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हिंसाग्रस्त सहारनपुर नें भीम आर्मी का संघर्ष

फैसल फरीद
११ मई २०१७

उत्तर प्रदेश का सहारनपुर जिला जातीय संघर्ष की आग में झुलस रहा हैं. दलित और सवर्ण वर्ग के बीच हिंसा हुई है. ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं लेकिन भेदभाव और अत्याचार से संबंधित हिंसा कुछ जगह तक सिमट कर रह जाती हैं.

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Indien Proteste gegen Benachteiligung von niedrigen Kasten
तस्वीर: Reuters/A. Dave

सहारनपुर में भी दलित--सवर्ण हिंसा इसी क्रम में हुई. सहारनपुर में सुगबुगाहट काफी दिनों से थी. पहले भाजपा संसाद राघव लखनपाल ने आंबेडकर शोभा यात्रा को लीड किया जिसपर 20अप्रैल को सड़क दुधली गांव में बवाल हुआ. भाजपा कार्यकर्ता एसएसपी बंगले तक चले गए और मामला काफी उछला. स्थानीय लोगों की मानें तो तब भीम आर्मी ने मामले को भांप लिया कि इससे मामला दलित-मुस्लिम हो जायेगा. इसीलिए उन्होंने दलितों में एक संदेश भेजा और मामले में शांत रहने को कहा. उसके बाद 5 मई को महाराणा प्रताप शोभा यात्रा के अवसर पर फिर बवाल हुआ जिसमें एक व्यक्ति की मृत्य हो गयी.. दलितों का आरोप है कि लगभग दो दर्जन दलितों के घर जला दिए गए. संघर्ष तब से दलित बनाम सवर्ण हो गया है. अब ये धीरे धीरे पड़ोस के जिले जैसे शामली और मेरठ में भी फ़ैल गया और वहां भी बवाल हुआ.

संगठित होते दलित

इस बीच प्रदेश में एक नए संगठन का नाम सुनने को मिला, भीम आर्मी भारत एकता मिशन. संक्षेप में इसे भीम आर्मी कह कर ही संबोधित किया जाता है. 30 साल के एक युवा वकील के नेतृत्व में मात्र दो साल पुराने इस संगठन के पीछे दलित युवक लामबंद हो गए हैं और आमने सामने के लिए तैयार दिखते हैं. सहारनपुर में पुलिस से आमने सामने मोर्चा लेने के बाद भीम आर्मी ने पुलिस को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. वहीं भीम आर्मी के समर्थक अब खुल कर दलित हित, सुरक्षा और अपने समाज की बात कर रहे हैं.

मौजूदा वक्त में भीम आर्मी के वालंटियर की संख्या लगभग 15000 बताई जाती हैं और समर्थक इस संगठन की पहुंच पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों में भी बता रहे हैं. सहारनपुर के स्थानीय पत्रकार आस मोहम्मद कैफ के अनुसार भीम आर्मी की शुरुआत लगभग दो साल पहले स्थानीय एएचपी कॉलेज में हुए बवाल से हुई. इस कॉलेज में ऊंची जाति का वर्चस्व था, दलित छात्रों के लिए अलग सीट, अलग नल से पानी पीना इत्यादि. इसी कॉलेज में चंद्रशेखर भी पढता था. उसने इस सब के खिलाफ मोर्चा खोला और फिर वो सबकी नजर में आ गया.

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कैफ के अनुसार चंद्रशेखर ने भीम आर्मी भारत एकता मिशन का गठन किया. मकसद था दलित हितो की रक्षा करना. दलित युवाओं को जोड़ा गया और दलितों का एक मोटरसाइकिल जत्था तैयार हो गया जो दलित लोगों के बुलाने पर क्षेत्र में पहुंचने लगा. छुटमल गांव का रहने वाला चंद्रशेखर आजाद जो अपने नाम के आगे रावण भी लिखता है, भीम आर्मी का अध्यक्ष बन गया.

बढ़ता नेटवर्क

बीते दो सालो में भीम आर्मी ने अपना नेटवर्क फैलाना शुरू किया. नीला अंगोछा डाले हुए चंद्रशेखर ने गांव गांव घूम कर दलितों को लामबंद करना शुरू कर दिया. अभिवादन में जै भीम, मोटरसाइकिल के आगे भीम आर्मी, दरवाजों पर भीम आर्मी के स्टीकर आम हो गए. थाना, कचहरी के छोटे मोटे काम जिनके लिए दलितों को दौड़ना पड़ता था वो भीम आर्मी के बैज से होने लगे. संगठन की लोकप्रियता बढने लगी और दलितों का युवा वर्ग जो बाईक से चलता हैं, स्मार्टफोन इस्तेमाल करता है और बरसों पुरानी जाति व्यवस्था को नहीं मानता वो भीम आर्मी से जुड़ने लगा.

हालांकि 2017 के संपन्न हुए विधान सभा चुनाव में भीम आर्मी खुल कर किसी के पक्ष में नहीं आई, इस दौरान भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर ने खूब इंटरव्यू दिए. लेकिन तब उनको किसी ने गंभीरता से नहीं लिया. चंद्रशेखर ने एक रिकार्डेड इंटरव्यू में बताया की दलितों को समझाया जाता है चुनाव के दौरान कि आप हिन्दू हैं और चुनाव बाद आप दलित हैं. हमारी मुख्य लड़ाई आरक्षण को बचाने और समान शिक्षा व्यवस्था लागू करवाने की है. चंद्रशेखर अब तीस साल के हैं और वकालत की पढाई की हैं.

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इसी बीच कई घटनायें होती रही और भीम आर्मी दलितों की रोबिनहुड बन गयी. पिछले साल एक गांव में दलितों ने बोर्ड लगा दिया जिस पर लिख दिया-द ग्रेट चमार. इस पर बवाल हो गया क्योंकि वहां एक संगठन द ग्रेट राजपुताना पहले से था. अब दलित गर्व से कहता है कि हम चमार हैं. नया गांव के संजय सिंह कहते हैं कि भले ही वे कोई पदाधिकारी नहीं हैं भीम आर्मी के लेकिन उनको दलितों का समर्थन ज़बरदस्त मिल रहा हैं. फोन पर पूछने पर कि क्या वो दलित हैं संजय जोर से बताते हैं--हम चमार हैं.

राजनीतिक असर

भीम आर्मी ने बाकायदा संगठन बना लिया है जिसमें जिले से लेकर राष्ट्रीय पदाधिकारी भी हैं. एक ममता गौतम महिला विंग की प्रमुख हैं. फिलहाल पदाधिकारी भूमिगत हैं और फ़ोन पर बात नहीं कर रहे, कारण हिंसा में पुलिस ने चंद्रशेखर समेत कई लोगों पर मुक़दमे दर्ज किये हैं.

वैसे भीम सेना किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष में खुल कर नहीं है लेकिन उसके उभरने से एक बार फिर दलित एकता का मुद्दा गरमा गया है. पिछली बार कांसीराम ने बसपा को लेकर दलितों को इकठ्ठा किया था तब उसमें सामाजिक जागृति मुख्य थी. अब दलित युवक पीछे किसी मामले पर हटने को तैयार नहीं हैं. लोगों की माने तो उन गांवों में जहां रात में हिंसा होने की आशंका थी वहां सैकड़ों दलित युवक आसपास के इकठ्ठा हो गए और रात भर रुके.

लेकिन भाजपा की ज़बरदस्त विजय के बाद अब भीम आर्मी ने फिर विपक्षी दलों को मुद्दा दे दिया हैं की दलितों की राजनीति शुरू की जाये.