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समलैंगिकता पर केंद्र सरकार को नोटिस

९ जुलाई २००९

समलैंगिकता को क़ानूनी दर्जा देने के फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 20 जुलाई को होगी.

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दिल्ली के हाइकोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि सहमति से समलैंगिक संबंध अपराध नहीं.तस्वीर: UNI

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अगर ज़रूरत पड़ी तो हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ कोई अंतरिम आदेश देने पर विचार किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में नाज़ फाउंडेशन को भी नोटिस जारी किया है, जो हाई कोर्ट में एक पक्ष था. दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 जुलाई को अपने एक फ़ैसले में कहा था कि भारत में समलैंगिकता को अपराध नहीं माना जा सकता और आपसी रज़ामंदी से समलैंगिक रिश्तों में कोई दिक्कत नहीं. इस फ़ैसले को चुनौती देते हुए एक ज्योतिषी सुरेश कुमार कौशल ने एक याचिका दायर की थी.

इस याचिका पर दलील देते हुए कौशल के वकील ने अदालत से कहा कि हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद से भारत में सात समलैंगिक शादियां हो चुकी हैं और इसके बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. वकील ने दावा किया कि इसकी वजह से शादी की परंपरा ख़तरे में पड़ सकती है.

Homosexuelle aus ganz Indien feiern am Sonntag, den 28. Juli 2009 ausgelassen die "Delhi Queer Parade Foto: UNI
28 जून को पूरे भारत में समलैंगिक संबंधों के समर्थकों ने परेड निकाली थी.तस्वीर: UNI

हालांकि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, "हमने शादी की परिभाषा नहीं बदली है." छोटी सी सुनवाई के दौरान जब कौशल के वकील ने कहा कि हाई कोर्ट के फ़ैसले से ग़लत असर पड़ सकता है, तो बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस आम तौर पर केस दर्ज नहीं करती. अदालत ने कहा कि हालांकि क़ानून 1860 से लागू है लेकिन ऐसे मामलों में बाल यौन शोषण को छोड़ कर कुछ गिने चुने मामले ही दर्ज हैं. बेंच ने कहा, "हमारी जानकारी में समलैंगिक रिश्तों के मामले में कभी किसी को सज़ा नहीं मिली." इस बेंच में जस्टिस पी सतासिवम भी शामिल थे.

कौशल की याचिका में 2 जुलाई को हाई कोर्ट के फ़ैसले को फ़ौरन रद्द करने की मांग की गई थी. इससे पहले भारत में समलैंगिक रिश्ते अपराध की श्रेणी में आते थे और इसमें कड़ी सज़ा का प्रावधान था. याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक रिश्ते हर तरह से अप्राकृतिक हैं और इनकी इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया, "ऐसे अप्राकृतिक रिश्तों के नतीजों के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता. जानवर भी ऐसा नहीं करते हैं."

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः ए कुमार