स्कूली बच्चों में नशे की लत पर ब्रेक लगाने की योजना
१४ दिसम्बर २०१६भारत के स्कूली बच्चों में ड्रग्स और अल्कोहल के इस्तेमाल की लत बढ़ रही है. यह भी पाया गया है कि एक बार ड्रग्स के लती बन जाने पर ये बच्चे "ड्रग्स पेंडलर बनने" की राह पर चलने के प्रेरित किए जाते हैं और वे इस राह पर चलने के लिए काफी हद तक मजबूर भी हो जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश 2014 में एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर आया है. नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की इस एनजीओ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फूल्का ने देश के हर जिले में पुनर्वास और लत छुड़ाने के केंद्रों में खास तौर पर ड्रग एडिक्ट बच्चों के लिए अलग से व्यवस्था करने के निर्देश जारी करने की भी दरख्वास्त की.
इस बाबत दायर की गई याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार को इसके लिए एक राष्ट्रीय सर्वे करवाने को भी कहा है. इस सर्वे में देश भर के स्कूली बच्चों में अल्कोहल, कई तरह के ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों के इस्तेमाल से संबंधित जानकारी इकट्ठा की जाएगी.
न्यायाधीशों की बेंच ने बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम पर भी दुबारा ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल दिया. जजों ने पाठ्यक्रम में नशीले पदार्थों के इस्तेमाल और उससे होने वाले बुरे असर के बारे में जानकारी दिए जाने पर बल दिया.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय नियमित तौर पर सार्वजनिक नीति के मुद्दों पर हस्तक्षेप करता करता है. पिछले महीने ही कोर्ट ने वायु प्रदूषण को "पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी" करार देते हुए केंद्र सरकार को इस पर काबू पाने के लिए कदम उठाने के निर्देश दिए थे.
2013 की एक सरकारी रिपोर्ट से पता चला कि भारत में नशे के आदी हर पांच में से एक व्यक्ति की उम्र 21 साल से कम है. विशेषज्ञों का मानना है कि अपने साथ के लोगों की देखादेखी, साथियों के दबाव और पढ़ाई की चिंता के कारण कई बच्चे तो 11 साल की उम्र से ही नशे के लिए ड्रग्स लेना शुरु कर देते हैं. इनमें से करीब 5 फीसदी की उम्र 12 से 17 साल के बीच पाई गई.
बेघर बच्चों के बीच तो यह समस्या और भी गंभीर है. रिपोर्ट में पाया गया कि भारत के करीब दो करोड़ बेघर बच्चों में से 40-70 फीसदी किसी ना किसी तरह के ड्रग्स के संपर्क में आते हैं और इनमें से कई को तो पांच साल की उम्र से ही नशे की लत लग जाती है.
आरपी/एमजे (पीटीआई, एएफपी)