'लिखना एक बौद्धिक कला है'
८ मार्च २०१३रईसों के भरोसे विकास की तलाश - बजट से पूर्व कयास लगाए जा रहे थे कि संभवतः इस बार चुनावी बजट आएगा और वित्तमंत्री लोक-लुभावन नीतियों की बौछार कर देंगे. ऐसे में आम आदमी स्वयं को यह सांत्वना देने के लिए तैयार बैठा था कि कम से कम कुछ समय तो कुछ राहत कारी साबित होगा. विपक्ष ने बजट को सिरे से ‘कन्फूज्ड' कहते हुए निराशावादी करार दे दिया है और रस्मी रिवाज को अटूट बनाते हुए सत्तापक्ष ने भी बजट को विकासवादी बजट की संज्ञा देकर अपनी पीठ स्वयं थपथपा ली है. आम आदमी ने भी एक बार फिर बजट के बाद अपना सिर पीट लिया है. बजट से किसी भी वर्ग को कोई खुशी नहीं हुई है.
रविश्रीवास्तव, इंटरनेशनल फ्रेंडस क्लब, इलाहाबाद
-----
सबसे पहले तो आप का बहुत बहुत शुक्रिया कि आपने मुझे दिनांक 28.02.2013 को daily code प्रतियोगता में विनर घोषित कर मेरा तथा मेरे साथियों का मान रखा .मैं इतना खुश हूं कि आपको बता नहीं सकता. मुझे आपकी वेबसाइट बहुत अच्छी लगती हैं तथा मैं रोजाना कम से कम दस बार देखता हूं. इसके बारे में मैं अपने सभी दोस्तों को भी बता रहा हूं. मुझे बस अब मेरे इनाम का इंतजार है. कृपया मेरा इनाम रजिस्टर्ड डाक से ही भेजने की कृपा करना . अगर हो सके तो यूएसबी स्टिक ही भेजना क्योंकि रोजाना बैंक में तथा दूसरे काम में उसकी जरुरत ज्यादा रहती है और इस बहाने आप को बार बार याद भी करेंगे .एक बार फिर से आप का बहुत बहुत शुक्रिया .
गुरजीत सिंह, ग्राम गुमटीकलान, पंजाब
-----
जब मैंने पहली बार मंथन देखा तो मुझे तब पता चला कि डीडब्ल्यू से मुझे ज्यादा ज्ञानवर्धक जानकारियां मिलेगी जो मेरे काम आयेगी. तब से मैं डीडब्ल्यू देखता हूं. आप मुझे इसी तरह ज्यादा जानकारियां देते रहना.
केयूर पटेल, मेहसना, अहमदाबाद
-----
क्या लिखना सीखा जा सकता है - लिखना, यह एक बौद्धिक कला है, प्रतिभा है. शब्दों का खेल सीखना हर किसी के बस की बात नहीं होती. यह प्रयोग अगर बिजनेस ड्राफ्टिंग में कारगर हो सकता हैं तो कथा कहानी, कविता जैसे पद्य में किया जा सकता है, पर आखिरकार खुद के विचार, अपनी शैली, अनुभव और उनका संस्करण लेखक की अपनी ही होनी है.
किरण धोने, फेसबुक से
-----
मैंने आज पहली बार आपका कार्यक्रम मंथन देखा. प्रोग्राम बहुत ही अच्छा है .. डीडी नेशनल पर इस तरह के और भी कार्यक्रम होने चाहिए क्योंकि आम ग्रामीण भारतीय जनता तक इस प्रकार के कार्यक्रम पहुंच नहीं पाते .... और आजकल आमतौर पर इस प्रकार के जानकारीपूर्ण कार्यक्रम भारत में चैनलों पर प्रसारित नहीं किए जा रहे हैं, वे तो बस .... मनोरंजक कार्यक्रम ही पेश करते हैं.
शदानंद सदिय, फेसबुक से
-----
मंथन - कितनी आश्चर्य की बात है कि मशीनें न सिर्फ मशीनों की बात समझ रही थीं,बल्कि इंसानों के आदेशों का पालन भी कर रही थीं. सचमुच इस तरह की मशीनें खासकर विकलांगों के लिए बेहद मददगार साबित होंगी. इंडस्ट्री 4.0 के बारे में ठोस जानकारी मिली. हमारे दैनिक उपयोग में आने वाले मीठे-नमकीन,रंग बिरंगे टूथ पेस्ट आकर्षक लगे. पहली बार जाना कि रंगीन और मीठे टूथ पेस्ट कैसे बनाये जाते हैं. स्पेन की रियोटिंचो नदी के खूनी पानी का राज़ हमारे क्लब के विद्यार्थी दर्शकों के लिए ज्ञानवर्धक लगा, लेकिन इससे कही आश्चर्य की बात यह लगी कि आखिर इसके जहरीले पानी में जीव जंतु पनपते कैसे हैं? टैटू बनवाने के खतरों से आगाह करने के लिए डीडब्ल्यू को बहुत-बहुत धन्यवाद. पर्यावरण को बचाने के लिए तेल उत्पादन को तिलांजलि देने वाले गरीब देश इक्वाडोर की जितनी भी तारीफ़ की जाए,कम होगी. बड़े-बड़े औद्योगिक देशों को इक्वाडोर के इस प्रयास से प्रेरणा लेनी चाहिए. एक बार फिर मंथन की पूरी टीम को हमारे क्लब की ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद.
चुन्नीलाल कैवर्त, ग्रीन पीस डी-एक्स क्लब,जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़
-----
एक कविता हमें लिख भेजी है डॉ. डंडा लखनवी ने लखनऊ सेः
उनका दावा है उनके घर......
------------------------------------
उनकी भी कुछ लाचारी हैं, कविता के वे व्यापारी हैं।
कवि-सम्मेलन करवाने की.....करते वे ठेकेदारी हैं॥
उनके चाचा..तुलसी, कबीर,
सहपाठी गालिब, तकी मीर,
पेमेंट करो तो......बुलवा दें-
जिस-जिस को बोलो सशरीर,
उनका दावा है उनके घर......माता शारदा पधारी हैं॥
कवि-सम्मेलन करवाने की......करते वे ठेकेदारी हैं॥
अब के..भूषण, दिनकर, रसाल,
बन बैठे उनके.........द्वारपाल,
कितने कवियों.......की रचनाएं-
कर देते जबतब वे.........हलाल,
उगलियाँ उठाता यदि कोई कहते सब लिखी हमारी हैं।
कवि-सम्मेलन करवाने की........करते वे ठेकेदारी हैं॥
-----
संकलनः विनोद चड्ढा
संपादनः आभा मोंढे