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होली पर रंग डाला, अब मांग में सिंदूर भरो!

१९ मार्च २०११

होली रंगों और अबीर-गुलाल से सराबोर करने का त्योहार है. लेकिन क्या कहीं रंग लगाने की आजीवन सजा भी भुगतनी पड़ती है? सवाल थोड़ा अटपटा है. लेकिन जलपाईगुड़ी के अलीपुरदुआर को जानने वाले इसे सच मानेंगे.

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तस्वीर: AP

जलपाईगुड़ी के अलीपुरद्वार की तुरतुरी पंचायत के संथाल मोहल्ले में सदियों पुरानी एक अनूठी परंपरा आज भी जस की तस है. वहां होली के दिन अगर किसी युवक ने गलती से भी किसी युवती पर रंग डाल दिया तो उसे उससे शादी करनी पड़ती है. यानी अगर किसी युवती पर रंग डाल दिया तो उसकी मांग में सिंदूर भी भरना होगा.

भूले से भी रंग नहीं

समाज और लोक लाज के डर से युवक यहां भूल कर भी होली के दिन लड़कियों को रंग नहीं लगाते. लेकिन इस मोहल्ले में कम से कम एक दर्जन ऐसे लोग हैं जो लड़कियों को रंग लगाने की सजा उनसे शादी कर भुगत चुके हैं. शादी को सजा कहने पर सवाल उठ सकते हैं. लेकिन महज थोड़ा-सा गुलाल लगाने के एवज में उस लड़की को जीवन भर साथ रखना पड़े तो कइयों के लिए यह सजा के बराबर ही है. गांव के करिया टुडू बताते हैं, ‘होली के दिन अगर कोई लड़का किसी लड़की को गलती से भी रंग लगा दे तो उसे उससे शादी करनी पड़ती है. अगर किसी वजह से शादी नहीं हो सकती तो उस लड़के की हैसियत के मुताबिक जुर्माना तय किया जाएगा. यह रकम कम से कम पांच सौ रुपए है.'

Indien Frühlingsfest Holi Fest in Hyderabad
तस्वीर: dapd

वैसे इस अपराध की सजा के विकल्प के तौर पर आर्थिक जुर्माने का भी प्रावधान है. इस जुर्माने की न्यूनतम रकम पांच सौ रुपए है.

जुर्माने के इस वैकल्पिक प्रावधान की ठोस वजह तो कोई नहीं बता पाता. लेकिन पंचायत के बुजुर्ग कहते हैं कि अगर लड़की को रंग लगाने की गलती किसी ऐसे व्यक्ति से हो जाए जो विवाह के लायक नहीं है या उम्र में लड़की से बहुत छोटा है तो वह जुर्माने की रकम भर कर माफी पा सकता है.

पुरुष पुरुष होली

संथाल समाज में होली रंग से कम, पानी से ज्यादा खेली जाती है. परंपरा के मुताबिक पुरुष केवल पुरुष के साथ ही होली खेल सकता है.

इस त्योहार के बाद वन्यजीवों के शिकार करने की परंपरा है. उस शिकार में जो वन्यजीव मारा जाता है उसे पका कर सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है.

संथाल मोहल्ले के रामेश्वर मुंडा कहते हैं, ‘आधुनिकता के इस दौर में भी हमारे मोहल्ले में इस नियम का पालन कड़ाई के साथ होता है. इसका मकसद इस पवित्र त्योहार की पवित्रता बरकरार रखना है. होली के दिन समाज की इस परंपरा को तोड़ने की हिम्मत कोई नहीं करता.'

Indien Frühlingsfest Holi Fest in Hyderabad
तस्वीर: dapd

उसी मुहल्ले के गणेश हेमब्रम कहते हैं, ‘रंगों से होली खेलने की इच्छा तो होती है. लेकिन समाज के नियम के चलते हम ऐसा नहीं कर पाते.' यही नहीं, होली खेलने की तिथि भी समाज के मुखिया निर्धारित करते हैं. मुखिया मालदो हांसदा ने इस बार देश भर में होली मनाए जाने के दो दिन बाद मोहल्ले में होली खेलने की तारीख तय की है. तुरतुरी ग्राम पंचायत के संथाल युवक-युवतियां उसी दिन होली खेलेंगे.

रानी के लिए सजा बनी होली

रानी हेमब्रम भी उन महिलाओं में से हैं जिन्हें 30 साल पहले होली के दिन रंग लगाने वाले युवक से शादी करनी पड़ी थी. वह अपने जीवन से नाखुश हैं. पति शराबी और निकम्मा निकला. रानी कहती हैं, ‘यह ठीक नहीं है. मां-बाप कम से कम लड़के का चाल-चलन देख कर शादी करते हैं. लेकिन मैं तो बिना किसी अपराध के ही 30 साल से सजा भुगत रही हूं. बदलते समय के साथ यह परंपरा भी बदलनी चाहिए.'

वैसे, समाज के बड़े-बूढे़ तो होली की इस सदियों पुरानी परंपरा से खुश हैं. लेकिन बदलते समय के साथ युवा पीढ़ी इसमें बदलाव के पक्ष में है. हेमलता मुंडा कहती है, ‘यह परंपरा सदियों पुरानी है. आधुनिकता के इस दौर में अब इसे बदलते हुए हमें भी खुल कर रंगों से होली खेलने की छूट दी जानी चाहिए.' दूसरी ओर, मुखिया मालदो हांसदा कहते हैं कि समाज में सदियों पुरानी परंपरा को बदलना न तो उचित है और न ही संभव. वह सवाल करते हैं, "इसमें बुराई ही क्या है? जब हमारे पूर्वज सदियों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं तो अब क्या दिक्कत है? इससे समाज में नैतिकता बनाए रखने में सहायता मिलती है."

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः वी कुमार

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