रोचक इश्तिहारों से भरा है एक गांव का संग्रहालय
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक गांव में एक दुर्लभ किस्म का संग्रहालय है जिसमें उत्तर मुगलकालीन और ब्रिटिशकालीन दस्तावेज सुरक्षित हैं. खासतौर पर यहां उन इश्तिहारों को संजोकर रखा गया है जो उस समय अखबारों में छपते थे.
हिंदू को पुण्य, मुस्लिम को हज जैसा फल
इलाहाबाद के किसी व्यक्ति ने गुमशुदा की तलाश के लिए यह विज्ञापन दिया है जिसमें पता लगाने वाले को 25 रुपये इनाम के अलावा, हिन्दुओं को गाय बचाने के बराबर पुण्य और मुस्लिमों को हज करने जैसा लाभ मिलने की भी उम्मीद जताई गई है.
ऐसे दी जाती थीं सूचनाएं
बिहार के बेहटा में एक नुमाइश यानी मेले का आयोजन किया गया था जिसमें दुकानों का आवंटन और तमाम दिलचस्प जानकारियां शामिल हैं. तमाम तरह की सूचनाएं देने के लिए किस तरह से जानकारी सार्वजनिक की जाती थी, इसका विवरण भी इन दस्तावेजों से पता चलता है.
कहां है ये संग्रहालय
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के एक गांव में नसीम खां ने यह संग्रहालय बना रखा है. उन्होंने यहां उस दौर के इश्तिहारों को सुरक्षित रखा है जब भारत में अखबारों की दुनिया का शुरुआती दौर ही था.
कौन है ये दिलदार
ये सारे दस्तावेज गाजीपुर के दिलदारनगर गांव के रहने वाले नसीम खां ने सहेजकर रखे हैं. उन्होंने अपने गांव में ही एक लाइब्रेरी और संग्रहालय बना रखा है जहां ऐसे तमाम दस्तावेज और दुर्लभ पुस्तकें रखी हैं.
निमंत्रण, फरमान और विज्ञापनों का अंदाज
इन धरोहरों में तमाम दस्तावेज, अंग्रेजी, उर्दू, हिन्दी और फारसी भाषा में लिखे गए फरमान, निमंत्रण पत्र और दिलचस्प इश्तेहार शामिल हैं. दस्तावेजों के अलावा विभिन्न तरह के सिक्के, मोहरें और पांडुलिपियां भी इनके संग्रहालय में सुरक्षित हैं.
टेंडर हो या टीका, सबकी जानकारी
साल 1900 में चेचक के प्रकोप पर गांवों और मोहल्लों में टीकाकरण का विवरण हो या फिर कुंओं की खुदाई के लिए टेंडर निकालने का काम हो, ब्रिटिशकाल के इन दस्तावेजों में इन सबका विवरण मिलता है.
भाषाएं और 'वर्नाकुलर'
इश्तेहारों की भाषा और उनकी तरीके बेहद दिलचस्प हैं. साथ ही उस समय के इतिहास के तमाम पहलुओं की जानकारी भी मिलती है. इनसे पता चलता है कि सौ-डेढ़ सौ साल पहले देश, जिला और खासकर गांवों की व्यवस्था कैसे चलती थी.
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