यूसुफ का जादुई शतक पर भारत की हार
२३ जनवरी २०११यूसुफ पठान जिस वक्त क्रीज पर उतरे, सिर्फ हार की रस्म अदायगी बची थी. लेकिन यूसुफ ने मैच को ऐसी जगह पहुंचा दिया, जहां से एक बार भारत जीत के बारे में भी सोचने लगा.
क्रिकेट के नियम कायदों को ताक पर रख कर यूसुफ ने बल्ले को तलवार की तरह निकाल लिया. उन्हें इस बात से मतलब ही नहीं रहा कि गेंदबाज तेज गेंद फेंक रहा है या स्पिन. पठान ने तो हर गेंद पर प्रहार करने का मन बना रखा था. दक्षिण अफ्रीका की हसरतें तहस नहस करते हुए यूसुफ ने मैदान के कोने कोने को छलनी कर दिया. गेंद कोई भी हो, वह बल्ला चलाते और फिर किसी को सीमा पार से गेंद वापस लानी पड़ती.
रविवार को स्टेडियम पहुंच कर बेमजा मैच देख रहे लोग जा ही रहे थे कि यूसुफ के बल्ले ने उन्हें वापस बुला लिया. कमेंटेटरों के चेहरे गोल हो गए और हर कोई आंखें फाड़ कर लकड़ी के उस छोटे से टुकड़े को देखने लगा, जिसे यूसुफ ने पकड़ रखा था.
करीब 15 ओवर तक यह सिलसिला चलता रहा और रन बनाने की गति जो कभी सात रन प्रति ओवर पहुंच गई थी, वह चार रन के आस पास आ गई. यूसुफ का बल्ला चलता रहा. आठ छक्के और आठ चौकों तक. लेकिन इसके बाद मोर्केल की वह गेंद भी जिसने उनकी पारी पूरी कर दी. हालांकि यूसुफ ने इस गेंद पर भी हल्ला तो बोल ही दिया लेकिन बाहरी किनारा लेते हुए गेंद हवा में उड़ गई और फिर प्लेसिस ने कैच पकड़ लिया. उन्होंने सिर्फ 70 गेंद में 105 रन बनाए.
यूसुफ एक यादगार पारी खेल कर आउट हो गए. मैच के नतीजे की किसी को परवाह नहीं रही. अब यह वनडे सिर्फ यूसुफ की पारी के लिए याद रखा जाएगा. इसलिए नहीं कि उन्होंने वर्ल्ड कप से पहले अपने आखिरी मैच में शतक जड़ा, बल्कि इसलिए कि उनके मजबूत कंधों और पता नहीं कहां से निकल कर आने वाले शॉट्स के सामने करिश्माई और प्रतिभाशाली बॉलर भी किस कदर असहाय हो जाते हैं. यूसुफ ने बल्लेबाजी में निर्दयता का नया आयाम गढ़ दिया है.
डकवर्थ लेविस नियम पर मैच का नतीजा निकला. भले ही दक्षिण अफ्रीका ने 250 रन बनाए हों, भारत की टीम 234 पर आउट हो गई. इस तरह वह मैच 33 रन से हार गई. भारत एक बार फिर दक्षिण अफ्रीका में सीरीज नहीं जीत पाया. लेकिन वर्ल्ड कप से ठीक पहले नौवें नंबर पर ऐसी बल्लेबाजी से मनोबल जरूर बढ़ा होगा.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः एमजी