1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

रूस में क्यों होती हैं तेल रिसाव की इतनी घटनाएं

९ अप्रैल २०२१

हर आधे घंटे के दरमियान रूस में तेल रिसाव की एक घटना हो जाती है. तेल संपन्न देशों में सबसे अधिक रिसाव के लिए रूस का ही नाम सबसे ऊपर है. रिसाव का एक हॉटस्पॉट बना है सुदूर उत्तर का कोमी क्षेत्र.

https://p.dw.com/p/3rkJ3
Russland | Ölverschmutzung nahe Usinsk im Jahr 2012
उत्तरी रूस में उजिंस्क क्षेत्र के कोमी रिपब्लिक शहर के पास एक नदी से तेल रिसाव की सफाई करते हुए कर्मी.तस्वीर: Greenpeace Russia

रूस के सुदूर उत्तर में कोमी इलाके के नोविकबोज गांव में पेचोरा नदी के किनारे 1994 में अगस्त की एक सुबह एकाटेरीना द्याचकोवा अपनी रोज की वॉक पर थीं. नदी तक पहुंचते पहुंचते उनकी नाक से एक अजीबोगरीब गंध टकराई. और पानी के पास पहुंचीं, तो उन्होंने महसूस किया कि उसका रंग काला था. नावें और उनकी पतवारें सब तेल से सराबोर हो चुकी थीं. 62 वर्षीय बॉयोलजी टीचर और स्कूल निदेशक द्याचकोवा ने डीडब्लू को बताया, "हमारे मछुआरे चिपचिपे काले जाल के साथ लौट रहे थे. गैस स्टेशन जैसी दुर्गंध रहती थी."  

गैस पाइपलाइनों से दूषित पानी और जंगल

कोमी रिपब्लिक के उसिंस्क शहर में तेल के ड्रिलिंग ठिकानों में हुआ यह रिसाव जमीन पर हुए सबसे बड़े रिसावों में से एक था. बाद में शोध से पता चला कि पुरानी सोवियत पाइपलाइनें आठ महीने से लीक कर रही थीं और जनता से यह तथ्य लगातार और यथासंभव छिपाया जा रहा था. जब पानी पर तैरती 15 सेंटीमीटर यानी छह इंच वाली तेल की परत नदी तक आई, तब जाहिर है तबाही बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी थी.

इस दुर्घटना का पूरा ब्यौरा अब भी अज्ञात है. अनुमान है कि एक लाख से दो लाख टन तक के तेल का रिसाव हुआ था. 120 हेक्टेयर यानी 300 एकड़ नाजुक ट्रुंडा जंगल दूषित हो गया था. मवेशियों को टीबी हो गया. और शोधकर्ताओं ने मछलियों तक के पेट में तेल पाया जिससे उनकी हड्डियां विकृत हो गई थीं.

सफाई के पर्याप्त उपकरण नहीं थे, सो गांव वालों ने जमीन से तेल खुरचना और बेलचों की मदद से उसे पानी से बाहर निकालना ठीक समझा. प्रभावित इलाकों को आग के हवाले कर दिया गया ताकि तेल जहां का तहां जल जाए. यह सबसे सस्ता तरीका था. लेकिन इकोसिस्टम और पर्यावरण के लिए सबसे नुकसानदेह. द्याचकोवा याद करती हैं, "हमें बाद में 36 रूबल का मुआवाजा मिला था. हंसी आ गई थी क्योंकि उतने पैसों में सिर्फ वोदका की दो बोतलें ही आ सकती है."

Russland | Ölindustrie | Ölverschmutzung bei Usinsk
जब तेल पक्षियों के पंखों से चिपक जाता है, तो वे हिल नहीं पाते हैं और इसके कारण उनका दम घुट सकता है.तस्वीर: Denis Sinyakov/Greenpeace

कोमी की तेल राजधानी में आपका स्वागत है

पश्चिमोत्तर कोमी रिपब्लिक में तेल का एक लंबा इतिहास रहा है. 15वीं सदी में यहीं पर पहली बार रूसी तेल का उल्लेख आता है. 1960 के दशक में उसिंस्क शहर तेल मजदूरों की बस्ती थी. लेकिन दो दशक बाद एक उद्योग के इर्दगिर्द निर्मित यह एक शहर बन चुका था. 40 हजार की आबादी वाले शहर में एक नया हवाई अड्डा भी बन चुका था जिसका साइनबोर्ड आने वालों का स्वागत कुछ यूं करता है, "तेल की राजधानी कोमी रिपब्लिक में आपका स्वागत है."  

यह दावा वैसे हवाई नहीं है. 1990 के अंत में उसिंस्क के तेल मजदूरों ने करीब 20 करोड़ टन तेल निकाला था. इन दिनों वे हर साल 90 लाख टन निकालते हैं. कोमी की कुल आबादी के आधा से अधिक. इस समय रूसी बड़ी तेल कंपनिया लुकऑयल और रोजनेफ्ट सबसे बड़े स्थानीय खिलाड़ी हैं. भले ही द्याचकोवा जैसे स्थानीय लोग एक दूसरी बड़ी तबाही से बच गए लेकिन तेल रिसाव और दुर्घटनाएं तो आम हैं.

नोविकबोज के नजकीद तेल के कुएं मे 2017 में आग लगी और एक महीनें तक शोले भड़कते रहे, हवाएं ट्रुंडा के जंगलों के लिए अपने साथ एक काला गाढ़ा स्मॉग और जहरीले अणु ले गईं. पिछले साल पतझड़ में एक और तेल रिसाव हुआ जिसने उस नदी को ही दूषित कर दिया जहां स्थानीय लोग मछली पकड़ने जाते थे.

किसी भी कीमत पर तेल

कोमी इलाके के नोविकबोज जैसे गांवों में जीवन कठिन है. सर्दियों में तापमान माइनस 45 डिग्री सेल्सियस चला जाता है. यह इलाका भले ही तेल का हृदय-स्थल कहा जाता है लेकिन इसके बावजूद द्याचकोवा के जैसे बहुत से लोगों के एकमंजिला घरों में चूल्हा लकड़ी से जलता है. बिना पानी के लोग अक्सर तालाबों से पानी जमा कर लेते हैं. लेकिन वे नहीं जानते कि वे पानी पूरी तरह से तेल से मुक्त है और इस्तेमाल करने लायक है या नहीं.

1994 से द्याचकोवा पेचोरा बचाओ कमेटी का हिस्सा रही हैं. यह पर्यावरण बचाने के लिए एक लोकल एनजीओ है, जो क्षेत्र में संभावित तेल रिसाव की घटनाएं और सूचनाएं भी दर्ज करता है. इस सब के बावजूद द्याचकोवा तेल उद्योग के खिलाफ नहीं है, जो इलाके से बहुत से लोगों को रोजगार देता है. वे चाहती हैं कि कंपनियां और जिम्मेदारी दिखाएं. द्याचकोवा कहती हैं, "लोगों को साफ हवा और पानी के साथ सामान्य स्थितियों में जीने का विकल्प मिलना चाहिए."

गांव के डाकघर में काम करने वाली और नोविकबोज की ही निवासी गालीनी चुप्रोवा एनजीओ में सक्रिय हैं. वे कहती हैं, "कानून इस तरह बनाए जाते हैं कि तेल कंपनियों को इस्तेमाल के लिए हर चीज की हरी झंडी मिल जाती है लेकिन बदले में हमें कुछ नहीं मिलता." 

ग्रीनपीस रूस अभियान के निदेशक व्लादीमिर चुप्रोव इस बात से सहमत हैं. वे कहते हैं कि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए जरूरी यह उद्योग उन दशाओं में फलफूल रहा है जहां कंपनियां लीगल फ्रेमवर्क के दायरे से बाहर काम कर रही हैं. उनके मुताबिक, क्योंकि तेल कंपनियों को सरकारी सब्सिडी और टैक्स राहतें मिलती हैं और सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि पर्यायवरण से जुड़े कानून अपर्याप्त हैं, तो वह कंपनी "तेल रिसाव की वित्तीय जिम्मेदारियों और सामाजिक और पर्यावरण नतीजों से साफ बच निकल सकती हैं."

तेल कंपनियों का प्लास्टिक गेम

पाइपलाइन से पैसों की बचत

तेल रिसाव इसी इलाके तक महदूद नहीं हैं. रूस के ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक 2019 में 17 हजार से ज्यादा रिसाव हुए. ज्यादातर पाइपलाइन रिसाव थे. यह आंकड़ा बताता है कि रूस में करीब करीब हर आधे घंटे में कहीं एक तेल रिसाव हो रहा होता है. इसकी तुलना में अमेरिका में 2018 में रिसाव की 137 घटनाएं दर्ज की गई थीं. कनाडा में जहां तेल कुओं के लिए जलवायु स्थितियां रूस जैस ही हैं, वहां 2019 में सिर्फ 60 घटनाएं ही सामने आईं.

रूस की पाइपलाइन दुनिया में सबसे बड़ी पाइपलाइन प्रणालियों में से एक है और ज्यादातर सोवियत दौर की बनी हैं. ये 53 हजार किलोमीटर लंबी हैं - धरती के एक चक्कर से भी ज्यादा. लेकिन देश की आधा से ज्यादा तेल पाइपलाइनें जर्जर हो चुकी हैं और रूस के प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक उसकी वजह से रिसाव हो रहा है. रूस के सुदूर उत्तर की कंपनियों में तैनात तेल मजदूरों ने डीडब्लू के साथ अनाम बातचीत में बताया कि कुछ तेल कुओं में बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है.

कंपनियों के लिए नियमित चेक-अप और पाइप बदलने का काम महंगा पड़ाता है और अक्सर इस काम को ठीक से अंजाम नहीं दिया जाता. ग्रीनपीस रूस का अनुमान है कि देश की तेल कंपनियां हर साल करीब तीन अरब डॉलर की बचत कर लेती हैं लेकिन नए बुनियादी ढांचे में निवेश करने से कतराती हैं. ग्रीनपीस के मुताबिक उत्पादन कीमतों को नीचे रखने में यह रणनीति काम आती है और निवेशकों के लिए उद्योग मुनाफेदार बन जाता है.

तेल की ड्रिलिंग और सोशल मीडिया में ड्रिलिंग

पूरी दुनिया में रूस दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. आर्कटिक में नए विस्तृत वोस्तोक तेल प्रोजेक्ट के जरिए साफ है कि रूस जीवाश्म ईंधन के रास्ते पर ही टिका रहना चाहता है. इन दिनों इसका मतलब यह भी है कि सोशल मीडिया पर लोगों की आलोचना भी झेलना. कंपनियों को प्रमाणों के साथ घेरा जाता है और उन्हें वापस कुछ कहने को मजबूर किया जाता है.

डब्लूडब्लूएफ-रशा और व्यापार के लिए पर्यावरणीय जिम्मेदारी प्रोग्राम के प्रमुख अलेक्सेई क्निजनिकोव कहते हैं, "हाल के वर्षों में हमें ग्राउंड से और सूचनाएं मिल पा रही हैं. पत्रकाओं और स्थानीय लोगों के जरिए. वे रिसाव की घटना के चश्मदीद होते हैं और सोशल मीडिया पर उन घटनाओं को सार्वजनिक कर देते हैं." और यह तरीका काम कर जाता है.

पिछले साल 29 मई को रूस के स्वामित्व वाले आर्कटिक उत्तर में 20 हजार टन तेल एक झील में रिस गया था. खनन की विशाल कंपनी नोमिकेल ने दो दिन तक लोगों को नहीं बताया लेकिन उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गईं और रूसी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खिया बन गईं.

नोमिकेल ने जोर देकर कहा कि आपात प्रतिक्रिया योजना के मद्देनजर उसने अधिकारियों को उसी दिन रिसाव हादसे के बारे में बाकायदा सूचित कर दिया था. लेकिन हादसे से जुड़ा आधिकारिक प्रेस बयान अगले दो दिन तक सामने आया ही नहीं. आखिरकार नोमिकेल को 146 अरब रूबल (दो अरब डॉलर) का जुर्माना भरना पड़ा. रूस में पर्यावरणीय नुकसान के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा अर्थदंड है.

एकातेरिना द्याचकोवा चाहती हैं कि कंपनियों को इस तरह जवाबदेह बनाया जाना चाहिए. उनके गलियारे में इलाके के नए तेल प्रोजेक्टों के जुड़े दस्तावेजों से भरे दो डिब्बे रखे हैं. ड्रिलिंग के लिए निशान की तलाश के लिए आखिरी सीजमिक टेस्ट उनके बागीचे से होकर गुजरा था. वे कहती हैं, "अगर मेरे गांव के ठीक पास एक नया तेल ठिकाना बना लिया जाता है, यह कहते हुए कि हमारे लिए यह सुरक्षित है, तो मैं इन परियोजनाओं के प्रभारी लोगों से कहूंगी कि वे आएं और अपने बच्चों के साथ यहां रहें."

 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी