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'लंदन ओलंपिक में जाने की कोई टेंशन नहीं'

२ अप्रैल २०१२

एशियाई ओलंपिक क्वालिफिकेशन लंदन पहुंचने के लिए उनका आखिरी मौका हैं लेकिन भारतीय स्टार बॉक्सर विजेंदर सिंह कहते हैं इस रोमांच, टेंशन की उन्हें आदत है.

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तस्वीर: AP

भारतीय मुक्केबाजों की टीम चार अप्रैल से कजाकिस्तान के अस्ताना में होने वाले ओलंपिक क्वालिफाइंग मुकाबलों के लिए रवाना हो चुकी है. इससे ठीक पहले विजेंदर सिंह ने कहा, "बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद से ही मुझ पर हमेशा दबाव रहा है. इसमें कुछ नया नहीं है. जब भी मैं किसी टूर्नामेंट के लिए जाता हूं यह हमेशा रहता है." विजेंदर ने यह भी कहा कि जब 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों में वो सोना नहीं जीत पाए तब भी उन पर भारी दबाव था. वो तो यहां तक कहते है कि एशियाई खेलों में सोना जीतने के बावजूद उन पर से दबाव खत्म नहीं हुआ. विजेंदर का कहना है, "बीजिंग के बाद से मैं अब इस तरह का दबाव झेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गया हूं."

पिछले साल अजरबैजान में हुआ वर्ल्ड चैम्पियनशिप ओलंपिक क्वालिफाइंग का पहला मुकाबला था. विजेंदर यहां पहले ही दौर में बाहर हो गए. हालांकि वीजेंदर के लिए यह स्थिति भी कोई नई बात नहीं. वो खुद ही कहते हैं, "बीजिंग गेम्स के पहले भी मेरे सामने यही स्थिति थी. मैं दो कोशिशों में हार चुका था और मेरे पास आखिरी मौका था. उस वक्त केवल दो स्लॉट ही खाली थे मैं आगे बढ़ा और सोना जीत लिया. इस बार मेरी श्रेणी में चार स्लॉट हैं. तो इस लिहाज से मेरे पास ज्यादा मौके हैं. मुझे किसी तरह से बस सेमीफाइनल तक पहुंचना है."

Indien Sport Boxer Vijender Singh
तस्वीर: AP

छह फुट लंबे 26 साल के विजेंदर मध्यम वर्ग के मुक्केबाज हैं. क्वालिफाइंग मुकाबलों में सफलता के बारे में बात करते वक्त उनका अंदाज कुछ कुछ दार्शनिक भी हो जाता है, मुस्कुराते हुए कहते हैं, "मुझे रिंग में मेरा सौ फीसदी देना है लेकिन बाकी सब कुछ भगवान के हाथ में है. उम्मीद है कि वो मुझ पर दया करेंगे."

विजेंदर ट्रेनिंग के लिए देश से बाहर नहीं गए और पटियाला के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में ही अभ्यास करते रहे. विश्व के पूर्व नंबर एक खिलाड़ी को विदेश जाने की जरूरत महसूस नहीं होती और घर पर रह कर ही अपनी कमियों से सीखना ज्यादा अच्छा लगता है. विजेंदर ने कहा, "मैं पिछले एक साल से बिल्ड अप टूर्नामेंट्स से बचता रहा हूं, मुझे पटियाला की ट्रेनिंग ही ज्यादा भाती है. यहां सुविधाएं हैं और अगर कोई चोट लग जाए तो मैं विदेश की बजाय घर में ज्यादा बेहतर तरीके से उबर सकता हूं." इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि अगर उनके जैसे खिलाड़ी विदेश नहीं जाएंगे तो युवा खिलाड़ियों को विदेश जाने के लिए ज्यादा मौका मिलेगा जो उनके लिए अच्छा होगा.

रिपोर्टः पीटीआई/एन रंजन

संपादनः आभा एम

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