यूरोप से शरणार्थियों की और मदद की मांग
५ अक्टूबर २०१५सीरिया में गृहयुद्ध शुरू होने के चार साल बाद यूरोपीय और अमेरिकी राजनीतिज्ञ शरणार्थी संकट की और अवहेलना नहीं कर सकते. हालांकि अमेरिकी सरकार पश्चिम एशिया में काफी सक्रिय है लेकिन अब तक वह सीरिया के शरणार्थियों को यूरोप की समस्या समझता रहा है. और यूरोप की प्रतिक्रिया संघ के आदर्शों से काफी दूर है जो मानव मर्यादा के आदर और मानवाधिकारों की रक्षा जैसे मूल्यों पर आधारित है. इसे बदलना होगा.
समस्या का समाधान
"अलेपो में हम मर चुके हैं," एक सीरियाई ने ग्रीस के द्वीप लेसबोस पहुंचने पर तब कहा था जब उससे पूछा गया कि उसने तुर्की से ग्रीस तक की खतरनाक यात्रा क्यों की. लाखों सीरियाई इसी वजह से यूरोप भाग रहे हैं. इसके साथ सुरक्षा की उनकी चाह "दमन के भय" के कारण सुरक्षित आधार पर टिकी है. अफसोस की बात है कि सीरिया के शरणार्थी उन 2 करोड़ लोगों का सिर्फ एक हिस्सा है जो विदेशों में और उन चार करोड़ लोगों का जो अपने देश में युद्ध और उत्पीड़न से भाग रहे हैं. यह संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संगठन द्वारा रजिस्टर्ड अब तक का रिकॉर्ड है.
इस त्रासदी के कारणों का जड़ से पता किया जाना चाहिए. यूरोपीय संघ के पास इसके लिए राजनयिक, राजनीतिक और विकासनैतिक संभावना मौजूद है. ईयू के सरकार प्रमुखों को शांति प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए. उन्हें हिंसा को रोकने के लिए जरूरी कूटनीतिक प्रयास करने चाहिए, जिसकी वजह से हर रोज 42,500 लोग भागने को मजबूर हो रहे हैं.
एक काम अत्यंत जरूरी है. सीरिया और आस पास के इलाके के लिए चंदे का लक्ष्य सिर्फ 40 प्रतिशत पूरा हुआ है. इसलिए शरणार्थियों की मदद का लक्ष्य खतरे में है. हमें यूरोपीय देशों, अमेरिकी और अरब देशों के साझा चंदा अभियान की जरूरत है ताकि मौके पर मदद के लिए संस्थानों को वित्तीय संसाधन मुहैया कराया जा सके. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय दाता सम्मेलन की मशीनरी को इलाके में पुनर्निर्माण और निवेश योजनाओं में मदद देने के लिए लंबी छलांग लगानी होगी.
यूरोप के लिए सुरक्षित रास्ता
इस योजना के साथ साथ हमें यह व्यवस्था करनी चाहिए कि शरणार्थी सुरक्षित और वैध रास्ते से यूरोप और अमेरिका व कनाडा जैसे दूसरे औद्योगिक देशों में जा सकें. पुनर्वास कार्यक्रम, शरणार्थियों के लिए तय कोटा, परिवारों का मिलन और दूसरी संभावनाएं, भाग रहे लोगों को मानव तस्करी करने वाले के चंगुल में जाने, ब्लैकमेल, दमन और यौन उत्पीड़न से बचाएंगी.
कुछ देशों ने शरणार्थियों की बड़ी संख्या को पनाह देने का फैसला लेकर मानवीय नेतृत्व दिखाया है. सितंबर में एक वीकएंड में जर्मनी ने उससे ज्यादा शरणार्थियों को पनाह दी है जितनों को ब्रिटेन अगले पांच साल में शरण देना चाहता है. हमें यूरोपीय सरकार प्रमुखों की समन्वित और न्यायोचित कदमों की जरूरत है.
और संकट का प्रभावी समाधान करने के लिए हमें उन लोगों के बारे में भी सोचना होगा जो यूरोप पहुंच चुके हैं. यहां भी बहुत सी बातें हैं जो ईयू के सदस्य देशों को तुरंत करनी होंगी. सबसे पहले तो यह सुरक्षित करना होगा कि जो शरणार्थी यूरोप आते हैं उनका मानवीय तरीके और मर्यादा के साथ स्वागत हो. ईयू को जरूरी वित्तीय और तकनीकी मदद मुहैया करानी चाहिए ताकि ईयू की दक्षिणी सीमा पर अच्छी तरह समन्वित मानवीय ऑपरेशन शुरू किया जा सके. इसका मतलब है कि आने वाले लोगों को खाना, पानी और चिकित्सीय मदद मिले. उन्हें सुरक्षित रहने की जगह मिले और आते ही साफ सफाई की सुविधा मिले.
बंटी हुई जिम्मेदारी
दूसरे ईयू के सदस्य देश ऐसा करना बंद करें कि भूमध्य सागर का शरणार्थी संकट तट पर स्थित देशों का संकट है. करीब ढाई लाख शरणार्थी इस साल ग्रीस आए हैं और 2 लाख के क्रिसमस तक आने की संभावना है. लेकिन सदस्य देश अब तक सिर्फ ग्रीस और इटली से सवा लाख शरणार्थियों के बंटवारे के लिए राजी हुए हैं. इसे बदलना होगा. युंकर योजना शरणार्थियों के बंटवारे की शुरुआत है. उसे हमारा समर्थन मिलना चाहिए.
तीसरा कदम है एक न्यायोचित, व्यापक और साझी शरणार्थी नीति तय करना जो इस बात की गारंटी दे कि शरणार्थी आवेदनों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई हो और शरणार्थियों को शरण देने की जिम्मेदारी सभी ईयू देशों के बीच बांटी जाए. युंकर योजना में इस बात पर सही ही जोर दिया गया है कि जिन्हें शरण पाने का हक नहीं है, उन्हें वापस भेजा जाना चाहिए.
एकजुटता का समय
कोई भी देश इस तरह के संकट का अकेले समाधान नहीं कर सकता. यूरोप के लिए भी यह संभव नहीं है. एक वैश्विक संकट के समाधान के लिए वैश्विक जवाब चाहिए. लेकिन यूरोप, अमेरिका, खाड़ी के देशों और दूसरे देशों को जो अब तक सक्रिय नहीं हुए हैं, तभी समझा पाएगा जब वह अपनी कार्रवाई को समस्या के अनुकूल बनाएगा.
यह मानवीय एकजुटता के आदर्श को जीने का भी मौका है. यूरोप के राजनीतिज्ञों को लेसबोस की ओर देखना चाहिए जहां इन दिनों वहां के निवासी शरणार्थियों को खाना, कंबल और दवा दे रहे हैं. इन स्वयंसेवियों में ऐसे निवासी भी हैं जिनके दादा दादी द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से बचने के लिए भागकर सीरिया गए थे, जहां उन्हें सुरक्षित पनाह मिली थी. इस मिसाल का हमें पालन करना चाहिए.
जिगमार गाब्रिएल जर्मनी के उप चांसलर, अर्थनीति मंत्री और सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं.
डेविड मिलीबैंड 2007 से 2010 तक ब्रिटेन के विदेश मंत्री थे. इस समय वे राहत संस्था इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी के अध्यक्ष हैं.