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समाज

दो-तिहाई जिंदगी सड़कों पर बिताने वाले भी सड़कों पर फंसे

प्रभाकर मणि तिवारी
१८ अप्रैल २०२०

अपने जीवन को लगभग दो-तिहाई हिस्सा सड़कों या ट्रकों पर बिताने वाले ट्रक ड्राइवर और खलासी भी कोरोना की वजह से जारी देशव्यापी लॉकडाउन की चपेट में आकर देश के विभिन्न हिस्सों में फंस गए हैं.

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Indien Trucks
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

ट्रक मालिक संगठनों का दावा है कि देश भर में लगभग साढ़े तीन लाख ट्रक जहां-तहां फंसे हैं और उन पर लगभग 35 हजार करोड़ का सामान लदा है. दो-चार दिनों की छुट्टी पर गांव जाने वाले ड्राइवर भी लॉकडाउन की वजह और कोरोना के डर से काम पर नहीं लौट पा रहे हैं. इसी तरह दूरदराज के हिस्सों में सामान पहुंचाने गए ट्रक वहीं फंस गए हैं. उनको खाली लौटने की अनुमति नहीं मिल रही है. देश का पूर्वोत्तर इलाका तो खाद्यान्नों और दूसरी जरूरी वस्तुओं की ढुलाई के लिए काफी हद तक सड़क परिवहन पर ही निर्भर है. असम की राजधानी गुवाहाटी तक तो ज्यादातर माल रेल मार्ग के जरिए भी पहुंच जाता है. लेकिन इलाके के दूसरे राज्यों में रेलवे नेटवर्क नहीं होने की वजह से यह ट्रक ही एकमात्र सहारा हैं, लेकिन लॉकडाउन से ठीक पहले सामान लेकर इलाके में पहुंचने वाले हजारों ट्रक भी सड़कों पर फंसे पड़े हैं. तमाम ढाबों के बंद होने से ड्राइवरों और खलासियों के सामने खाने-पीने का संकट भी पैदा हो गया है.

हालत खराब

सिलीगुड़ी से खाद्यान्न लेकर नागालैंड की राजधानी कोहिमा के लिए रवाना होने वाले कीरत सिंह बीते 24 मार्च से ही हाइवे पर दूसरे ड्राइवरों के साथ फंसे हैं. कोहिमा में माल की डिलीवरी के बाद ही लॉकडाउन का एलान हो गया. वापसी में कुछ दूर जाने के बाद पुलिस ने उनको रोक दिया. कीरत बताते हैं, "मैं सैकड़ों दूसरे ड्राइवरों के साथ फंसा हूं. ढाबों के बंद होने से समस्या बढ़ गई है. हम पैसे होने के बावजूद जरूरी सामान नहीं खरीद पा रहे हैं. अपना खाना बना कर किसी तरह जी रहे हैं. अब लॉकडाउन बढ़ने की वजह से समस्या गंभीर होती जा रही है.” लॉकडाउन के दौरान सिर्फ जरूरी वस्तुओं की ढुलाई को ही छूट है. लेकिन इलाके में ज्यादातर सामान सड़क मार्ग के जरिए ही पहुंचता है. ऐसे चीजें लेकर दूर-दराज के राज्यों से पूर्वोत्तर आने वाले हजारों ड्राइवर और ट्रक फंस गए हैं.

इसी तरह दक्षिण भारत से मछलियां और दूसरी चीजें लेकर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता पहुंचने वाले हजारों ट्रक भी यहां फंस गए हैं. कोलकाता से कुछ दूर बने ट्रक टर्मिनस में किसी तरह दिन काटने वाले इन ड्राइवरों और खलासियों की मुसीबतें दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही हैं. आंध्र प्रदेश से मछली लेकर आने वाले मोहन बाबू (55) बताते हैं, "हम हर महीने कई चक्कर लगाते थे. लेकिन इस बार ऐसा होगा, इसकी कल्पना तक नहीं की थी. अब तो पास रखे पैसे भी खत्म हो रहे हैं.” तमाम फैक्टरियों के बंद होने से कई ट्रक तो माल के साथ ही हाइवे पर या टर्मिनस में खड़े हैं. वहां चोरी का भी अंदेशा बढ़ रहा है. इन ट्रकों में दो-पहिया वाहनों के अलावा टीवी, फ्रिज और वाशिंग मशीनें जैसे उपभोक्ता सामान भरे पड़े हैं. लेकिन गोदामों के बंद होने और मजदूरों के नहीं होने की वजह से सामान उतारा नहीं जा सका है.

देश में ट्रक मालिकों के सबसे बड़े संगठन आल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के अध्यक्ष कुलतरण सिंह अटवाल कहते हैं, "देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे लगभग साढ़े तीन लाख ट्रकों को उनकी मंजिल तक पहुंचने की छूट दी जानी चाहिए. ड्राइवरों और खलासियों को तो भारी परेशानी हो ही रही है, कई सामानों के भी खराब हो जाने या चोरी होने का खतरा है. यह आंकड़ा तो अनुमानित है. सिर्फ एक राज्य के भीतर चलने वाले ट्रकों को जोड़ें तो यह तादाद और ज्यादा हो जाएगी. वह कहते हैं कि सरकार कुछ भी कहे, जमीनी स्तर पर समस्या बेहद गंभीर है.” अब केंद्र सरकार ने परिवहन मालिकों से ऐसे ट्रकों का आंकड़ा मांगा है.

एआईएमटीसी का दावा है कि उसके सदस्यों के पास छोटे-बड़े एक करोड़ ट्रक हैं. अटवाल कहते हैं, "ट्रक मालिकों के लिए यह बेहद मुश्किल परिस्थिति है. हजारों करोड़ का सामान सड़कों पर है. सरकार को जरूरी वस्तुओं के साथ ही उपभोक्ता वस्तुओं से लगे ट्रकों को भी मंजिल तक पहुंचने की अनुमति देनी चाहिए. ज्यादातर ट्रक राज्यों की सीमा या चेकपोस्ट पर फंसे हैं.” कार कैरियर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विपुल नंदा बताते हैं, "10 हजार कारों और एसयूवी से लदे 15 हजार से ज्यादा कंटेनर ट्रक सड़कों पर या फैक्टरियों व गोदामों के बाहर खड़े हैं.”

दिवालिया होने का खतरा

आल इंडिया ट्रांसपोर्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप सिंघल का कहना है कि यह स्थिति लंबी खिंची तो कई परिवहन कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं. सरकार को इस उद्योग के लिए वित्तीय पैकेज का एलान करना चाहिए. ट्रकों की किस्तों को छह महीने तक माफ किया जाना चाहिए.

इंडियन फाउंडेशन आफ ट्रांसपोर्टर्स रिसर्च एंड ट्रेनिंग के अनुमान के मुताबिक, विभिन्न राज्यों की सीमाओं पर लगभग पांच लाख ड्राइवर व खलासी फंसे हुए हैं. इसके अलावा ढाई से तीन लाख ड्राइवर तो चाबियां मालिकों को सौंप कर अपने घर जा चुके हैं. उनके नहीं लौटने की वजह से भारी तादाद में ट्रक इधर-उधर खड़े हैं. एआईएमटीसी ने जरूरी वस्तुओं की सप्लाई में जुटे ट्रक ड्राइवरों और खलासियों के हितों की रक्षा के लिए केंद्र सरकार से उनका 50-50 लाख का बीमा करने की मांग की है.

एआईएमटीसी के महासचिव नवीन गुप्ता आंकड़ों के हवाले बताते हैं, "रोजाना औसतन प्रति ट्रक 22 सौ रुपए की दर से जोड़ें तो भी अब तक परिवहन उद्योग को 50 हजार करोड़ से ज्यादा की चपत लग चुकी है. नब्बे फीसदी ट्रक खाली खड़े हैं. लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी इस उद्योग को सामान्य हालत में लौटने में दो से तीन महीने का समय लग जाएगा.”

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