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रब्बानी की हत्या पर उलझे पाक अफगान रिश्ते

३ अक्टूबर २०११

अमेरिका के बाद अफगानिस्तान के साथ भी पाकिस्तान के रिश्ते खराब होते जा रहे हैं. पाकिस्तान सरकार ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया है कि मुख्य अफगान शांति वार्ताकार रब्बानी की हत्या में उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई शामिल थी.

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रिश्तों में आती दूरियांतस्वीर: dapd

अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई की तरफ से बिठाई गई जांच समिति के मुताबिक प्राप्त सबूत और 20 सितंबर को मुख्य शांति वार्ताकार और पूर्व राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की हत्या में शामिल एक व्यक्ति के कबूलनामे से पता चलता है कि आत्मघाती हमलावर पाकिस्तानी था और इस हत्या की योजना पाकिस्तान में रची गई.

लेकिन पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान देने की बजाय अफगान अधिकारियों को गंभीरता से इस बात पर रोशनी डालनी चाहिए कि जो अफगान शांति और पाकिस्तान की तरफ झुकाव रखते हैं, उन्हें क्यों परिदृश्य के गायब किया जा रहा है और उनकी हत्या की जा रही है. इस बात पर ध्यान देना होगा कि अफगान खुफिया और सुरक्षा एजेंसियां किस दिशा में जा रही हैं."     

मुश्किल अमन की राह

रब्बानी के मौत के कारण तालिबान के साथ शांति की कोशिशें पटरी से उतर गई हैं. अब तक विश्व समुदाय तालिबान के साथ बातचीत का रास्ता अपना कर 10 साल से चल रही लड़ाई को खत्म करना चाहता है. लेकिन रब्बानी की हत्या के बाद अब अफगानिस्तान में जातीय खाई और बढ़ने का खतरा पैदा हो गया है.

Yusuf Raza Gilani und Hamid Karzai NO FLASH
चरमपंथियों से निपटने के मुद्दे पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सोच में बड़ी खाई हैतस्वीर: AP

रविवार को सैकड़ों अफगानी काबुल की सड़कों पर उतरे और वे पाकिस्तान सेना की तरफ से सीमावर्ती इलाकों में की गई गोलाबारी का विरोध कर रहे थे. उन्होंने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर रब्बानी की हत्या में शामिल होने का आरोप भी लगाया.

जिस शांति परिषद का नेतृत्व रब्बानी कर रहे थे, उसने राष्ट्रपति करजई की इस बात को दोहराया है कि तालिबान के बजाय पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रहेगी. इससे इस बात का संकेत मिलता है कि पाकिस्तान परदे के पीछे से कुछ उग्रवादियों को दिशा निर्देश दे रहा है.

अफगान नेता लंबे समय से पाकिस्तान सरकार के इन वादों पर सवाल उठाते रहे हैं कि वह अफगानिस्तान में शांति कायम करने में मदद करना चाहता है. समझा जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के अफगानिस्तान में सक्रिय उग्रवादी गुटों के साथ रिश्ते हैं, खास कर हक्कानी नेटवर्क के साथ, जिसे तालिबान का सबसे खतरनाक धड़ा समझा जाता है.

आईएसआई से 'रिश्ते नहीं'

वहीं पाकिस्तान इस गुट को अपने लिए रणनीतिक पूंजी समझता है, जिसके जरिए वह अफगानिस्तान में अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी भारत के बढ़ते असर से निपट सकता है. आईएसआई के प्रमुख अहमद शुजा पाशा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि पाकिस्तान ने हक्कानी नेटवर्क को न तो एक पैसा दिया और न ही एक भी गोली. हक्कानी नेटवर्क के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि उसके गुट का आईएसआई से कोई लेना देना नहीं है.

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अफगानिस्तान में दस साल से जारी लड़ाई के बावजूद विदेशी सेनाएं तालिबान से नहीं जीत पाई हैंतस्वीर: Department of Defense by Spc. Tia P. Sokimson, U.S

अमेरिका भी पाकिस्तान पर उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई न करने का आरोप लगाता है. अरबों डॉलर की मदद और सैन्य साजोसामान देने के बावजूद भी अमेरिका पाकिस्तान के प्रदर्शन से खुश नहीं है. अमेरिकी सेना प्रमुख माइक मुलेन ने आईएसआई पर आरोप लगाया कि 13 सितंबर को काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले में उसने हक्कानी नेटवर्क का साथ दिया.

लेकिन इस मुद्दे पर पाकिस्तान के पलटवार के बाद व्हाइट हाउस और विदेश मंत्रालय ने चुपके से खुद को मुलेन के बयान से अलग कर लिया. मुलेन इसी हफ्ते सेना प्रमुख के पद से हट रहे हैं. अमेरिका चाहता है कि पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क और दूसरे अमेरिका विरोधी उग्रवादी गुटों के खिलाफ कार्रवाई करे जो उसके मुताबिक अफगान सीमा के नजदीक उत्तरी वजीरिस्तान से काम करते हैं.

बातचीत को तैयार

पाकिस्तान का कहना है कि उसने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में किसी भी और देश के मुकाबले ज्यादा कुरबानियां दी हैं. 2 मई को विशेष अमेरिकी सैन्य टुकड़ी के अभियान में पाकिस्तानी शहर एबटाबाद में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन को मारा गया है, तब से पाकिस्तान अमेरिका से नाराज है. वह इसे अपनी संप्रभुता का हनन बताता है.

Dorfbewohner im Nordwesten Afghanistans NO FLASH
पाक अफगान सीमा को चरमपंथियों की सुरक्षित पनाहगाह समझा जाता हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

पाकिस्तानी अखबारों ने सोमवार को प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के हवाले से लिखा है कि उनकी सरकार उग्रवादियों के साथ बातचीत और शांति के लिए राजी है. अखबार द नेशन के मुताबिक, "उग्रवादियों के साथ बात करके हमें सबसे पहले शांति को एक मौका देना चाहिए." वहीं द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने उनके हवाले से लिखा है, "अगर बातचीत नाकाम रहती है, तो सरकार कबायली इलाकों में सैन्य अभियान शुरू करेगी."

रिपोर्ट: एजेंसियां/ए कुमार

संपादन: महेश झा

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