाधिकारों के उल्लंघन को अंजाम दिया.

Myanmar Yangon | Proteste gegen Militärputsch
तस्वीर: AP/picture alliance

यूएन की मानवाधिकार हाई कमिश्नर मिशेल बैचलेट ने एक महीने पहले ही म्यांमार की स्थिति को "गंभीर" बताया था. उन्होंने कहा था, "म्यांमार की अर्थव्यवस्था, शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचा चरमराने की कगार पर है, जिससे लाखों लोग नौकरियों, बुनियादी सामाजिक सेवाओं और खाद्य सुरक्षा से वंचित हैं."

रोम में रह रही म्यांमार की पत्रकार थिन लेई विन कहती हैं, ''जुंटा चाहता है कि लोग सोचें कि चीजें सामान्य हो रही हैं क्योंकि वे उतने लोगों को नहीं मार रहे हैं जितने लोगों को पहले मारा है और सड़कों पर भी उतने लोग नहीं हैं. लेकिन जब हम जमीनी स्तर पर लोगों से बात करते हैं तो पता चलता है कि विरोध अभी शांत नहीं हुआ है.''

देश के अशांत सीमांत क्षेत्रों से सैन्य चुनौतियां बढ़ रही हैं जहां जातीय अल्पसंख्यक समूहों के पास राजनीतिक शक्तियां हैं और गुरिल्ला सेनाएं हैं. उत्तर और पूर्व में अल्पसंख्यक समूहों ने आंदोलन को अपना समर्थन दिया और लड़ाई तेज कर दी है.

एए/वीके (एपी)

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