लखनऊ के इमामबाड़े
लखनऊ में नवाबी शान की पहचान हैं उसके इमामबाड़े. लखनऊ के दो इमामबाड़ों की कुछ तस्वीरें..
क्रेमलिन ऑफ इंडिया
लखनऊ का सबसे सुंदर, छोटा, हुसैनाबाद इमामबाड़ा. अवध के तीसरे शासक नवाब मोहम्मद अली शाह बहादुर ने इसे बनवाया. 1837 में बना यह इमामबाड़ा इंडो पर्शियाई वास्तु का बेहतरीन नमूना है. इसे क्रेमलिन ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है.
आसिफी इमामबाड़ा
लखनऊ के नवाबी दौर की यादें ताजा करनी हों तो आसिफी इमामबाड़े जाया जा सकता है. इसे बड़ा इमामबाड़ा कहा जाता है. 16वीं सदी के 70वें दशक में अकाल के दौरान अवध के नवाब आसिफुद्दौला ने इसे बनवाने का आदेश दिया ताकि लोगों को रोजगार मिले. तभी से कहावत मशहूर हुई जिसको न दे मौला उसको दे आसिफुद्दौला.
नौबत खाना
इमामबाड़े के सामने है ऐतिहासिक नौबत खाना. अब इसका मुख्य द्वार ही बचा है. पहले यहीं से नौबत सजती थी. आसिफी इमामबाड़े के पीछे आसिफी मस्जिद है. यहां शिया मुसलमान ईद की नमाज अदा करते हैं.
आसिफी मस्जिद
तस्वीर में आसिफी मस्जिद देखी जा सकती है.
बावड़ी
आसिफी इमामबाड़े की शाही बावड़ी. कहते हैं कि इसके अंदर से आगरा, कोलकाता और फैजाबाद तक जाने के लिए सुरंगें बनाई गई थीं. इसे इस तरह बनाया गया कि इसकी मेहराबों से इमामबाड़े की सभी गतिविधियों पर निगाह रखी जा सकती थी. इसकी कई मंजिलें अभी भी पानी में डूबी हुई हैं.
सीसीटीवी
शाही बावड़ी की मेहराबों से पानी के अंदर उतरते अक्स. इसे उस जमाने का सीसीटीवी कह सकते हैं. सुरक्षाकर्मियों का यहां पहरा रहता था जो किसी की भी आमद को पानी में ही देख लेते थे. शाही बावड़ी की मेहराबों पर कोई आए जाए, सुरक्षाकर्मियों की निगाहों से बच नहीं सकता.
सुनहरा बाड़ा
असिफी इमामबाड़े के अंदर अब भी लंबे चौड़े शीशे के फ्रेम लगे हैं. कभी इनके फ्रेम सोने के हुआ करते थे. इन्हें इस तरह लगाया गया है कि किसी भी तरफ से कोई अंदर आए तो उसे शीशे में देखा जा सके. इसके 63 फुट लंबे, 53 फुट चौड़े और 50 फुट ऊंचे हॉल की छत को आज भी सिविल इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना माना जाता है. इसे किसी लकड़ी, सरिये का कोई सपोर्ट नहीं है.
भूल भुलैया
शाही हॉल के ऊपर बनी भूल भुलैया के लिए शुरू हो रही हैं ये सीढि़यां. आसिफी इमामबाड़े के ऊपर भूल भुलैया में 489 दरवाजे बिलकुल एक जैसे बने हैं. पता ही नहीं चलता किधर से आए और किधर गए.
सजी धजी इबादतगाह
हुसैनाबाद इमामबाड़े के अंदर का भव्य दृश्य. इसके झाड़ फानूस उस समय भी बेल्जियम से मंगवाए जाते थे.
शामे अवध
नवाबी दौर के लखनऊ का एक विहंगम दृश्य. लखनऊ आज भी अपनी बाहों में नवाबी दौर को इस तरह समेटे हुए है. शाम जरा धुंधली होती है तो लखनऊ के इस इलाके की छटा में नवाबी दौर रच बस सा जाता है.