सरकारी अधिकारियों की हिन्दी क्लास
२० जून २०१४भारत के प्रशासन में काम कर रहे कई अधिकारी ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज और हार्वर्ड जैसे विश्वविद्यालयों से डिग्रियां लेकर आए हैं और आधिकारिक कामों के लिए अंग्रेजी भाषा का सहज इस्तेमाल करते रहे हैं. लेकिन जब इनसे पत्राचार हिन्दी में करने को कहा गया तो बात इतनी सहज नहीं रही.
हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदेश जारी किया कि सभी आधिकारिक दस्तावेज हिन्दी भाषा में लिखे जाने चाहिए. साथ ही कहा गया कि सरकारी स्तर पर किसी भी तरह का पत्राचार हिन्दी में होना चाहिए. उत्तर भारत में लाखों लोग हिन्दी बोलते हैं, कई राजनेता भी हिन्दी का ही इस्तेमाल करते हैं जबकि कई प्रशासनिक अधिकारी केवल कुछ कामचलाऊ जुमले ही हिन्दी में बोलते हैं जिनका सरकारी कामकाज में इस्तेमाल होता है.
सरकार की आलोचना नहीं
हिन्दी में हाथ तंग होने के बावजूद ये अधिकारी नई सरकार की आलोचना करते नहीं दिखाई देना चाहते. एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "मुझे शब्दकोष खंगालते ही बहुत समय निकल जाता है. एक छोटा सा पत्र लिखने में अब मुझे सदियां लग जाती हैं." मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भारत के विशालकाय आधिकारिक तंत्र की सुस्ती और अन्य कमियों को खत्म करने की बात कही थी. हिन्दी भाषा के इस्तेमाल पर जोर देना भारतीय राजनीति की अब तक की छवि पर अपने अलग निशान छोड़ने जैसा दिखाई दे रहा है.
वैसे तो अगर मोदी की पृष्ठभूमि पर गौर किया जाए तो उनका बचपन चाय बेचने वाले बच्चे का था. उनकी स्कूली शिक्षा हिन्दी और गुजराती भाषा में हुई और यूनिवर्सिटी डिग्री कॉरेस्पॉन्डेंस कोर्स के जरिए. लेकिन भाषा पर जोर भी मोदी के लिए राजनीति का हिस्सा है. वह हिन्दू राष्ट्रवादी सोच की वाहक संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हिस्सा रहे हैं. आरएसएस हमेशा से ही हिन्दी को सशक्त भारत की भाषा मानता रहा है.
प्रधानमंत्री का सख्त रवैया
भाषा के अलावा भी मोदी द्वारा लिए गए कई अन्य फैसले सिविल अधिकारियों में बेचैनी पैदा करते दिखाई दे रहे हैं. इससे पहले खबरें थीं कि सरकार ने उन सभी अधिकारियों की लिस्ट मांगी है जो दिल्ली गोल्फ क्लब के सदस्य हैं. गोल्फ के शौकीन एक अन्य अधिकारी ने कहा, "इस तरह की लिस्ट बनाए जाने की खबर ने ही हम में से कई के रोंगटे खड़े कर दिए. इशारा इस तरफ है कि अगर आप अक्सर गोल्फ कोर्स में दिखाई देते हैं तो इसका मतलब काम आपकी पहली प्राथमिकता नहीं."
समाजशास्त्री अभिलाषा कुमारी कहती हैं, "दिल्ली के उच्च पदों के सरकारी अधिकारी नई सरकार के बारे में सिर्फ भाषा ही नहीं, कई अन्य बातों को लेकर भी संदेह में हैं." राजधानी के प्रमुख अधिकारियों के साथ पहली ही मीटिंग में मोदी ने कुछ मूल नियम सामने रखे जिनमें देरी को टालना, नौकरशाही को दूर करना, और कार्यक्षमता बढ़ाने और जवाबदेही पर गौर करने जैसी बातें शामिल थीं. इनके अलावा फाइलों को तेजी से आगे बढ़ाने और रिटायरमेंट के बाद सिविल अधिकारियों के लिए आरामदेह नौकरियों में कमी पर भी जोर दिया गया.
क्या सचमुच फायदा होगा
चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने भारतीय राजनीतिक ढांचे के ढीलेपन और इसकी कमियों को दूर करने को महत्व दिया था. उन्होंने यह भी कहा था कि वह भारत के लाखों लोगों में दोबारा गर्व की भावना का संचार करना चाहते हैं. इनमें से ज्यादातर वे लोग हैं जो गरीबी की जंग लड़ रहे हैं या बेरोजगारी की गिरफ्त में हैं. इस दिशा में एक अहम कदम हिन्दी भाषा को महत्व देना है, जो आम भारतीयों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है. मोदी ने यह भी कहा कि वह विदेशी नेताओं के साथ भी हिन्दी में ही बात करेंगे. इन परिवर्तनों ने सरकारी अधिकारियों को काफी सक्ते में डाल दिया है.
हालांकि भारत विभिन्न भाषाओं का देश है, यहां 22 अलग अलग आधिकारिक भाषाएं बोली जाती हैं. ऐसे में हिन्दी को खास अहमियत देने पर कई लोग सवाल भी खड़े करते हैं. इस बात को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि भारत की 1.2 अरब की कुल आबादी का 45 फीसदी हिस्सा लोग हिन्दी बोलते हैं लेकिन देश के दक्षिणी, पूर्वी और उत्तरपूर्वी इलाकों में ऐसे लाखों लोग हैं जो बिल्कुल भी हिन्दी नहीं बोलते. भारत के बड़े शहरों और संस्थानों में अंग्रेजी बोलने वालों की कोई कमी नहीं. देश के दस फीसदी लोग फर्राटे से अंग्रेजी बोलते हैं.
सरकारी अधिकारियों के लिए अचानक हिन्दी भाषा का लिखित इस्तेमाल फिलहाल तो भारी चुनौती जैसी दिखाई दे रही है. सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी अमिताभ पांडे कहते हैं, "ज्यादातर अधिकारी अंग्रेजी में सोचते हैं, लेकिन अगर उन्हें दस्तावेजों का अनुवाद करना पड़े या हिन्दी में पत्र लिखने पड़ें तो उनकी रफ्तार पर असर पड़ेगा. देखा जाए तो यह उस बात के खिलाफ है जो मोदी चाहते हैं, सरकारी कामकाज की रफ्तार बढ़ाना."
एसएफ/एमजी (एपी)