संस्कृत की खोई पाण्डुलिपी इटली की लाइब्रेरी में
२२ जून २०१०जर्मनी की पोट्सडाम यूनिवर्सिटी ने इस प्राचीन किताब के मिलने की जानकारी दी. ग्रामैटिका ग्रैडोनिका नाम की यह किताब रोम के नजदीक कार्मलाइट मोनेस्ट्री लाइब्रेरी से मिली. बेल्जियम के टून वैन हॉल ने इसे ढूढा.
जर्मन यूनिवर्सिटी ने इस किताब को ढूंढने के लिए पूरे यूरोप में अभियान चला रखा था. एक जर्मन पादरी जॉन एर्न्सट हैंक्सलेबेन ने ये किताब भारतीय राज्य केरल में 1701 से 1732 के बीच लिखी थी. हैंक्सलेबेन फर्राटे से मलयालम बोलते थे और उन्होंने कई भाषाओं के व्याकरण पर काम किया है. कई दशकों से इस किताब के बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही थी. माना जा रहा था कि अब ये किताब खो चुकी है. जर्मन यूनिवर्सिटी व्याकरण पर अब तक मिली सारी जानकारियों को डिजिटल रूप में इंटरनेट पर डालने के काम में जुटी है. इसी काम के लिए उसे इस किताब की तलाश थी.
पश्चिम में संस्कृत को भारत और यूरोप की भाषाओं के परिवार का सबसे पुराना सदस्य माना जाता है. इस परिवार में अंग्रेजी, फ्रेंच और फारसी भी हैं. यही वजह है कि पश्चिमी देश के विद्वानों ने संस्कृत भाषा पर भी खूब काम किया. संस्कृत को भारत की भी लगभग सभी प्रमुख भाषाओं की मां समझा जाता है.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः आभा एम