श्रीलंका में हाथी के बच्चे क्यों खरीद रहे हैं लोग!
८ फ़रवरी २०१७2015 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री को तोहफे में हाथी के दो बच्चे दिए थे. लेकिन बाद में यह तोहफा विवादों में घिर गया. पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आपत्तियों के बाद श्रीलंका की सरकार ने इनमें से एक पांच साल के हाथी निंडा को ऑकलैंड के चिड़ियाघर में भेजने पर रोक लगा दी. आलोचकों का कहना है कि इतनी छोटी सी उम्र में हाथी को उसके झुंड से अलग करना क्रूरता होगी.
दोनों ही देशों में अब सरकारें बदल गई हैं, लेकिन हाथी अब भी श्रीलंका में विवादों के केंद्र में हैं. अब श्रीलंका में कई धनी लोग स्टेट सिंबल के तौर पर महंगी घड़ियां और कारें खरीदने के बजाय हाथी के बच्चे खरीद रहे हैं.
हाथियों के संरक्षण के लिए काम कर रहे बायोडावर्सिटी एंड एलिफेंट कंजरवेशन ट्रस्ट से जुड़े जयंते जायेवरदेने ने डीडब्ल्यू को बताया, "बहुत से धनी परिवार हाथी खरीद कर अपने सामाजिक रुतबे को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. हाथी के इन बच्चे के बड़ा होने पर भी उन्हें छोड़ा नहीं जाता है, ये लोग उन्हें अपने ही पास रखते हैं."
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श्रीलंका में हाथी हर जगह पाए जाते हैं. इसकी एक वजह यह है कि श्रीलंका में पाए जाने वाले हाथियों में हाथ दांत नहीं होता. इसीलिए दुनिया के दूसरे हिस्सों की तरह यहां हाथियों का शिकार नहीं होता. श्रीलंका में जंगली हाथियों की संख्या छह हजार से सात हजार है जबकि आधिकारिक तौर पर लगभग 250 हाथी पालतू हैं.
आलोचकों का कहना है कि हाथियों को जंगल से लाकर बाजार में बेचा जा रहा है. बताया जाता है कि हाल के सालों में कम से कम 40 हाथियों को गैर कानूनी तौर पर जंगल उठाया गया है. वह भी तब, जब श्रीलंका में जंगल से जानवरों को पकड़ना गैरकानूनी है.
श्रीलंका स्थित सेंटर फॉर कंजरवेशन एंड रिसर्च के अध्यक्ष और वैज्ञानिक पृथ्वीराज फर्नांडो कहते हैं कि जंगल से जानवरों को लेने से जुड़ी एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें पालतू बनाते समय उसके साथ क्रूर व्यवहार किया जाता है. वह कहते हैं, "पारंपरिक तौर पर जानवरों को पालूत बनाने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत पहले उन्हें भूखा रखा जाता है और पीटा जाता है और फिर उसके बाद उन्हें इनाम दिया जाता है."
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जायेवरदेने कहते हैं कि जंगल से किसी हाथी के पकड़े जाने पर सिर्फ उसे ही परेशानी नहीं झेलनी पड़ती, बल्कि उसके परिवार के अन्य सदस्यों पर भी इसका बुरा असर होता है. वह कहते हैं, "हाथियों में मां और बच्चे के बीच रिश्ता इंसानी बच्चे और उसकी के रिश्ते से भी ज्यादा मजबूत होता है. जब किसी हाथी को उसकी मां से अलग किया जाता है तो मां भावनात्मक रूप बहुत से तनाव में आ जाती है और बच्चे से दोबारा मिलने के लिए हर मुमकिन प्रयास करती है."
पशु अधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि हाथियों को सैकड़ों सालों से सांस्कृतिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन उनके साथ होने वाले व्यवहार और उनके रखरखाव पर अकसर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता. सरकार ने हाथियों के रखरखाव के लिए कई कानून पारित किए हैं. इनमें पांच साल से कम उम्र के हाथी से काम लेने पर प्रतिबंध भी शामिल है. इसके अलावा यह भी प्रावधान है कि हाथी हर रोज न्यूनतम दूरी चले और उसे खाने में ताजा सब्जियां और फल दिए जाएं.
लेकिन पृथ्वीराज कहते हैं, "अगर लोग कानून तोड़ने पर ही आमादा हों तो फिर कोई भी कानून गैरकानूनी गतिविधियों को नहीं रोक सकता. अच्छी बात है कि कानून सख्त किए जा रहे हैं लेकिन इससे भी जरूरी है कि उन्हें लागू भी किया जाए."