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हीरो से जीरो बने वेस्टरवेले

४ अप्रैल २०११

एफडीपी के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के शिल्पकार गीडो वेस्टरवेले को मंत्री पद का कोई अनुभव नहीं था. लेकिन उन्होंने शुरुआत ही जर्मनी के सबसे बड़े मंत्री पद विदेश मंत्री के रूप में की. लेकिन 16 महीने में सबसे अलोकप्रिय भी बन गए.

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तस्वीर: Marcin Antosiewicz

मंत्री बनने के बाद पहली प्रेस कांफ्रेंस में जब बीबीसी के एक संवाददाता ने उनसे अंग्रेजी में सवाल पूछ लिया, तो वेस्टरवेले का जवाब था, "ग्रेट ब्रिटेन में अपेक्षा किया जाती है कि लोग अंग्रेजी बोलें. उसी तरह जर्मनी में लोगों को जर्मन बोलनी चाहिए." विदेश मंत्री का काम पूरी दुनिया से संपर्क बनाना होता है. उसमें कूटनीति के पुट होने चाहिए. लेकिन उन्होंने अपने काम की शुरुआत ही विवाद से की.

वेस्टरवेले का जिद्दी और अक्खड़ व्यक्तित्व विपक्ष में तो उनके लिए काफी मददगार साबित हुआ लेकिन सत्ता में आने के बाद ही लगने लगा कि इस वजह से वह गठबंधन सरकार पर बोझ बन सकते हैं. खुद उनका कहना है कि वह मस्त रहने वाले व्यक्ति हैं लेकिन उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वह कभी भी चैन से नहीं बैठते.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जर्मनी के हर विदेश मंत्री को बेहद सम्मान मिला. विदेशों में भी उनकी चर्चा रही लेकिन वेस्टरवेले के साथ ऐसा नहीं हुआ. वह तो कार्टूनिस्टों और व्यंगयकारों के प्रिय पात्र बन कर रह गए. उन्होंने दो साल पहले 2009 में जर्मनी के आम चुनाव में एफडीपी को सर्वश्रेष्ठ कामयाबी दिलाई, जब पार्टी ने करीब 15 प्रतिशत मत हासिल किए. इसके बाद चांसलर अंगेला मैर्केल ने उन्हें सरकार में शामिल होने की दावत दी. बस उसी दिन से वेस्टरवेले का ग्राफ नीचे की ओर गिरने लगा.

आम तौर पर विदेश मंत्री खबरों में बना रहता है. बड़े फैसले किया करता है. लेकिन वेस्टरवेले के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. कुछ दिनों बाद ही लोग कहने लगे कि वह सिर्फ विपक्ष के लिए बने नेता हैं. मूल रूप से जर्मनी के बॉन शहर के रहने वाले वेस्टरवेले एक प्रशिक्षित वकील हैं लेकिन उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर हिस्सा पार्टी के काम में लगाया. लेकिन सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के बाद वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए.

मीडिया आम तौर पर वेस्टरवेले के खिलाफ रहा. करियर की शुरुआत में अंग्रेजी वाली घटना के बाद से ही प्रेस उनसे नाराज रहने लगा लेकिन खुद वेस्टरवेले की शख्सियत का भी इस पर असर रहा.

वित्तीय संकट से जूझ रहे जर्मनी में पिछले साल जनकल्याण योजनाएं घटाने की बात हुई. यहां गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को सरकार आर्थिक मदद देती है. इस मौके पर वेस्टरवेले ने कह दिया कि सरकार लोगों को रोमन सम्राटों की तरह रहने में मदद नहीं कर सकती. जर्मनी में कहावत है कि गरीबों का कभी मजाक मत उड़ाओ. इसके बाद वेस्टरवेले को लेकर लोगों की क्या प्रतिक्रिया हुई होगी, समझा जा सकता है.

पिछले महीने लीबिया पर संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव में उनकी अगुवाई में जर्मनी ने अपने परंपरागत पश्चिमी देशों का साथ देने की बजाय रूस और चीन का साथ दिया और वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. कुछ इसे अच्छा कदम बता रहे हैं लेकिन कुछ इस पर सवाल उठा रहे हैं.

49 साल के वेस्टरवेले का राजनीतिक सफर 1994 में शुरू हुआ, जब उन्हें युवा इकाई बनाने को कहा गया. इसके बाद 2001 में वह पार्टी प्रमुख बन गए. वह एक बार टीवी के रियालिटी शो में भी कुछ घंटों तक रहे, जिस पर मीडिया ने उन्हें राजनीति का जोकर तक कह दिया.

विवादों और चर्चा में बने रहने वाले वेस्टरवेले छह साल पहले अपने समलैंगिक पार्टनर मिषाएल मोरोन्ज को दुनिया के सामने लाए. तब पता चला कि वेस्टरवेले समलैंगिक हैं. बाद में दोनों ने शादी भी कर ली.

एफडीपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वह पार्टी में बहुत ज्यादा नियंत्रण रखने की कोशिश करते थे. वह खुद तय किया करते थे कि किसे कौन सा पद दिया जाना है. हाल के कुछ महीनों में उनके खिलाफ पार्टी के अंदर ही मुहिम तेज हो गई थी लेकिन 27 मार्च को जर्मनी के बाडेन वुटेमबर्ग के चुनाव के बाद तो उनका जाना पक्का हो गया. इन चुनावों में एफडीपी को सिर्फ 5.3 प्रतिशत वोट मिले.

रिपोर्टः डीपीए/ए जमाल

संपादनः ओ सिंह

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