शहरों में इनका क्या काम
जर्मनी में भी अक्सर भालू, भेड़िए या लोमड़ी देखने के लिए आपको चिड़ियाघर या जंगल में जाने की जरूरत नहीं. कई शहरों में ये आते जाते रहते हैं...
दफ्तर में बारहसिंघा दिखना किसी को भी चौंका सकता है. यह घटना जर्मन शहर ड्रेसडेन की है जब एक 800 किलो का बारहसिंघा कांच का दरवाजा तोड़ अंदर घुस गया. यह दीवार और खिड़की के बीच फंस गया. कई घंटो के इंतजार के बाद इसे यहां से बाहर निकालने में कामयाबी मिली.
बारहसिंघे को बाहर निकालने में पुलिस और चिड़ियाघर के कर्मचारियों को खासी मशक्कत करनी पड़ी. उसे एक बड़े से कंटेनर में डालकर वापस जंगल में छोड़ा गया.
उत्तरी अमेरिकी मूल का यह प्राणी रकून कहलाता है. इसे 1934 में कासेल के पास जंगल में छोड़ा गया था. आज जर्मनी में हजारों रकून मौजूद हैं. कई सड़कों पर फिरते भी नजर आ जाते हैं, जैसे इस तस्वीर में यह मंजर बर्लिन का है.
जर्मनी में अक्सर इस तरह के जंगली सुअर सड़कों पर नजर आ जाते हैं. ये मिनटों में मैदान को खोद कर रख देते हैं, लोगों के सजे सजाए गार्डन को इससे कई बार नुकसान होता है. अनुमान है कि सिर्फ बर्लिन में ही करीब 10,000 जंगली सुअर हैं.
शहरों तक लोमड़ियों के पहुंच जाने के कई कारण माने जाते हैं. इन्हें इंसानी ठिकाने ठंडे जंगलों से ज्यादा आरामदेह महसूस होते हैं. शहरों में इन्हें खाने पीने की चीजें भी आराम से मिल जाती हैं और ये शिकारियों से भी बचे रहते हैं.
ब्रूनो नाम का यह भालू तब मशहूर हुआ जब 2006 में यह आल्प की पहाड़ियों से निकल कर बवेरिया पहुंचा. सात हफ्तों तक आजादी से घूमने, भेड़ों, खरगोशों और सुअरों को मारने के बाद ब्रूनो बच नहीं पाया और गोली से मारा गया. म्यूनिख के मेंश उंड नाटुर (मैन एंड नेचर) संग्रहालय में यह आज भी पाया जाता है.