लीबिया का भूतिया शहर
लीबिया में अरब क्रांति के तीन साल बाद भी तावरगा शहर दोबारा आबाद नहीं हो पाया है. शहर से बेघर हुए लोग देश के किसी दूसरे हिस्सों में घर बनाने की जद्दोजहद में हैं.
सुनसान शहर
2011 के गृह युद्ध के दौरान तावरगा शहर मुहम्मद गद्दाफी की सेना का प्रमुख गढ़ रहा. घेराबंदी टूटने पर मिस्तारा के विद्रोहियों ने तावरगा के उन क्षेत्रीय लोगों से बदला लिया जिनका वे मिसराता के संघर्ष में हाथ मानते थे. तब से यह शहर खाली है और यहां के रहने वाले देश भर में धक्के खा रहे हैं.
कंटेनर में जिंदगी
त्रिपोली हवाई अड्डे के पास शरणार्थी कैंपों में लोग प्लास्टिक और निर्माण केंद्रों से निकले लोहे के केबिन में रह रहे हैं. एक समय में इस इलाके में आलीशान अपार्टमेंट ब्लॉक, पार्क, स्विमिंग पूल और शॉपिंग मॉल बनाए जाने की योजना थी.
निशाने पर अल फलाह कैंप
16 नवंबर को हथियारों से लैस चार लोगों ने त्रिपोली के अल फलाह कैंप पर हमला किया. उन्होंने 28 साल के अबू मुंतलिब पर गोली चलाई, तीन अन्य लोग भी घायल हुए. घटना को अपनी आंखों से देखने वालों ने बताया कि उस दिन कुछ लोग पूछते हुए आए थे कि क्या यहां तावरगा के शरणार्थी हैं.
गुस्सा और दुख
इस महिला के भाई का मिसराता के विद्रोहियों ने अपहरण कर लिया, "वे हमें गद्दाफी का समर्थक कहते हैं, वे हमारे रंग से भी चिढ़ते हैं."
कामचलाऊ स्कूल
त्रिपोली के जांजूर कैंप में करीब 400 बच्चे पढ़ते हैं. जुफ्रा में लीबिया की सरकार ने शरणार्थियों के लिए 500 घरों के निर्माण का प्रस्ताव दिया है. हालांकि तावरगा की स्थानीय समिति ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है.
कोई अंत नहीं
जलिया सलीम (बाएं) ने अपने बेटे को नवंबर से नहीं देखा है, जब उसका अपहरण हुआ था. ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार लीबिया में जारी मानवता के खिलाफ अपराधों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.
जख्म भरने में समय लगेगा
लीबिया में आंतरिक विस्थापन कार्यालय की प्रमुख वफा एल्नास को नहीं लगता कि तावरगा के रहने वाले कभी घर लौटेंगे. उनके अनुसार तावरगा वाले जानते हैं कि पड़ोंसी मिसराता वालों में उनके खिलाफ कितनी नफरत भरी है. ये जख्म जल्दी नहीं भर पाएंगे.