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समाज

समुद्री डाकुओं को टक्कर देने वाले भारतीय जवान

आशुतोष पाण्डेय
२५ जुलाई २०१९

भारतीय नौसेना के रिटायर हो चुके कर्मियों की मांग विश्व भर की समुद्री सुरक्षा कंपनियों में बढ़ गई है. भारतीय नौसेना में कई साल काम कर चुके ये अनुभवी नौसैनिक नई नौकरियों में पहले से पांच गुना ज्यादा तक वेतन कमा रहे हैं.

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तस्वीर: Ocean Marine Security Consultant

सोमालिया के समुद्री डाकुओं के साथ हुए संघर्ष को याद करते हुए आज भी अब्दुल रज्जाक की रीढ़ कांप जाती है. भारतीय नौसेना के पूर्व नाविक रज्जाक की उस दौरान बड़ी मुश्किल से जान बची थी. सन 2013 में सोमालिया के तट के पास लाल सागर में रिटायर्ड नौसैनिक रज्जाक और उनकी टीम एक तेल टैंकर पर थे. इसी दौरान उनके ऊपर डाकुओं ने हमला किया था. कई राउंड फायरिंग के बाद भी डाकुओं ने टैंकर का लगातार पीछा किया. इस दौरान रज्जाक की टीम के पास गोले-बारूद तेजी से खत्म हो रहे थे लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया और अंतत: डाकुओं ने पीछा करना छोड़ दिया. रज्जाक कहते हैं, "हम अपनी जान के लिए डर रहे थे. अगर समुद्री लुटेरों ने पीछा नहीं छोड़ा होता, तो हम मारे जाते."

रज्जाक अब सुरक्षा कर्मचारियों की भर्ती करने वाली एक कंपनी चलाते हैं. उनकी कंपनी वैश्विक स्तर पर समुद्री सुरक्षा में कार्यरत कंपनियों को पूर्व भारतीय जवान भेजती है. ऐसी सुरक्षा कंपनियां सोमालिया के तट पर समुद्री डकैती से निपटने के लिए कम वेतन पर सुरक्षाकर्मी रखने के लिए एशिया की ओर देख रही हैं. सस्ते श्रम की मांग ने भारतीय सशस्त्र बलों के जवानों को पैसे कमाने का एक नया रास्ता दिया है. रज्जाक पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं, "हमें हमेशा जान का खतरा बना रहता था. हमें नहीं पता होता था कि हम भारत वापस आ पाएंगे या नहीं. मेरा परिवार मेरे लिए हमेशा चिंतित रहता था. लेकिन मेरा वेतन मेरे परिवार को मनाने के लिए काफी था. वे समझते थे कि जान का खतरा ज्यादा वेतन की वजह से ही हुआ है."

निजी समुद्री सुरक्षा कंपनियों 2000 के दशक की शुरूआत में काफी फली फूलीं. उस समय हॉर्न ऑफ अफ्रीका में समुद्री डकैती अपने चरम पर थी. कंपनियों ने खतरनाक जल क्षेत्र को सुरक्षित पार कराने के लिए सुरक्षाकर्मियों की धड़ाधड़ भर्ती शुरू की. ये गार्ड मुख्य रूप से ब्रिटेन, अमेरिका और ग्रीस की सेना से लाए गए थे. जैसे-जैसे इस उद्योग में भीड़ बढ़ती गई, छोटे खिलाड़ियों ने बाजार में बने रहने के लिए भारत, श्रीलंका और अन्य एशियाई देशों से कम वेतन वाले गार्डों को काम पर रखना शुरू कर दिया. अधिकांश मामलों में पश्चिमी गार्डों की तुलना में ये कम अनुभवी और कुशल होते थे.

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रज्जाक बताते हैं कि उनकी कंपनी ने पिछले कुछ सालों में ही करीब 1,500 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को काम में लगाया है.तस्वीर: Ocean Marine Security Consultant

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी निजी समुद्री सुरक्षा कंपनी 'डियाप्लुस' के मुख्य वाणिज्य अधिकारी दिमित्रिस मनिआटिस ने डॉयचे वेले को बताया, "ये छोटी कंपनियां जो 'प्राइस वॉर्स' चला रही थीं, उन्होंने इंडस्ट्री को पूरे एशिया से रूबरू करवाया. लगभग हर कंपनी ने एक ऐसा एजेंट खोजने की कोशिश की जो उन्हें न्यूनतम दर पर वहा से गार्ड दिलवा सके." जल्द ही डियाप्लुस समेत कई बड़ी कंपनियां भी इस भेड़चाल में शामिल हो गईं. वे सस्ते गार्डों की भर्ती के लिए एजेंटों को खोजने लगे. धीरे-धीरे ऐसी कंपनियों की संख्या बढ़कर चार साल के भीतर लगभग 500 तक पहुंच गई. हालांकि बाद में सोमालिया के तट पर डकैती में कमी और प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाने की वजह से कई कंपनियां बंद हो गई. पश्चिम अफ्रीकी तट से दूर गिनी की खाड़ी में समुद्री डकैती अब भी जारी है.

सस्ते श्रमबल में खोज की वजह से समुद्री सुरक्षा में लगे गार्डों की आबादी में बड़ा अंतर आया है. आज लगभग दो-तिहाई गार्ड नेपाल, बर्मा और फिलीपींस सहित कई एशियाई देशों के हैं. गार्डों को काम पर रखने वाली शिपिंग कंपनियां यह सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें स्थानीय भोजन दिया जाए. हालांकि, केवल चीन की कंपनियां हैं जो उन्हें केवल चीनी भोजन परोसती हैं. एशियाई गार्डों को पश्चिमी देशों के गार्डों की तुलना में आधे से भी कम वेतन का भुगतान किया जाता है. पश्चिम के एक अनुभवी टीम लीडर को जहां प्रति माह 4500 डॉलर मिलता है, वहीं उसके भारतीय समकक्ष को महज 2000 डॉलर ही मिलता है. एक नए नवेले पश्चिमी गार्ड को अगर प्रति माह लगभग 1,600 डॉलर का भुगतान किया जाता है तो एक नए भारतीय गार्ड को प्रति माह केवल 750 डॉलर ही मिलते हैं.

समुद्री सुरक्षाबल मुहैया कराने वाली कंपनी डियाप्लुस में इस समय एक तिहाई से अधिक गार्ड भारत से हैं जबकि अन्य 10 प्रतिशत श्रीलंका से हैं. आय में अंतर के सवाल पर मनिआटिस कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि जिन देशों के जवानों को कम वेतन मिलता है, उन देशों से आने वाले नागरिक अपनी राष्ट्रीयता के कारण कम गुणवत्ता वाले हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर भारत के पास एक शानदार नौसेना और उत्कृष्ट अधिकारी अकादमी है. इन लोगों के पास समुद्री संचालन, समुद्री सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में नौसेना के साथ बातचीत का काफी ज्ञान होता है. वे समुद्री जीवन को भी समझते हैं. उन्हें समुद्री डाकू और मछुआरों के बीच का फर्क पता होता है."

हाल के महीनों में ओमान की खाड़ी में तेल टैंकरों पर हमले के बाद सुरक्षा गार्डों की मांग में काफी वृद्धि देखने को मिली है. इसके बावजूद कई समुद्री सुरक्षा कंपनियां बाजार में बने रहने के लिए संघर्ष कर रही हैं. उनमें से कई किसी भी गार्ड को काम पर नहीं रख रहे हैं. इसके बदले वे भर्ती फर्मों से उन्हें लीज पर ले रहे हैं. मनिआटिस कहते हैं, "यह संचालन के साथ-साथ कंपनी के लिए भी खतरे की घंटी है. उनके पास कोई प्रशिक्षण नहीं होता है. उनके पास काम पर रखने वाली कंपनियों की मानक प्रक्रियाओं की समझ नहीं होती और जिन हथियारों का वे इस्तेमाल करते हैं उनका उचित प्रमाणीकरण नहीं होता."

आरआर/आरपी

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