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सेना को घर में घुस कर नचाया

१९ अक्टूबर २००९

पाकिस्तान में आत्मघाती हमलों की झड़ी से जर्मन मीडिया को भी बेचैनी हो रही है. सबसे अधिक चिंता पाकिस्तानी सेना की गिरती हुई साख और परमाणु बमों की सुरक्षा को ले कर है.

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पाक सेना का मुख्यालयतस्वीर: AP

पाकिस्तानी तालिबान के सरगना बैतुल्ला महसूद की मृत्यु के बाद वहां इस्लामी अतिवादियों के आत्मघाती बम-प्रहारों की बाढ़-सी आ गयी है. जर्मन दैनिक दी वेल्ट का समझना है कि तालिबान लड़ाकों का नया सरदार हकीमुल्ला महसूद भी उतना ही हृदयहीन है, जितना उसका पूर्वगामी थाः

"सोचा तो यही जा रहा था कि बैतुल्ला महसूद की मौत के बाद तालिबान इतनी आसानी से उठ खड़े नहीं हो पायेंगे, लेकिन उनके नये मुखिया ने यही कर दिखाया है. दुनिया का ध्यान खींचने को लालायित हकीमुल्ला एक ऐसा आदमी है, जिस के हाथ में अब संसर के एक सबसे ख़तरनाक आतंकवादी गिरोह की पतवार है. उसने खुले आम अफ़ग़ान तालिबान के मुखिया मुल्ला उमर के साथ गठजोड़ करने की बात कही है."

तालिबान के लड़ाके पिछले सप्ताह रावलपिंडी में पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय तक में सेंध लगाने में सफल हो गये. साप्ताहिक पत्र दी त्साइट का कहना है कि उनके हमले को अंततः भले ही विफल कर दिया गया हो, पर वह अनेक प्रश्न पीछे छोड़ने के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना की साख को बट्टा तो लगा ही गयाः

Hakimullah Mehsud Taliban Tehrik e Taliban
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

"अब तक अधिकतर पाकिस्तानी सोचते थे कि सेना वाले ख़राब राजनीतिज्ञ भले ही हों, वे जाबांज़, अनुशासित और बहादुर योद्धा हैं. और अब इन्हीं सेना वालों को तालिबान उनके घर में घुस कर नचा गये. पाकिस्तानी अब पूछ रहे हैं, तब क्या होगा जब सेना हमारी रक्षा नहीं कर पायेगी? इसलिए नहीं कि उसकी अतिवादियों के साथ मिलीभगत हो सकती है, बल्कि इसलिए कि वह उनसे लड़ाई जीतने के क़बिल ही नहीं है. यह एक ऐसा नया, बेचैनी भरा विचार है, जो सेना के स्वाभाविक गर्व की जड़ खोदता है".

पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय तक तालिबान-मार्च को देख कर समाजवादी विचारधारा वाला बर्लिन का ऩोएस डोएचलांड पूछता है, पाकिस्तानी परमाणु अस्त्र आख़ीर कितने सुरक्षित हैं? पत्र ने लिखाः

"पाकिस्तानी परमाणु बमों पर इलेक्ट्रॉनिक कोड वाली वैसी कोई सुरक्षा प्रणाली नहीं लगी है, जैसी अमेरिका के बारे में हम जानते हैं. यानी, सिद्धांतः जो कोई इन हथियारों को हथिया लेगा, वह उनको इस्तेमाल भी कर सकता है. यूरेनियम शांतिकाल में भले ही आयुधशीर्षों में नहीं रहता और यूरेनियम की तरह ही बम का बाहरी खोल भी अलग अलग जगहों पर रखा रहता है, लेकिन यह न्यूनतम सुरक्षा व्यवस्था भी बड़ी तेज़ी के साथ रास्ते से हटायी जा सकती है. समझा जाता है कि अमेरिका पाकिस्तानी बम से सैनिक बचाव की तैयारी कर चुका है. हिंद महासगार के डियोगो गार्सिया द्वीप वाले सैनिक अड्डे पर के विशेष सैनिक दस्ते अभी से सजग कर दियो गये हैं."

फ्रांसीसी पत्र ले मोंद दिप्लोमातीक के जर्मन संस्करण ने भारतीय सेना के आधुनीकरण को अपना विषय बनाते हुए लिखाः

"वैसे तो भारत अब भी शीत युद्ध वाले समय की परिचालन अवधारणाओं और रूसी हथियारों पर निर्भर है, लेकिन भारतीय अब अधिक से अधिक हथियार स्वयं बनाना चाहते हैं. 13 लाख वर्दीधारी सैनिकों वाली भारतीय सेना चीन और अमेरिका के बाद संसार की तीसरी सबसे बड़ी सेना है. भारत को चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध की संभवना के प्रति हमेशा सजग रहना पड़ेगा, क्योंकि भारत और चीन यदि अगले वर्षों में भी इसी तरह हथियार जमा करते रहे, तो वे एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी भी ज़रूर बनेंगे."

भारत बिजली की तंगी को दूर करने के लिए इस सदी के मध्य तक अपने यहां संसार में सबसे अधिक परमाणु बिजलीघरों का भी निर्माण करना चाहता है. इस पर आर्थिक दैनिक हांडेल्सब्लाट की टिप्पणी थीः

"दिल्ली सरकार की योजनाएं बड़ी लंबी-चौड़ी हैं. अगले 20 वर्षों में वह नये बिजलीघरों के निर्माण पर 100 अरब डॉलर ख़र्च करना चाहती है. इस सदी के मध्य तक 40 प्रतिशत बिजली परमाणु बिजलीघरों से आयेगी. यदि भारत ऐसा कर पाता है तो वह चीन के विशालकाय परमाणु कार्यक्रम को भी पीछे छोड़ देगा. विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत अधिकतर अपनी घरेलू टेक्नॉलॉजी का ही उपयोग करेगा. यह बात न केवल पश्चिमी देशों की परमाणु तकनीक कंपनियों को ही बेचैन कर रही है, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आइएईए को भी रास नहीं आ रही है... पश्चिमी विशेषज्ञ आगाह करते हैं कि भारत के परमाणु रिएक्टर उतने सुरक्षित नहीं हैं, जितने फ्रांस या अमेरिका के नये रिएक्टर हैं."

संकलन- अना लेमान / राम यादव

संपादन-एस जोशी