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लालू पासवान फिर आए साथ

१७ मार्च २००९

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार में दो क़द्दावर नेताओं ने हाथ मिला लिया है लेकिन हाथ यानी कांग्रेस को इस मिलन से तकलीफ़ हो गई है. उसका कहना है कि उसे यह गठबंधन स्वीकार नहीं है.

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आरजेडी 25 सीटों पर लड़ेगीतस्वीर: AP

कई दिनों की माथापच्ची के बाद लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और रामविलास पासवान की लोकतांत्रिक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के बीच सीटों का समझौता हो गया है. बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से लालू की पार्टी 25 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि पासवान की एलजेपी 12 सीटों पर क़िस्मत आज़माएगी. बाक़ी के तीन सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दिए गए हैं.

Ram Vilas Paswan
मिलन से नाराज़ कांग्रेसतस्वीर: AP

समझौता होने के बाद रेल मंत्री लालू यादव और इस्पात मंत्री रामविलास पासवान ने दिल्ली में साझा तौर पर प्रेस कांफ्रेंस की. लालू यादव ने कहा, "आरजेडी और एलजेपी बिहार में मिल कर चुनाव लड़ने के समझौते पर राज़ी हो गए हैं. आरजेडी 25 सीटों पर और एलजेपी 12 सीटों पर लड़ेगी, बाक़ी के सीट हमने कांग्रेस के लिए छोड़ दिए हैं."

पिछले बार 2004 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने 26 सीटों पर क़िस्मत आज़माई थी, जबकि पासवान की एलजेपी ने आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था. इसके अलावा कांग्रेस ने चार, एनसीपी और सीपीआई ने एक-एक सीट पर चुनाव लड़ा था.

लालू यादव ने साफ़ किया कि वे कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए के साथ हैं. उन्होंने कहा, "हमें तीसरे मोर्चे के साथ कुछ नहीं करना है. हमारा उद्देश्य सांप्रदायिक शक्तियों को पराजित करना है."

रामविलास पासवान ने उम्मीद जताई कि यूपीए 2004 की कामयाबी दोहराएगा और कहा कि वे दोनों राष्ट्रीय हित में साथ आए हैं.

प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि नहीं आया. यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस नाराज़ है, लालू यादव ने कहा, "मेरे साले (साधु यादव) भी नाराज़ हैं." हालांकि पासवान ने कहा कि कांग्रेस के सीटों की बातचीत आरजेडी पर छोड़ दिया गया था.

पिछले बार के चुनाव में यूपीए के घटक दलों आरजेडी, एलजेपी और वाम दलों के अलावा एनसीपी ने मिल कर चुनाव लड़ा था. इस बार लेफ़्ट पार्टियां यूपीए से बाहर हैं, जबकि एनसीपी ने पहले ही बिहार में 14 उम्मीदवार खड़े करने के एलान कर दिया है.

उधर, कांग्रेस ने इस गठबंधन पर नाराज़गी जताई है. वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि हम इस मुद्दे पर बाद में फ़ैसला करेंगे और एक-दो दिन में बताएंगे कि बिहार को लेकर हमारी क्या रणनीति है. कांग्रेस का कहना है कि उनके कार्यकर्ता बेहद नाराज़ हैं क्योंकि हमने पहले से ही 11 उम्मीदवारों की सूची तैयार कर रखी थी.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस फ़ैसले के बाद कांग्रेस और यूपीए के दोनों घटक दलों के बीच दरार पैदा हो सकती है और वोटों का बंटवारा बढ़ सकता है. कांग्रेस की मुश्किल यह है कि पिछले दशक तक वह बिहार में बड़ी ताक़तवर पार्टी रही थी और अब सिर्फ़ तीन सीटों पर सिमटने से उसकी लोकप्रियता और घटेगी.

रिपोर्टः पीटीआई/एजेए

एडिटरः प्रिया एसेलबॉर्न