जर्मनी में सीरियाई बच्चे
२८ जुलाई २०१४16 साल की हेवा दाऊद उत्तरी सीरिया के हासाका शहर से हैं. 2011 में उनका परिवार सीरियाई विद्रोह से बचने के लिए भाग निकला. पहले तुर्की, फिर बल्गेरिया और फिर ग्रीस. आखिरकार वह जर्मनी पहुंचे.
जर्मनी में हेवा कुछ नहीं कर सकती थीं. स्कूल भी जा नहीं सकती थी. हेवा की साथी रामा हामिदा का परिवार भी सीरिया से जान बचाने के लिए भागा था. रामा बताती हैं, "चूंकि स्कूल जाना भी अब संभव नहीं इसलिए भी कई लोग सीरिया छोड़ रहे हैं. हमारे स्कूल खुले नहीं हैं. और हम वहां जा भी नहीं सकते थे." रामा अलेप्पो की रहने वाली हैं.
अंतरराष्ट्रीय पढ़ाई नहीं
हेवा दाऊद और रामा हामिदा को वैसे तो नवीं या दसवीं कक्षा में होना चाहिए था. लेकिन उन्हें जर्मन तो आती नहीं. इसलिए उन्हें एक ऐसी कक्षा में रखा गया है जहां दुनिया भर से आए बच्चे जर्मन सीखते हैं. लेकिन हाले में ऐसी बहुत कक्षाएं नहीं हैं. शरणार्थी के तौर पर आए कई बच्चे ऐसे हैं जो क्लास में तो बैठते हैं लेकिन कुछ समझ नहीं पाते क्योंकि पढ़ाई जर्मन में चल रही होती है.
हाले के एक स्कूल में इस साल कई सीरियाई बच्चों ने एडमिशन ली है. उवे बोएगे जैसे कुछ शिक्षकों ने सीरियाई बच्चों को एक्स्ट्रा क्लास देनी शुरू की लेकिन उन्हें अरबी नहीं आती थी इसलिए शिक्षकों और बच्चों में संवाद नहीं हो सका.
निजी कोशिशें
बोएगे ने पास के विश्वविद्यालय के जर्मन भाषा और ओरिएंटल इंस्टीट्यूट से संपर्क किया. वहां अरबी पढ़ने वाले छात्रों ने सीरियाई युवाओं को जर्मन सिखानी शुरू की. इससे बहुत तेजी से फर्क पड़ा. बोएगे की कोशिशों से 2013 में एक्स्ट्रा क्लास शुरू की गई. अब यहां करीब 18 सीरियाई बच्चे हैं जो 10 से 17 साल के बीच में हैं.
15 साल की रामा हामिदा को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे कौन पढ़ा रहा है. वह बस इतना चाहती है कि जर्मनी में वह अच्छे से स्कूल खत्म करे और बढ़िया नंबरों से पास हो. एक सपना उनका जरूर है कि वह पढ़ाई खत्म करके सीरिया जाएंगी और फिर वहां यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेंगी.
रिपोर्टः वेरोनिका ग्रांडके/एएम
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन