वसंत में यूरोप आने से पहले सोच लें
एक शोध के अनुसार भारत में एलर्जी का सबसे बड़ा कारण धूल है. तो वहीं जर्मनी में लोगों को पराग कणों के कारण सांस लेने में दिक्कत आती है. अगर आप भी अप्रैल या मई में यूरोप का रुख करें, तो इन बातों को जान लें..
मधुमक्खियों का मौसम
पराग को सूर्यमुखी के फूल तक ले जाती मधुमक्खी. यह तस्वीर जर्मनी के फ्रैंकफर्ट ओडर के करीब ली गई. वसंत के मौसम में ऐसा बहुत देखने को मिलता है. सर्दी खत्म होने के बाद जब तेज धूप निकलने लगती है, तो फूलों से पराग निकलते हैं. ये देखने में जितने खूबसूरत लगते हैं, बहुत से लोगों की सेहत के लिए उतने ही खतरनाक साबित होते हैं.
आंखों का धोखा
ये समुद्र में फैले द्वीपों की तस्वीर नहीं है, बल्कि एक कार की छत पर बिखरे पराग हैं. यह तस्वीर जर्मनी के श्टुटगार्ट में ली गई. हवा में पराग कणों की मात्रा कितनी होगी, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि मौसम कैसा है. अगर सर्दी के बाद धीरे धीरे वसंत आए, तो पराग के कारण लोगों को कम परेशानी होती है. लेकिन अगर अचानक ही मौसम बदले तो चारों ओर पराग फैले दिखते हैं.
अखरोट का पेड़
इस पेड़ के पास नर और मादा दोनों हिस्से होते हैं, इसलिए इसे मधुमक्खियों की जरूरत नहीं पड़ती. हवा से ही परागण मुमकिन हो जाता है. अप्रैल और मई के महीने में कई पेड़ परागण करते हैं. ऐसे में बहुत से लोगों को ध्यान रखना पड़ता है कि उनके आस पास कौन कौन से पेड़ मौजूद हैं, क्योंकि ये एलर्जी का कारण बन जाते हैं. हर किसी को अलग अलग पेड़ से एलर्जी हो सकती है.
हवा में उड़ता जाए
यहां जो धुंध जैसा दिख रहा है, दरअसल वह पराग है. यह तस्वीर बवेरिया प्रांत में एक झील के पास की है. वसंत के मौसम में जर्मनी में सरसों के खेत खिल जाते हैं. चारों और पीले फूल और तेज धूप होने पर पीली धुंध भी देखने को मिलती है. जिन लोगों को पोलन एलर्जी होती है, उनके लिए यह जानलेवा भी हो सकती है. इस मौसम में आंखों में जलन, खांसी, छींकें और सिरदर्द आम बात है.
चेस्टनट का पेड़
यह भी एक तरह का अखरोट होता है और जर्मनी में इसके पेड़ बहुत देखने को मिलते हैं. वसंत के मौसम में इनमें सफेद और गुलाबी रंग के फूल निकलते हैं. ये पेड़ परागण के लिए मधुमक्खियों और अन्य कीड़ों पर निर्भर करते हैं.
कोणधारी पेड़
इस तरह के पेड़ अकसर पहाड़ी इलाकों में देखने को मिलते हैं. जर्मनी के कई जंगलों में आपको ये दिख जाएंगे. इन पर कोण या शंकु लगे होते हैं. अगर कई दिन तक बरसात ना हो और सूरज चमकता रहे, तो आपको ऐसा नजारा देखने को मिलेगा. लेकिन चिंता की बात नहीं है क्योंकि जर्मनी में ऐसे दिन कम ही होते हैं, जब बारिश ना हो.
इनके बिना क्या होता?
अगर आपको लगता है कि आप दिन भर में बहुत काम करते हैं, तो मधुमक्खी के जीवन के बारे में सोचिए. एक मधुमक्खी दिन भर में करीब 5,000 फूलों पर बैठती है और परागण में अपना योगदान देती है. हालांकि शहरों में मधुमक्खियां अब कम हो रही हैं, जो कि चिंता का विषय है. अगर ये ना रहीं, तो आज हम जिन फल, फूल और सब्जियों को जानते हैं, वे धरती से गायब हो जाएंगे.
छींके ही छींके
अप्रैल और मई का महीना एलर्जी वाले लोगों के लिए सबसे डरावना होता है. शरीर का इम्यून सिस्टम पराग कणों के प्रति ऐसी प्रतिक्रया देता है जैसे कि वे कोई परजीवी हों और फिर वह उससे लड़ने में लग जाता है. पराग कणों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया में ही छींकें आती हैं, आंखों से पानी आता है. और जिस व्यक्ति को यह झेलना पड़ता है, उसकी हालत बुरी हो जाती है.
तेल रिसाव?
जी नहीं, यह तेल रिसाव की तस्वीर नहीं है, बल्कि सड़क पर फैले पोलन हैं. यह तस्वीर जर्मनी के नॉर्थराइन वेस्टफेलिया प्रांत में ली गई है. रिसर्चरों का कहना है कि साल 2018 पोलन की मात्रा बीते सालों की तुलना में काफी ज्यादा दर्ज की गई है और यही वजह है कि यहां रह रहे लोगों को भी एलर्जी से जूझने में ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
भविष्य में और भी ज्यादा
साल 2000 में वसंत के मौसम में एक घन मीटर हवा में औसतन 8,455 पराग कण मिले थे. यह संख्या लगातार बढ़ रही है. एक शोध के अनुसार साल 2040 तक यह संख्या बढ़ कर 21,735 हो जाएगी. इसकी एक बड़ी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जा रहा है. धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है और इससे पेड़ पौधों के प्रजनन की प्रक्रिया पर भी असर पड़ रहा है.