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समाज

लैंगिक समानता में गरीब देशों से भी पिछड़े पश्चिम के अमीर देश

१२ फ़रवरी २०२१

दुनिया भर में विज्ञान के क्षेत्र में अभी भी महिलाओं को लिंग के आधार पर काफी ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है. पश्चिमी दुनिया के कई अमीर देश लैंगिक समानता के मामले में दुनिया के कुछ गरीब देशों से पीछे हैं.

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Wissenschaftlerin | Labor | Symbolbild
तस्वीर: picture-alliance/Panther Media/LightField Studios

यह जानकारी यूनेस्को की हाल की एक रिपोर्ट में सामने आयी है. पूरी रिपोर्ट अप्रैल महीने में जारी की जाएगी. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान प्रौद्योगिकी क्रांति के अधिकांश क्षेत्रों में कौशल की कमी के बावजूद, इंजीनियरिंग से स्नातक करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 28 प्रतिशत है. वहीं, कंप्यूटर साइंस और इंफॉर्मेटिक्स से स्नातक करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है. यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र का शैक्षणिक, वैज्ञानिक, और सांस्कृतिक संगठन है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश का कहना है कि बंद प्रयोगशालाएं और बीमारों की तीमारदारी के मामलों में वृद्धि कोरोना महामारी के दौरान वैज्ञानिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की सबसे बड़ी चुनौती थी. उन्होंने विज्ञान में महिलाओं के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर एक संदेश में कहा, "बेहतर भविष्य के निर्माण के लिए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लैंगिक समानता को प्रोत्साहन देना जरूरी है."

अमीर देशों का ट्रैक रिकॉर्ड वैश्विक औसत से कम

यूनेस्को की रिपोर्ट में पाया गया है कि इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी के मामले में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के सदस्यों का ट्रैक रिकॉर्ड वैश्विक औसत से कम है. इस संगठन में ज्यादातर अमीर देश शामिल हैं. इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी फ्रांस में 26.1 प्रतिशत, ऑस्ट्रेलिया में 23.2 प्रतिशत, संयुक्त राज्य में 20.4 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया में 20.1 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड में 16.1 प्रतिशत और जापान में 14 प्रतिशत है.

यूनेस्को को इस मामले में कोई अलग क्षेत्रीय पैटर्न नहीं मिला. हालांकि, यह नोट किया गया है कि अरब देशों में महिला इंजीनियरिंग स्नातकों की हिस्सेदारी अल्जीरिया में 48.5 प्रतिशत, मोरक्को में 42.2, ओमान में 43.2, सीरिया में 43.9 और ट्यूनीशिया में 44.2 प्रतिशत है. लैटिन अमेरिकी देश में भी महिलाओं की हिस्सेदारी का प्रदर्शन सही है. इंजीनियरिंग स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी क्यूबा में 41.7 प्रतिशत, पेरू में 47.5 और उरुग्वे में 45.9 प्रतिशत है. यूनेस्को ने बताया, "कुल मिलाकर, महिला शोधकर्ता छोटे और कम वेतन वाले करियर की ओर रुख करती हैं."

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार विज्ञान के विषयों में महिला ग्रेजुएट पैदा करने में भारत अव्वल है लेकिन उन्हें नौकरी देने के मामले में 19वें स्थान पर है. विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में पास करने वाले लोगों में महिलाओं का हिस्सा 40 प्रतिशत है लेकिन शोध कार्य में लगे 28,00 वैज्ञानिकों में महिलाओं का अनुपात सिर्फ 14 प्रतिशत है. कॉरपोरेट कंपनियां विशेष स्कॉलरशिप देकर महिलाओं को रिसर्च के क्षेत्र में लाने की कोसिश कर रही हैं.

लिंग की वजह से किया जा रहा दरकिनार

यूनेस्को की रिपोर्ट में बताया गया है, "महिलाओं के काम को हाई-प्रोफाइल पत्रिकाओं में प्रस्तुत किया जाता है और उन्हें अक्सर प्रचार के लिए पारित कर दिया जाता है. महिलाओं को आमतौर पर उनके पुरुष सहयोगियों की तुलना में कम रकम के शोध अनुदान दिए गए." यूनेस्को के डाइरेक्टर-जनरल ओद्रे आजूले कहते हैं, "आज 21वीं सदी में भी लिंग की वजह से, विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों को दरकिनार किया जा रहा है." वह कहती हैं, "महिलाओं को यह जानना चाहिए कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के क्षेत्र में उनकी भी एक जगह है. उन्हें वैज्ञानिक प्रगति में हिस्सेदारी का अधिकार है."

यूनेस्को ने कहा कि तेजी से बढ़ रहे ऑटोमेशन के क्षेत्र में महिलाएं नहीं पिछड़ें, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें डिजिटल इकोनॉमी में समुचित हिस्सेदारी मिले, ताकि पहले से चले आ रहे लैंगिक पूर्वाग्रहों को दूर किया जा सके. यूनेस्को की रिपोर्ट में कहा गया है, "समाज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का असर बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसके अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है. इसका मतलब है कि दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले उत्पादों के डिजाइन में महिलाओं की जरूरतों और नजरिए को अनदेखा किए जाने की संभावना है."

आरआर/एमजे (एएफपी)

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