स्पेन में बेरोज़गारी
१० मई २०१०मैड्रिड के रोज़गार कार्यालय के बाहर सुबह 6.30 बजे से ही लंबी क़तारें लगना आम दृश्य हो गया है. आसमान में सुबह की लाली फूटने से पहले ही यहां लंबी कतारें लग जाती हैं और हज़ारों लोग दरवाजे़ खुलने का इंतजार करते हैं.
मैड्रिड के बेरोज़गारों में से एक एनरिके का कहना है कम्यूनिकेशन टेक्नीशियन है. वह एक कंपनी में काम कर रहा था, लेकिन किसी और कंपनी ने उसे ख़रीद लिया. इस कारण छंटनी हुई. और उसकी नौकरी छूट गई. "मेरा एक प्रोजेक्ट के अंतर्गत ढा़ई साल का कॉन्ट्रैक्ट था, लेकिन ऐसे प्रोजेक्ट्स को किसी भी वक़्त रोका या ख़त्म किया जा सकता है."
अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट हैं समस्या की जड़
एनरिके की ही तरह स्पेन में बहुत से युवाओं का यही हाल है. उन्हें अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट पर ही नौकरी दी जाती है. हाल के वर्षों में इस तरह के अनुबंधों की संख्या तेजी़ से बढ़ी है. 20-24 के आयु वर्ग में हर दूसरे युवा के पास ऐसा ही कॉन्ट्रैक्ट है. औसतन 25 प्रतिशत नौकरियां इसी तरह की हैं.
एनरिके अब तक मिल-यूरो-नेरो की श्रेणी में आता था. यानी वो लोग जो महीने का एक हज़ार यूरो कमाते हों. स्पेन में इस राशि से आप मुश्किल से ही अपना गुज़ारा कर सकते हैं. पर अब वो किसी भी तरह की नैकरी की उम्मीद में इस क़तार में खड़ा है. "अभी मैं जवान हूं, मुझे बीवी-बच्चों की चिंता नहीं है. अभी तक तो मैं किसी तरह ठीक ठाक गुज़ारा करता आया हूं. मैं दोस्तों के साथ रहता हूं इसलिए मुझे अपार्टमेंट के महंगे किराए कि भी चिंता नहीं है."
अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट ही समस्या की जड़ हैं. पिछले कुछ समय में बेरोज़गार हुए लोगों में तीन चौथाई वो हैं जिनके कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाए नहीं गए. 25 वर्ष से कम के युवाओं में चालीस प्रतिशत बेरोज़गार हैं. यह यूरोपिय संघ के देशों में अब तक का रिकॉर्ड है.
युवा ढूंढ रहे हैं देश के बाहर विकल्प
मैड्रिड के रोज़गार कार्यालय की प्रमुख इसाबेल टोरैन्टे का कहना है कि उन लोगों से जितना बन पा रहा है वो कर रहे हैं. "एक कार्यालय में जितने ज़्यादा लोगों को काम पर लगाया जा सकता है हमने लगाया है. पिछले दो सालों में हम करीब दो हज़ार कर्मचारी लगा चुके हैं."
इस सब के बाद भी हालात यही हैं कि जो सुबह जितनी देर से उठे उसे कतार में उतना ही पीछे लगना पड़ता है और हो सकता है कि दिन बीतते बीतते उसका नंबर भी ना आए. इसाबेल टोरैन्टे के पास इसका कोई जवाब नहीं है. "हम इस पर काम कर रहे हैं... और मैं क्या कह सकती हूं?"
इसीलिए अब बहुत से युवा देश से बाहर मौके तलाश रहे हैं. ज़्यादातर वो स्कॉलरशिप पर या इन्टर्न बन कर देश से बाहर निकल रहे हैं. भले ही वो नौकरी के आश्वासन के बिना विदेश जा रहे हैं, कम से कम उन्हें इस बात की तसल्ली है कि वो इस तरह विदेशी कम्पनियों में पहला कदम तो रख ही रहे हैं. कम्पनियां भी इसका खूब फायदा उठा रही हैं. इस तरह के इन्टर्न से वो सस्ते में अपना काम निकाल रही हैं.
रिपोर्ट - श्पीगलहाउअर/ईशा भाटिया
संपादन - राम यादव