1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सर्वशिक्षाः कितनी मुश्किल कितनी आसान

शिव प्रसाद जोशी, देहरादून१४ जनवरी २००९

संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्यों में जन जन तक प्राथमिक शिक्षा पहुंचाना सबसे अहम है क्योंकि यह ग़रीबी उन्मूलन, समानता के अधिकार और स्वास्थ्य से सीधे तौर पर जुड़ा हैं. डॉयचे वेले की ख़ास श्रंखला की पहली कड़ी.

https://p.dw.com/p/GXoH
शिक्षा सबके लिए!तस्वीर: DW/Sabina Hartert

सबको प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराना वह लक्ष्य है जिसे शत प्रतिशत तौर पर हासिल किया जाना है. यानी दुनिया के सभी बच्चों को 2015 तक प्राईमरी शिक्षा हासिल कराना. आबादी के लिहाज़ से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मुल्क भारत में प्राथमिक शिक्षा के लिए सर्व शिक्षा अभियान जैसी योजनाएं तो चल पड़ी है, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है.

Dossier Unicef: Schule in Indien
आर्थिक असमानता भी शिक्षा में एक बड़ी बाधा है.तस्वीर: UNICEF India/Sandip Biswas

मिलेनियम डेवलेपमेंट गोल्स के तहत भारत को प्राथमिक शिक्षा में सुधार लाने के लिए जो लक्ष्य दिया गया है, उसका एक प्रमुख औज़ार है "सर्व शिक्षा अभियान". प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका मुक्ता बताती हैं कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत भारत सरकार ने बच्चों को स्कूल में लाने की पूरी कोशिश की है. लेकिन इसके लिए सबसे ज़रूरी मां-बाप को जागरूक करना होगा.

मिलेनियम गोल के तहत भारत को 2015 तक प्राइमरी स्कूलों में दाख़िले की दर सौ फ़ीसदी करनी होगी. बीच में ही स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या यानी "ड्रॉपआऊट" दर भी मिटानी होगी. 1991-92 में ड्रापआऊट दर क़रीब 42 फ़ीसदी थी. 2002-2003 में प्राइमरी शिक्षा में ड्रॉपआऊट दर क़रीब 35 फीसदी थी. सबसे बड़ी चुनौती है, बच्चों को स्कूल तक लाना और उनकी शिक्षा में प्राथमिक शिक्षा के आगे भी निरंतरता रख पाना.

Dossier Unicef: Junge in der Schule, Indien
बहुत से लोगों तक शिक्षा पहुंचाना अब भी एक चुनौतीतस्वीर: UNICEF India/Sandip Biswas

ड्रॉपआउट की वजह क्या है? इस बारे में शिक्षक सुरेंद्र कुमार कहते हैं कि कई बार उन बच्चों को भी पास कर दिया जाता है, जिन्हे कुछ नहीं आता. इनका मानना है कि यह अभियान बस समाज को धोखा देनी वाली बात है.

शिक्षा तंत्र में एक बड़ी बात अध्यापकों को बेहतर ट्रेनिंग देने की भी है. मुक्ता अपना ट्रेनिंग अनुभव बताती हैं, 'आपको ताज्जुब होगा, जब हमारी ट्रेनिंग होती है, हमें ख़ुद टाट पट्टी पर बिठाया जाता है. शिक्षा की नीतियां बेशक एसी कमरों में बैठकर बनाई जाती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर योजना और उसे लागू किए जाने में फ़ासला है.' सुरेंद्र कुछ और समस्याओं की तरफ़ भी ध्यान दिलाते हैं. वह कहते हैं कि शिक्षकों को स्कूली दायित्वों के अलावा कई तरह की सरकारी ज़िम्मेदारी भी निभानी पड़ती हैं. इसमें ख़ासकर चुनावी ड्यूटियों और कई तरह के सरकारी सर्वेक्षणों का ज़िक्र किया जा सकता है. वह कहते हैं कि शिक्षकों का ध्यान केवल पढ़ाई पर रखा जाना चाहिए ताकि बुनियाद अच्छी बने. आख़िर प्राइमरी शिक्षा के लिए जितनी ज़िम्मेदारी सरकार की है उतनी ही शिक्षकों भी है जिनकी निगाहों के आगे बच्चे रहते हैं. लेकिन कई बार शिक्षकों पर भी सवाल उठते हैं कि वे अपनी ज़िम्मेदारियां ठीक ने नहीं निभा रहे हैं. शिक्षकों की मानें तो सिस्टम में दोष है.

Schulessen in Indien
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई स्कूलों में बच्चों को दिया जाता है दिन का खाना भीतस्वीर: AP

प्राथमिक शिक्षा में सकल दाखिला अनुपात को देखें तो लड़कों के मामले में यह क़रीब सौ फ़ीसदी रही है और लड़कियों के मामले में 1992- 93 से लेकर 2002-03 तक की दस साल की अवधि में बीस फ़ीसदी अंकों की बढ़ोतरी देखी गयी है. साक्षरता दर भी 1992-93 में 52 फ़ीसदी के मुक़ाबले 2002-01 में बढकर 65 फ़ीसदी हो गयी है. सरकारी ख़र्च के लिहाज़ से देखें तो सबको प्राथमिक शिक्षा का लक्ष्य पाना आसान लगता है. लेकिन हाल के अध्ययन बताते है कि शैक्षिक नतीजों और सार्वजनिक शिक्षा संसाधनों में संबंध बहुत ही कमज़ोर होता जा रहा है. एक पहलू लोगों की सामाजिक स्थिति है. पेशे से मज़दूर रीता रानी का समझती है कि उनका बच्चा अगर पढ़ेगा तो ज़िन्दगी में आगे बढ़ेगा. लेकिन मज़दूर होने की हैसियत से वह उतना ही कर सकती हैं जितनी उनकी क्षमता है.

Dossier Unicef: Junge in einer Schule in Indien
विकास के लिए शिक्षा बेहद ज़रूरीतस्वीर: India/Sandip Biswas

सबसे बड़ी बात निजी स्कूलों यानी पब्लिक स्कूलों की मंहगी शिक्षा लेते बच्चों और सरकारी स्कूलो के बच्चों के बीच खाई है. रीता इसी विडंबना की ओर इशारा करते हुए एक धुंधली उम्मीद के बीच अपनी बात रख रही है.क़रीब साढ़े तीन करोड़ बच्चों के स्कूलों में नाम नहीं लिखाए गए हैं. करीब 39 फ़ीसदी प्राइमरी के बच्चे और क़रीब 55 फीसदी अपर प्राइमरी छात्र बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं. छात्र शिक्षक अनुपात में असंतुलन की वजह से शिक्षा का स्तर कमतर है. इन सबके बीच सरकार का दावा है कि वो प्राइमरी शिक्षा का लक्ष्य 2010 तक पा लेगी. लेकिन कई जानकारों को सरकार के इन दावे पर शक भी है.