सम्मान की कीमत लगाने की अनुमति नहीं
२ जुलाई २०१५मद्रास हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने सामाजिक परिस्थितियों के हवाले से बलात्कार पीड़ित और दोषी को सुलह समझौते की सलाह देकर इस बहस को आगे बढाने की पहल की थी. लेकिन मध्य प्रदेश के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति द्वारा पीड़ित के साथ शादी कर सुलह करने की मांग को ठुकरा कर ऐसे अपराधों में कोई ढील बरते जाने से इंकार कर दिया. जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली खंडपीठ ने कहा कि महिलाओं की अस्मत पर बढ़ते हमलों को रोकने के लिए कानून सख्त रुख अख्तियार कर रहा है, ऐसे में यौन अपराधों के दोषियों को सुलह की छूट देने से कानून का मकसद पराजित हो जाएगा.
अदालत ने स्पष्ट किया कि एक महिला के लिए उसका शरीर मंदिर की तरह होता है जिसका सम्मान करना समाज के हर व्यक्ति का फर्ज है. खासकर भारत जैसे देश में जहां महिलाएं सदियों से पूजनीय रही हैं. महिलाओं के आत्मसम्मान के स्तर को देखते हुए समाज और कानून किसी को भी उसकी मर्जी के बिना उसका शीलभंग करने की इजाजत नहीं दे सकता है. अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में इस सैद्धांतिक पक्ष्ा के अलावा व्यवहारिक पक्ष को भी नजरंदाज करने की इजाजत नहीं दी जा सकती.
महिला की मर्जी के बिना सुलह समझौते के बारे में सोचना भी क्षम्य नहीं है. मद्रास हाईकोर्ट वाले मामले में बलात्कार के कारण बिनव्याही मां बनी पीड़ित सुलह से पूरी तरह इंकार कर रही है जबकि मध्य प्रदेश वाले मामले में प्रदेश सरकार ने फैसले के किलाफ अपील की है. अदालतों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आरोपी अक्सर कानून के चंगुल से बचने के लिए इस तरह के हथकंडे अपनाते हैं. ऐसे प्रस्ताव को मानने के बाद पीड़ित को उस व्यक्ति के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाता है जो महिलाओं की प्रतिष्ठा और शील के प्रति कतई संवेदनशील नहीं है.
अदालतों को सामाजिक मूल्यों के प्रति आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों की सोच में लगातार आती गिरावट पर भी ध्यान देना होगा और यौन अपराधों के मामलों में सुलह समझौते के विकल्पों पर बेहद सावधानी से विचार करना होगा. अन्यथा कानून को व्यवहारिकता के नजरिए से लागू करवाने की पहल किसी के जीवन को और अधिक नारकीय बनाने वाली साबित हो सकती है. साथ ही ऐसी भूल को सुधारने का उपाय कानून की किताबों में खोजना भी अदालतों के लिए मुमकिन नहीं होगा.
ब्लॉग: निर्मल यादव